याद आता है मुझको
वो दादी का घर
वो दादी का घर और
गर्मी की मस्ती
वो गर्मी की मस्ती और
अमिया चुराना
वो अमिया चुरा कर
धीरे-धीरे भागना
धीरे-धीरे भागकर
कोठरी में छिप जाना
कोठरी में छिपकर
चुपके-चुपके अमिया का खाना
याद आता है मुझको
वो दादी का घर...
पुष्पा सहाय'गिन्नी'
रांची, झारखंड
उपहार
धनतेरस पर सजा है बाजार,
दिला दो न प्रिये एक हार,
शुभ मंगल इस दिवस पर,
मुझको दिला दो न उपहार...
तू तो है मेरा कूबेर प्रिये ,
तुझको ही पूजूँ बारम्बार,
मैं हूँ तुम्हारी सबसे प्यारी,
मुझको दिला दो न उपहार...
- पुष्पा सहाय'गिन्नी'
- रांची झारखंड
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