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mithiladarshini Lives in Bihar, Bihar, India

मौन मेरी पहचान नहीं

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#Nojotovoice

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कितना विवश,कितना विकल,कितनी व्याकुलता है उसमें,वो गुलाब जो स्वयं अपने ही काँटो से घिरा है।जिसे वेदना तो होती है पर उसे खिलना पड़ता है।उलझा उलझा सा स्वयं अपनी दुनिया मे पर विश्व की दृष्टि में सौंदर्य प्रतीक बनकर ही आता है वो गुलाब।कभी अपनी आह नही दिखाता।उफ्फ ये विवशता रूप के राजा की। ©प्रियदर्शिनी शाण्डिल्य

#ग़ुलाब  कितना विवश,कितना विकल,कितनी व्याकुलता है उसमें,वो गुलाब जो स्वयं अपने ही 
काँटो से घिरा है।जिसे वेदना तो होती है पर उसे खिलना पड़ता है।उलझा उलझा सा स्वयं अपनी दुनिया मे पर विश्व की दृष्टि में सौंदर्य प्रतीक बनकर ही आता है वो गुलाब।कभी अपनी आह नही दिखाता।उफ्फ ये विवशता रूप के राजा की।

©प्रियदर्शिनी शाण्डिल्य

कितना विवश,कितना विकल,कितनी व्याकुलता है उसमें,वो गुलाब जो स्वयं अपने ही काँटो से घिरा है।जिसे वेदना तो होती है पर उसे खिलना पड़ता है।उलझा उलझा सा स्वयं अपनी दुनिया मे पर विश्व की दृष्टि में सौंदर्य प्रतीक बनकर ही आता है वो गुलाब।कभी अपनी आह नही दिखाता।उफ्फ ये विवशता रूप के राजा की। ©प्रियदर्शिनी शाण्डिल्य

कितना विवश,कितना विकल,कितनी व्याकुलता है उसमें,वो गुलाब जो स्वयं अपने ही काँटो से घिरा है।जिसे वेदना तो होती है पर उसे खिलना पड़ता है।उलझा उलझा सा स्वयं अपनी दुनिया मे पर विश्व की दृष्टि में सौंदर्य प्रतीक बनकर ही आता है वो गुलाब।कभी अपनी आह नही दिखाता।उफ्फ ये विवशता रूप के राजा की। ©प्रियदर्शिनी शाण्डिल्य

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नेह शब्द से छूट चला अब नही रही अंजन की मसि पीछे रह गयी याद तुम्हारी जाने मैं किस ओर चली सूचित तुम्हे हो जीत तुम्हारी पागल मन ने सुनना छोड़ा कागज़ ने मुँह मोड़ लिया आखर ने भी गुनना छोड़ा कोरा कोरा सा मन मेरा रिक्त शून्य ये लगता है राह कोई शब्दों तक जाये जान नहीं अब पड़ता है कभी नहीं कविता में मैं थी और ना ही थी मेरी जिंदगी कविता से जीवन अपना था जीवन की कविता न लिखी ©प्रियदर्शिनी शाण्डिल्य ©nehapriyadarshini

 नेह शब्द से छूट चला अब
नही रही अंजन की मसि
पीछे रह गयी याद तुम्हारी
जाने मैं किस ओर चली

                                सूचित तुम्हे हो जीत तुम्हारी
                                 पागल मन ने सुनना छोड़ा
                                  कागज़ ने मुँह मोड़ लिया
                                 आखर ने भी गुनना छोड़ा

कोरा कोरा सा मन मेरा
रिक्त शून्य ये लगता है
राह कोई शब्दों तक जाये
जान नहीं अब पड़ता है

                                  कभी नहीं कविता में मैं थी
                                   और ना ही थी मेरी जिंदगी
                                                        कविता से जीवन अपना था                             
                                जीवन की कविता न लिखी   
 ©प्रियदर्शिनी शाण्डिल्य                             
©nehapriyadarshini

नेह शब्द से छूट चला अब नही रही अंजन की मसि पीछे रह गयी याद तुम्हारी जाने मैं किस ओर चली सूचित तुम्हे हो जीत तुम्हारी पागल मन ने सुनना छोड़ा कागज़ ने मुँह मोड़ लिया आखर ने भी गुनना छोड़ा कोरा कोरा सा मन मेरा रिक्त शून्य ये लगता है राह कोई शब्दों तक जाये जान नहीं अब पड़ता है कभी नहीं कविता में मैं थी और ना ही थी मेरी जिंदगी कविता से जीवन अपना था जीवन की कविता न लिखी ©प्रियदर्शिनी शाण्डिल्य ©nehapriyadarshini

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#Nojotovoice #film_sajan #gazhal  देख के वो मुझे तेरा पलकें झुका लेना
याद बहुत आये तेरा मुस्कुरा देना
कैसे भुलाऊँ वो सारी बातें
वो मीठी रातें, वो मुलाकातें
जीये तो जीये कैसे हाय बिन आपके।

film~साजन
#nari_tum_keval_shraddha_ho #Nojotovoice #lajjasarg #kamayani #tarpan

प्रस्तुत है जयशंकर प्रसाद जी की कालजयी रचना या यूं कहें मानव जाति के उद्भव एवं विकास का विश्लेषण करती रचना "कामायनी" के लज्जा सर्ग का अंश "नारी तुम केवल श्रद्धा हो"। काव्यपाठ कुमार sir के स्मृति कार्यक्रम तर्पण से लिया गया है।उनके जैसा तो हो नही पाया फिर भी प्रयास किया है हमने। त्रुटियों के लिए क्षमाप्रार्थी हैं। 🙏🙏🙏🙏 #Nojotovoice #kamayani #lajjasarg #nari_tum_keval_shraddha_ho

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