जब इंसान तुलना करता है तो हर नई वस्तु बहुत प्यारी और ख़ूबसूरत लगती है पुरानी वस्तु की तुलना में।
फ़िर चाहे वो कोई भौतिक वस्तु हो या कोई रिश्ता हो।
आपकी सबसे प्यारी कोई टी-शर्ट हो ,शर्ट हो या कोई रिश्ता हो वक्त के साथ हल्का होता रहता है,
और किसी नए की तलाश शुरू हो जाती है और जब वो तलाश पूरी हो जाती है, तो हम छोड़ देते हैं पुराने को।
पुराने को सहेजने और सम्भालने के बजाय हम आकर्षित होते हैं नए की तरफ़ क्योंकि भौतिक वस्तु और रिश्तों में कोई अन्तर रहा ही नहीं।
रिश्तों को सम्भालने और सहेजने में बहुत मेहनत और धर्य की जरूरत होती है जबकि भौतिक वस्तुओं में बिल्कुल इसका उलट होता है।
आज का पुराना भी कभी नया था और ये स्वाभाविक है कि आज का नया भी कभी पुराना होगा,
और ये हमारा दुर्भाग्य है क्योंकि रिश्ते भी भौतिकता के शिकार हो गए।
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