वरुण तिवारी ~*मुसाफिरखाना*~

वरुण तिवारी ~*मुसाफिरखाना*~

लिखावट आज कमतर है, कभी बेहतर लिखूंगा मैं। अंधेरे से उजाले में कभी बेहतर दिखूंगा मैं॥ अभी नन्हा सा पौधा हूं बनूंगा एक दिन तरुवर। जड़ें मजबूत कर अपनी निरंतर नित बढूंगा मैं॥

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#flowers  White अभिलाषाओं की जंजीरों,में जकड़े इंसान।
स्वार्थ सिद्ध करते रहते बस,भूल चुके ईमान॥

अनुचित,उचित कर्म क्या होते,इन्हे नहीं है ज्ञात।
करें दिखावे की चर्चा बस,उल्टी सीधी बात॥
कहने को तो मानव हैं ये,पर दानव सा कर्म।
अवसर मिलते ही छल कर दें,कैसा इनका मर्म॥

न्याय तुला पर जब ये बैठें,डांडी मारे खूब।
करें मुनाफा होशियारी का,चलती रहे दुकान॥

नैतिकता की चादर ओढ़े,चौराहे के बीच।
छल की चुस्की लेते रहते,राजनीति के नीच॥
इन्हे देखकर गिरगिट भी अब,खड़ा रह गया दंग।
कैसा अद्भुत प्राणी है ये,कितने इसके रंग॥

कलियुग में अब ऐसे प्राणी,पूजे जाते रोज।
इन्हे बताया जाता ये हैं,सबसे बड़े महान॥

©वरुण तिवारी ~*मुसाफिरखाना*~

#flowers

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Black मिलकर हमने साथ गढ़े थे,सपनो के सोपान। बीच डगर में  टूटा नाता,कैसा यह  व्यवधान॥ प्रायः वक्त सिखा ही देता,जीवन की हर  सीख। आवश्यकता गहरी जितनी,उतनी महंगी भीख॥ सुखद पलों में  दिखे हमेशा,बहुधा सुंदर  चित्र। विपदा  में जो साथ  निभाए,वही  हमारा  मित्र॥ सुई अगर  डोरे से  लड़ ले,और ठान  ले  बैर। फिर दर्जी कैसे सिल पाए,आकर्षक परिधान॥ मिलकर हमने,,,,,, कलह,द्वंद्व से कोमल उर भी,हो  जाते पाषाण। जीवन नीरस हो जाता बस,नहीं निकलते प्राण॥ सुख  आने पर तरह तरह के,मानव भोगे भोग। दुख  में साथ  खड़े होते जो,याद नहीं वे  लोग॥ आज  भावना  संग हमेशा,होता है खिलवाड़। अपनों से ही छल कर बैठे,कैसा  वह इंसान॥ मिलकर हमने,,,,,, ~वरुण तिवारी ~ ©वरुण तिवारी ~*मुसाफिरखाना*~

#Thinking #लव  Black मिलकर हमने साथ गढ़े थे,सपनो के सोपान।
बीच डगर में  टूटा नाता,कैसा यह  व्यवधान॥

प्रायः वक्त सिखा ही देता,जीवन की हर  सीख।
आवश्यकता गहरी जितनी,उतनी महंगी भीख॥
सुखद पलों में  दिखे हमेशा,बहुधा सुंदर  चित्र।
विपदा  में जो साथ  निभाए,वही  हमारा  मित्र॥

सुई अगर  डोरे से  लड़ ले,और ठान  ले  बैर।
फिर दर्जी कैसे सिल पाए,आकर्षक परिधान॥
मिलकर हमने,,,,,,

कलह,द्वंद्व से कोमल उर भी,हो  जाते पाषाण।
जीवन नीरस हो जाता बस,नहीं निकलते प्राण॥
सुख  आने पर तरह तरह के,मानव भोगे भोग।
दुख  में साथ  खड़े होते जो,याद नहीं वे  लोग॥

आज  भावना  संग हमेशा,होता है खिलवाड़।
अपनों से ही छल कर बैठे,कैसा  वह इंसान॥
मिलकर हमने,,,,,,

~वरुण तिवारी ~

©वरुण तिवारी ~*मुसाफिरखाना*~

#Thinking @Chocolate सचिन सारस्वत @M.k.kanaujiya @Kumar Shaurya RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'

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