मैं झूठ नहीं कहूंगा कि मुझे थकान नहीं होती,
हां... थक जाता हूं कभी-कभी,
जब थकने लगते हैं पैर, दिन भर चलते चलते,
तो किसी पेड़ के नीचे बैठकर,
रुक जाता हूं कभी-कभी,
अपनों के ख्याल सुबह जल्दी उठा देते हैं,
जो दुखने लगे आंखें नींद से,
तो सो लेता हूं कभी-कभी,
हंसने के मौके जिंदगी में बड़े कम ही मिले मुझे,
लेकिन बचपन की बातें याद करके,
मुस्कुरा लेता हूं कभी-कभी,
न जाने इस भाग दौड़ में, कब ये जिंदगी साथ छोड़ दे,
बस यही सोच कर,
खुद के लिए जी लेता हूं कभी-कभी...
©Jagdeep Justa
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