~~~~~~~~¦¦ ग़ज़ल ¦¦~~~~~~~~
इश्क़ भी अब साहब तजरुबा कार हो गई,
गिनी चुनी मुहब्बतें भी सर-ए-बाज़ार हो गई,
नाम लिखता गया मैं हर सफ़्हे पे तुम्हारा सनम,
हाय रे: मेरी किस्मत रियाज़ी की कॉपी बेकार हो गई,
जिस्म से तुम्हारे फ़्कत इक आईना निखरता है,
इस ग़रज़ से भी आईने की सीरत तुमपे निसार हो गई,
मैं ना कहता था तुमसे कुछ नहीं है ये इश्क़,
नाबीनों के पास जाते ही हाथों की लकीरें बेशुमार हो गई,
नाम अपने किये हमने ये तमाम हिज्र-ए-वस्ल "शैख़",
तुम्हारी किस्मत तो यूँही सनम तुमसे शर्मसार हो गई..!!
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