Dr.asha Singh sikarwar

Dr.asha Singh sikarwar Lives in Ahmedabad, Punjab, India

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उसका दमन, तिरस्कार उसकी यंत्रणा उतनी ही प्राचीन है जितना कि पारिवारिक जीवन का इतिहास । असंगत और मन्द प्रक्रिया में उसने हिंसा को हिंसा की दृष्टि से देखा ही नहीं कभी वह स्वयं भी हिंसा से इंकार करती है धार्मिक मूल्य और सामाजिक दृष्टि का बोझ उसके कंधे पर रख दिया गया । 'आक्रमण ', 'बल' , 'उत्पीड़न 'के चक्रव्यूह में फँसती चली गई उसने सहे आघात पर आघात धकेल दिया गया उसकी भावनाओं को भीतर ज़बरन उससे छीन ली गई उसकी स्वेच्छा । वह पूछती है कौन हैं वे अपराधी अपराधियों को अपराध करने की प्रेरणा कहाँ से मिलती है ? इन्हें रोकने के उपाय किसके वश में हैं ? ©Dr.asha Singh sikarwar

#hindi_poetry #hindi_poem #crimestory #nojohindi  उसका दमन, तिरस्कार 
उसकी यंत्रणा 
उतनी ही प्राचीन है 
जितना कि पारिवारिक जीवन का इतिहास । 

असंगत और मन्द प्रक्रिया में 
उसने हिंसा को हिंसा की दृष्टि से 
देखा ही नहीं कभी 
वह स्वयं भी हिंसा से इंकार करती है 
धार्मिक मूल्य और सामाजिक दृष्टि का बोझ 
उसके कंधे पर रख दिया गया । 

'आक्रमण ', 'बल' , 'उत्पीड़न 'के 
चक्रव्यूह में फँसती चली गई 
उसने सहे आघात पर आघात 

धकेल दिया गया 
उसकी भावनाओं को भीतर 
ज़बरन उससे छीन ली गई 
उसकी स्वेच्छा । 

वह पूछती है कौन हैं वे अपराधी 
अपराधियों को अपराध करने की प्रेरणा 
कहाँ से मिलती है ?
इन्हें रोकने के उपाय किसके वश में हैं ?

©Dr.asha Singh sikarwar

तुमने भरोसा कभी ,जताया ही नहीं मुझसे मोहब्बत है ,बताया ही नहीं ©Dr.asha Singh sikarwar

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मुझसे मोहब्बत है ,बताया ही नहीं

©Dr.asha Singh sikarwar

अपने  खिलाफ़ ' डाॅ . आशा सिंह सिकरवार -------------------------------------' चाहे जहाँ छिपाकर रख दो वे पा लेंगे चाहे रख दो आदिम नक्शा के भीतर बना लेंगे सुरंग वे आडी तिरछी लकीरें बाहर से भीतर प्रवेश जहर जिनकी जेबें खाली होती हैं होती हैं उनकी भी जरूरतें मन मारकर रह जाते हैं अनिवार्यता और सुविधाओं के बीच लकीर पर दम तोड़ती आधी आबादी   कई चीजों पर जोंक की तरह चिपक जाती हैं निगाहें  सपने में खुलती हैं  जिनकी खिड़कियाँ अंधेरे में भटकते हैं टकराते हैं अपनी लाचारी, बेबसी  पर उनका भी मन डगमगाता  है आदर्शवादी भूमि पर उनके भीतर  जागती हैं अदम्य इच्छाएँ    डी ओ,  जूते और नयी कमीज़ आँखों पर रंगीन चश्मा पहनकर दुनिया की खूबसूरती आँकने का उनका भी अरमान होता है डॉ .आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद । ©Dr.asha Singh sikarwar

#addiction #Quotes #drugs #poem  अपने  खिलाफ़ ' डाॅ . आशा सिंह सिकरवार 
-------------------------------------'


चाहे जहाँ छिपाकर रख दो 
वे पा लेंगे 
चाहे रख दो आदिम नक्शा के भीतर 
बना लेंगे सुरंग वे 
आडी तिरछी लकीरें 
बाहर से भीतर प्रवेश जहर 

जिनकी जेबें खाली होती हैं
होती हैं उनकी भी जरूरतें 
मन मारकर रह जाते हैं 
अनिवार्यता और सुविधाओं के बीच
लकीर पर दम तोड़ती आधी आबादी   
कई चीजों पर जोंक की तरह चिपक जाती हैं निगाहें  
सपने में खुलती हैं  जिनकी खिड़कियाँ 

अंधेरे में भटकते हैं 
टकराते हैं अपनी लाचारी, बेबसी  पर 
उनका भी मन डगमगाता  है 
आदर्शवादी भूमि पर 

उनके भीतर  जागती हैं अदम्य इच्छाएँ    
डी ओ,  जूते और नयी कमीज़ 
आँखों पर रंगीन चश्मा पहनकर 
दुनिया की खूबसूरती
आँकने का 
उनका भी अरमान होता है 


डॉ .आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद ।

©Dr.asha Singh sikarwar

अपने  खिलाफ़ ' डाॅ . आशा सिंह सिकरवार -------------------------------------' चाहे जहाँ छिपाकर रख दो वे पा लेंगे चाहे रख दो आदिम नक्शा के भीतर बना लेंगे सुरंग वे

15 Love

ग़ज़ल कभी  तुम  ,वहाँ   पहुँचे कभी   हम  ,वहाँ  पहुँचे जहाँ  पहुंचना  था साथ पहुँचे मगर  , तन्हा पहुँचे क्या दुनिया,देखती भला दिखे  हमी,  जहाँ  पहुँचे सफर ,कठिन था बेशक अकेले कहाँ-कहाँ पहुँचे पहुंचना था ,  दिल तक रास्ते आसमाँ तक पहुँचे डॉ . आशा सिंह सिकरवार 'जाफ़रान ' ©Dr.asha Singh sikarwar

 ग़ज़ल 

कभी  तुम  ,वहाँ   पहुँचे 
कभी   हम  ,वहाँ  पहुँचे 

जहाँ  पहुंचना  था साथ 
पहुँचे मगर  , तन्हा पहुँचे 

क्या दुनिया,देखती भला
दिखे  हमी,  जहाँ  पहुँचे 

सफर ,कठिन था बेशक
अकेले कहाँ-कहाँ पहुँचे 

पहुंचना था ,  दिल तक 
रास्ते आसमाँ तक पहुँचे 

डॉ . आशा सिंह सिकरवार 'जाफ़रान '

©Dr.asha Singh sikarwar

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25 Love

ग़ज़ल कांधे पे हाथ रखा तो , आँखें भर आई ये आये सम्भालने थे , खुद रोकर गए हैं वो पाने वो हमें आये थे ,चलकर तो दूर तक यों ख़ाली हाथ खुद को,खोकर गए हैं वो न थाह ही ले सके हैं सागर की आज तक कुछेक हंसीं ख़्वाब ही , डुबोकर गए हैं वो डॉ. आशा सिंह सिकरवार जाफ़रान ©Dr.asha Singh sikarwar

 ग़ज़ल 

कांधे पे हाथ रखा तो , आँखें भर आई ये
आये सम्भालने थे , खुद रोकर गए हैं वो 

पाने वो हमें आये थे ,चलकर तो दूर तक
यों ख़ाली हाथ खुद को,खोकर गए हैं वो 

न थाह ही ले सके हैं सागर की आज तक 
कुछेक हंसीं ख़्वाब ही , डुबोकर गए हैं वो 

डॉ. आशा सिंह सिकरवार जाफ़रान

©Dr.asha Singh sikarwar

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21 Love

ग़ज़ल: मेरा दिलवर ही  ,मार देगा मुझे जब वो दिल से उतार देगा मुझे उम्र  बढ़  जाएगी ,  मेरी शायद हाथ से जब  , सँवार देगा मुझे प्यार  मैं  गर   , उतर  गई गहरे आके वो ही,    उभार देगा मुझे कोई शिकवा,  रहेगा न बाक़ी इस कदर,   ऐतबार देगा मुझे दौर में हूँ  , अभी ख़िज़ाँ  के मै वो ही  फ़स्ले ,बहार देगा मुझे है यक़ीं एक दिन,पासआके वो अपना  भरपूर , प्यार देगा मुझे डॉ . आशा सिंह सिकरवार 'जाफ़रान' ©Dr.asha Singh sikarwar

#writersofinstagram #poetrycommunity #lovequotes #Instagram  ग़ज़ल: 

मेरा दिलवर ही  ,मार देगा मुझे
जब वो दिल से उतार देगा मुझे 

उम्र  बढ़  जाएगी ,  मेरी शायद
हाथ से जब  , सँवार देगा मुझे 

प्यार  मैं  गर   , उतर  गई गहरे
आके वो ही,    उभार देगा मुझे 

कोई शिकवा,  रहेगा न बाक़ी
इस कदर,   ऐतबार देगा मुझे 

दौर में हूँ  , अभी ख़िज़ाँ  के मै
वो ही  फ़स्ले ,बहार देगा मुझे 

है यक़ीं एक दिन,पासआके वो
अपना  भरपूर , प्यार देगा मुझे 

डॉ . आशा सिंह सिकरवार 'जाफ़रान'

©Dr.asha Singh sikarwar
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