मजदूर आखिर क्या है इनके मौत कि किमत बस पांच लाख,
आज सौ मरेंगे, कल हजार पैदा हो जाऐंगे!
कुछ दिन रोएंगे चिल्लाएंगे फिर चुप
हो जाऐंगे!
कुछ दिन अनसन पर बैठेंगे फिर भूखमरी से खुद काम पर लग जाऐंगे!
अगर कुछ दिन भूखे सो गये तो क्या मर तो नहीं गये!
इनके बच्चों को पढकर करना हि क्या है ,आखिर मजदूर ही तो बनना है!
महल बना दिये तो क्या पैसे भी तो लिऐ थे, अब रोड पर रहे या झोपड़ी में !
कपड़े पहन कर क्या करेंगे जिस्म तो जला ही है!
खेत में अन्न उगा दिये तो क्या गरीबों को पकवान खाने का कोई हक नहीं है!
अरे मैं तो कहती हूँ,हमारे सुंदर वस्त्र पर पैबंद है ये,
हां एक वक्त है जब इनकी बड़ी आवभगत होती है, चुनाव के वक्त!
कुछ सवाल सीधा दिल पर लगता है... है ना
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