अभिजित त्रिपाठी

अभिजित त्रिपाठी Lives in Amethi, Uttar Pradesh, India

कवि, लेखक, गीतकार तथा मंच संचालक गाँव वालों को अपनी तहजीब पर वाजिब गुरूर होता है। आँचल फटा ही सही लेकिन सिर पर जरूर होता है।

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#कविता

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#मोहब्बत #शायरी #इश्क #होली #happyholi #holihai  मुझको रंग दो बेहतर है,
ज्यादा उम्मीद न पालो।
मत कहना कि अरे सांवरे,
रंग मुझपर भी डालो।
एक बार जो खेली होली,
भूल मुझे न पाओगी।
रंग छोड़कर धानी-पीले,
मुझ में ही रंग जाओगी।

©अभिजित त्रिपाठी

रातों की गर्दिश में जब भी जगे तू, जगूँ मैं, ये मेरी निगाहें भी जागें। कभी मौत आई जो तुझको ले जाने, उसको मिलूँगा खड़ा मैं ही आगे। टूटेंगे ना तोड़ने से कभी भी, जो अनदेखे बाँधे हैं प्रीत के धागे। दुआएँ तो माँगें सभी तेरी खातिर, पर दुआओं में तुझको कोई भी ना मांगे। ©अभिजित त्रिपाठी

#लव #Prem #ishk #Hum #Rat  रातों की गर्दिश में जब भी जगे तू,
जगूँ मैं, ये मेरी निगाहें भी जागें।
कभी मौत आई जो तुझको ले जाने,
उसको मिलूँगा खड़ा मैं ही आगे।
टूटेंगे ना तोड़ने से कभी भी,
जो अनदेखे बाँधे हैं प्रीत के धागे।
दुआएँ तो माँगें सभी तेरी खातिर,
पर दुआओं में तुझको कोई भी ना मांगे।

©अभिजित त्रिपाठी

#Hum #ishk #Love #Dua #Rat #Prem

10 Love

#शायरी #Colors #Heart #Holi #Rang #SAD  दिल की थी अरदास यही,
कि तुमको रंग लगाऊँ ?
तुम रहती हो दूर नगर,
पास मैं कैसे आऊँ ?
बिन प्रियतम के पर्व सभी,
अनजान-अधूरे रहते हैं।
बिन तेरे अब तुम्हीं कहो,
क्या होली भला मनाऊँ ?

©अभिजित त्रिपाठी

#Colors #Holi #Love #SAD #Rang #Heart

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#राजपूताना #हल्दीघाटी #दिल्ली #महादेव #बलिदान #कविता

हल्दी घाटी के भीषण रण में, राणा निर्द्वंद्व घूमते थे। जिधर भी चेतक मुड़ जाता, लाशों के ढेर झूमते थे। मानसिंह बस एक वार में, होश गंवाकर भागा। अंत युद्ध का निकट आ गया, तब तंद्रा से जागा। सेना को ललकार लगाता, बहलोल खान तब आया। उसने राणा पर वार किया, और पूरा जोर लगाया। एक वार में दो कर दिया उसे, जब राणा को रोष हुआ। हल्दीघाटी में जोरों से, जय जगदम्बा उद्घोष हुआ। ©अभिजित त्रिपाठी

#हल्दीघाटी #जगदम्बा #उद्घोष #कविता #राणा #चेतक  हल्दी घाटी के  भीषण  रण में, राणा  निर्द्वंद्व घूमते थे।
जिधर भी  चेतक मुड़  जाता, लाशों के  ढेर झूमते थे।
मानसिंह   बस  एक   वार  में,  होश   गंवाकर  भागा।
अंत  युद्ध  का  निकट  आ  गया, तब  तंद्रा  से  जागा।
सेना को  ललकार  लगाता, बहलोल  खान तब आया।
उसने  राणा  पर वार  किया, और  पूरा  जोर  लगाया।
एक वार में दो कर दिया उसे, जब राणा को रोष हुआ।
हल्दीघाटी  में जोरों  से, जय  जगदम्बा  उद्घोष  हुआ।

©अभिजित त्रिपाठी
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