Vishu Shukla

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सब सही नही है। वह वही नही है। क्या क्या लिखूँ, शब्द ही नही है।

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जब बात हमारी कड़वी लग जाए। जब गुस्सा मुझ पर चढ़ जाए। जब सहनशक्ति क्षीण तेरी हो जाए। तब गुस्सा अपना संकेतित कर देना। कुछ याद मेरे अपने करतूतों को कर लेना। जब इंद्रियाँ मुझ पर अविश्वास करें। जब दिल की धड़कन मुझ पर वार करे। जब जिह्वा तेरी मुझसे इनकार करे। तब मुझको तुम अत्यंतशीघ्र ठुकरा देना। कुछ याद मेरे अपने करतूतों को कर लेना। जब वचन मधुर मेरी यादों में आएं। जब याद तुम्हे पुरानी बातें आएं। जब जागृत इच्छा बातें करनी की हो जाए। तब आशा से तुम मुझको बुलवा लेना। कुछ याद मेरे अपने करतूतों को कर लेना। ©Vishu Shukla

 जब बात हमारी कड़वी लग जाए।
जब गुस्सा मुझ पर चढ़ जाए।
जब सहनशक्ति क्षीण तेरी हो जाए।
तब गुस्सा अपना संकेतित कर देना।
कुछ याद मेरे अपने करतूतों को कर लेना।

जब इंद्रियाँ मुझ पर अविश्वास करें।
जब दिल की धड़कन मुझ पर वार करे।
जब जिह्वा तेरी मुझसे इनकार करे।
तब मुझको तुम अत्यंतशीघ्र ठुकरा देना।
कुछ याद मेरे अपने करतूतों को कर लेना।

जब वचन मधुर मेरी यादों में आएं।
जब याद तुम्हे पुरानी बातें आएं।
जब जागृत इच्छा बातें करनी की हो जाए।
तब आशा से तुम मुझको बुलवा लेना।
कुछ याद मेरे अपने करतूतों को कर लेना।

©Vishu Shukla

जब बात हमारी कड़वी लग जाए। जब गुस्सा मुझ पर चढ़ जाए। जब सहनशक्ति क्षीण तेरी हो जाए। तब गुस्सा अपना संकेतित कर देना। कुछ याद मेरे अपने करतूतों को कर लेना। जब इंद्रियाँ मुझ पर अविश्वास करें। जब दिल की धड़कन मुझ पर वार करे।

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महज उम्र थी ग्यारह जब दूर हुआ था पहली बार........ था कुछ अपना तो बस आंसू जब छूटा था परिवार....... हुई शाम तो बस इक ही याद आयी....... नहीं लगा कुछ अच्छा बस आखें भर आयी....... सब लगते अलग अलग मिले थे पहली पहली बार......... था कुछ अपना तो बस आंसू जब छूटा था परिवार......... छुपकर रोते थे किसे दर्द बतायें........ माँ थोड़ी थी जो बिन बोले समझ जायें....... घर जल्दी ही सो जाने वाले जगते थे मेरे सब यार..... था कुछ अपना तो बस आंसू जब छूटा था परिवार...... खाने पर उस दिन सब रोये थे....... उस दिन सब माँ वाला खाना खोये थे....... घर माँ रोई हम रोये याद आती थी बार बार.......... था कुछ अपना तो बस आंसू जब छूटा था परिवार....... पापा याद आए घर याद आया.......... उस दिन भाई से लड़ाई भी नहीं कर पाया....... माँ की ममता याद आती है व माँ का प्यार........... महज उम्र थी ग्यारह जब दूर हुआ था पहली बार...... -विकाश शुक्ल

#अनुभव #feather  महज उम्र थी ग्यारह जब दूर हुआ था पहली बार........ 
था कुछ अपना तो बस आंसू जब छूटा था परिवार....... 

हुई शाम तो बस इक ही याद आयी....... 
नहीं लगा कुछ अच्छा बस आखें भर आयी....... 
सब लगते अलग अलग मिले थे पहली पहली बार......... 
था कुछ अपना तो बस आंसू जब छूटा था परिवार......... 

छुपकर रोते थे किसे दर्द बतायें........ 
माँ थोड़ी थी जो बिन बोले समझ जायें....... 
घर जल्दी ही सो जाने वाले जगते थे मेरे सब यार..... 
था कुछ अपना तो बस आंसू जब छूटा था परिवार...... 

खाने पर उस दिन सब रोये थे....... 
उस दिन सब माँ वाला खाना खोये थे....... 
घर माँ रोई हम रोये याद आती थी बार बार.......... 
था कुछ अपना तो बस आंसू जब छूटा था परिवार....... 

पापा याद आए घर याद आया.......... 
उस दिन भाई से लड़ाई भी नहीं कर पाया.......
माँ की ममता याद आती है व माँ का प्यार........... 
महज उम्र थी ग्यारह जब दूर हुआ था पहली बार...... 

                -विकाश शुक्ल

#feather

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#कविता

शब्द ही नही है

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