मोहब्बत के ज़ख्म हैं, ना समझो निशां और
इन्हें देखकर होता है मुझे, इश्क़ पे गुमां और
सोच रहे थे 'इमरान'
ही क़ायल हैं गालिव के
जिसे देखो वो करता है,
अन्दाज़-ऐ बयां और
मोहब्बत के ज़ख्म हैं, ना समझो निशां और
इन्हें देखकर होता है मुझे, इश्क़ पे गुमां और
सोच रहे थे 'इमरान'
ही क़ायल हैं गालिव के
जिसे देखो वो करता है,
अन्दाज़-ऐ बयां और
जो अपने से बड़े का यहाँ सम्मान रखता है
ऐसी तहजीब-ओ अमन मेरा हिन्दुस्तान रखता है
बो ही देते हैं अपने बेटो को बहादुरी का सबख
जिसका बाप अपनी हथेली पे जान रखता है
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