चलो आज इस तिरंगे के मैं पाँच रंग दिखता हूँ,
क्या कहते है रंग पाँच वह बात तुम्हें बताता हूँ।
पहला रंग है केसरिया जो बलिदान सिखाता है,
आजादी के उन वीरों की गाथा सब को सुनाता है।
उठो, खड़े हो, डटकर लड़ना, चाहे कुछ भी हो जाएँ,
प्राण चाहे न्योछावर हो पर देश कभी ना झुक पाएँ।
दूजा रंग है श्वेत मध्य, जो सत्य अहिंसा परमो धर्म हैं,
हम सब एक परिवार है, ऐक्य शांति उसका मर्म है।
भूलो सारे धर्म भेद, इस जातपात का भेद मिटाओ,
नवभारत के निर्माण में तुम एकता का शंख बजाओ।
तीसरा रंग है हरा हमारा, जो सुख समृद्धि लाता है,
हर घर खुशहाली आएँ, विश्वास से इसका नाता है।
असमानता का भेद मिटे, हर जन का कल्याण हो,
बढे समृद्धि, रहे प्रकृति, ऐसा विकास निर्माण हो।
चौथा रंग है नीला नभ सा, जो धर्मचक्र में समाया है,
राष्ट्र चले नीति रीति से यह पाठ उसने सिखाया है।
ये पहिया है कर्मयोग का, चौबीस गुण को समाया है,
ये दिखलाता सार्वभौमत्व, विशालता नभ सी लाया है।
है पाँचवा रंग लाल लहू का, जो सरहद पे बहता है,
जिनके शवों पे कफ़न बनकर ये तिरंगा लिपटता है।
कुछ सरहद पे लड़ते वीर, कुछ अंदर भ्रष्टाचार से,
वह लाल रंग अदृश्य है बस तिरंगे के रंग चार में।
आओ मिलकर प्रण लो सब, हर रंग का सम्मान करें,
सर को ऊंचा रखकर हम सब तिरंगे का गुणगान करें।
©Ďîvŷã Řäĵ Řăĵpűț
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