Niraj Srivastava

Niraj Srivastava Lives in New Delhi, Delhi, India

A Writer, A Poet and A Shayar

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#नीरज_श्रीवास्तव #niraj_srivastava_motihari #niraj_srivastava #विचार #NirajKiKalamSe #niraj_motihari  White आवरण पहन लो चाहे कोई,
काल पहुँच ही जाता है।
अपने लक्ष्य की पूर्ति खातिर,
प्राण हरण कर जाता है।।

नीरज श्रीवास्तव 
मोतिहारी, बिहार

©Niraj Srivastava
#नीरज_श्रीवास्तव #niraj_srivastava_motihari #niraj_srivastava #कविता #NirajKiKalamSe #niraj_motihari  White जीवन के इस रहगुज़र पर, कहाँ कोई ठिकाना होता ।
रहम ना करता तू अगर तो, दूजा कहाँ सहारा होता।।
वह मंजिलें जो दूर थी मुझसे, लगे आज हम साया है।
सच कहूँ यह पूर्ण कहाँ था,अगर ना राब्ता तेरा होता।

नीरज श्रीवास्तव 
मोतिहारी, बिहार

©Niraj Srivastava
#नीरज_श्रीवास्तव #niraj_srivastava_motihari #niraj_srivastava #कविता #niraj_motihari #lonely_quotes  White मंजिल चाहे लाख कठिन हो, कोशिश सदा करते रहना।
पग-पग कदम बढ़ाकर आगे, दुनिया फ़तेह करते रहना।।
जीवन के संघर्ष हो चाहे, युद्ध क्षेत्र हो द्वंदों का।।
वीरों की भाँति तुम यूँही, दुश्मन से लड़ते रहना।।

नीरज श्रीवास्तव 
मोतिहारी, बिहार

©Niraj Srivastava
#नीरज_श्रीवास्तव #niraj_srivastava_motihari #niraj_srivastava #कविता #NirajKiKalamSe #niraj_motihari  White कौन बड़ा जग में देखो, 
पर्वत है या सागर।
अनंत गगन दिखता नभ में, 
या बहता महासागर।।
इस द्वंद के बीच लड़ता मन, 
है कहता मुझसे आकर।
माँ के हृदय सा बड़ा ना कोई, 
पूछो कहीं भी जाकर।।

नीरज श्रीवास्तव
मोतिहारी, बिहार

©Niraj Srivastava
#नीरज_श्रीवास्तव #niraj_srivastava_motihari #niraj_srivastava #hanumanjayanti24 #विचार #NirajKiKalamSe  hanuman jayanti 2024 नशा घमंड का भी हो तो,  ना वह उत्तम होता है।
सब कुछ प्राप्त तुम्हें हो जाए, पर खाली जीवन रहता है।।

नशा पालना अगर तुम्हें हो, प्रेम, भक्ति का तुम पालो।
प्रभु की बनाई इस दुनिया में, नई सीख तुम दे डालो ।।

नीरज श्रीवास्तव
मोतिहारी, बिहार

©Niraj Srivastava
#नीरज_श्रीवास्तव #मोटिवेशनल #niraj_srivastava_motihari #niraj_srivastava #IndependenceDay #NirajKiKalamSe  भूल गए तुम क्या कुर्बानी, वतन के उन दीवानों की।
देशहित में लड़े अन्त तक, आहुति दे निज प्राणों की।।
तिरंगे की शान की खातिर,था सर्वस्व लुटाया वीरों ने।
सीने पर थी गोली खाई,चाहे स्वयं बंधे रहे जंज़ीरों में।।

(पूर्णतः स्वरचित, सुरक्षित और मौलिक)

नीरज श्रीवास्तव
मोतिहारी, बिहार

©Niraj Srivastava
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