Johnny Ahmed

Johnny Ahmed " क़ैस" Lives in Nagaon, Assam, India

क़ैस ऐ ज़िन्दगी तू किसी ख़राब सड़क की जुड़वाँ तो नहीं ज़रा ज़रा सी देर में गड्ढों की आज़माइश मिलती है

https://www.youtube.com/channel/UCh_7uEj5xxUly4erOVcltbA

  • Latest
  • Popular
  • Video
#uskechalejaanese #शायरी #johnnyahmedqais #ekrajkumari

नदी के किनारे ठीक उसी नीलमोहर की छाव तले बैठ जाता हूँ आजकल, जिसे भेदकर धूप हमें छू भी नहीं पाती थी हाँ अकेले बैठना थोड़ा कठिन तो ज़रूर है, लेकिन ज़रा सी देर में तुम्हारी बातें याद आने लगती और मेरे अकेलेपन का इलाज़ हो जाता। फिर मैं भी तुम्हारी ही तरह छोटे-छोटे पत्थर नदी में फेंकता और उस आवाज़ को महसूस करता जब पत्थर नदी के सीने में समा जाती रेत पर उंगलियों से तुम्हारा और अपना नाम लिखता और फिर तुम्हारी ही तरह ख़ुद से कहता हमारे नाम एक साथ कितना अच्छा लगते हैं… है ना? -जॉनी अहमद ‘क़ैस’ ©Johnny Ahmed " क़ैस"

#uskechalejaanese #river  नदी के किनारे
ठीक उसी नीलमोहर की छाव तले
बैठ जाता हूँ आजकल,
जिसे भेदकर धूप हमें छू भी नहीं पाती थी
हाँ अकेले बैठना थोड़ा कठिन तो ज़रूर है,
लेकिन ज़रा सी देर में तुम्हारी बातें याद आने लगती
और मेरे अकेलेपन का इलाज़ हो जाता।
फिर मैं भी तुम्हारी ही तरह छोटे-छोटे पत्थर नदी में फेंकता
और उस आवाज़ को महसूस करता
जब पत्थर नदी के सीने में समा जाती
रेत पर उंगलियों से तुम्हारा और अपना नाम लिखता
और फिर तुम्हारी ही तरह ख़ुद से कहता
हमारे नाम एक साथ कितना अच्छा लगते हैं… है ना?

-जॉनी अहमद ‘क़ैस’

©Johnny Ahmed " क़ैस"

चले जाते हैं मय-ख़ाने शराबी सोचकर बस ये उदासी की दवा बस इस शिफ़ा-ख़ाने में मिलती है ©Johnny Ahmed " क़ैस"

#uskechalejaanese #johnnyahmedqais #walkalone  चले जाते हैं मय-ख़ाने शराबी सोचकर बस ये 
उदासी की दवा बस इस शिफ़ा-ख़ाने में मिलती है

©Johnny Ahmed " क़ैस"

अब हमें ज़िन्दगी की ख़बर मिल रही मौत से जब हमारी नज़र मिल रही। ज़ीस्त उस रोज़ से बे-असर लग रही मौत जब से हमे बन सँवर मिल रही। जनवरी सर्द हम मांगते रह गए पर हमे जून की दोपहर मिल रही। इक ग़लत फ़ैसला एक दिन था किया और उसकी सज़ा उम्र भर मिल रही। शहर में अब कमी-ए-तवाइफ़ नहीं नाचनेवालियाँ फ़ोन पर मिल रही। ©Johnny Ahmed " क़ैस"

#johnnyahmedqais #ghazal  अब हमें ज़िन्दगी की ख़बर मिल रही
मौत से जब हमारी नज़र मिल रही।

ज़ीस्त उस रोज़ से बे-असर लग रही
मौत जब से हमे बन सँवर मिल रही।

जनवरी सर्द हम मांगते रह गए
पर हमे जून की दोपहर मिल रही।

इक ग़लत फ़ैसला एक दिन था किया
और उसकी सज़ा उम्र भर मिल रही।

शहर में अब कमी-ए-तवाइफ़ नहीं
नाचनेवालियाँ फ़ोन पर मिल रही।

©Johnny Ahmed " क़ैस"

जनता किसी गुस्ताख़ चींटी की तरह जूती तले मसल दी जाएगी। ताकि जनता माँग न सके अपने हक़ का कुछ भी। एक वेश्या के बदन से जैसे ग्राहक कपड़े नोचता है, ठीक वैसे ही, ज़ुबाँ से नोंचकर फेंक दिए जाएँगे उनकी सभी जायज़ माँगे। वो तमाम चुनावी वादें भूल जाने में ही भलाई है , चूँकि जान है तो जहान है और अपना देश महान है। ©Johnny Ahmed " क़ैस"

#kavita #Light #Janta  जनता

किसी गुस्ताख़ चींटी की तरह
जूती तले मसल दी जाएगी।
ताकि जनता माँग न सके
अपने हक़ का कुछ भी।

एक वेश्या के बदन से
जैसे ग्राहक कपड़े नोचता है,
ठीक वैसे ही,
ज़ुबाँ से नोंचकर फेंक दिए जाएँगे
उनकी सभी जायज़ माँगे।

वो तमाम चुनावी वादें 
भूल जाने में ही भलाई है , चूँकि
जान है तो जहान है
और अपना देश महान है।

©Johnny Ahmed " क़ैस"

मैं नहीं मगर बरामदे पे रखे गेरुवे फूलदान पूछ रहे थे उन पर अपने अल्फ़ाज़ का पानी कब डालोगी। घर की हवादार खिड़कियाँ पूछ रही थी तुम उन्हें नए पर्दों का तोहफ़ा कब दोगी। मैं नहीं मगर फ़र्श पूछ रही थी तुम उसे रंगोली से कब सजाओगी। अलमारी की किताबें पूछ रही थी तुम उन्हें मुस्कुराते हुए कब पढ़ोगी। मैं नहीं मगर आईना पूछ रहा था तुम उसे देखकर कब ख़ुदको निहारोगी। रसोई पूछ रही थी गुनगुनाते हुए खाना कब पकाओगी। मैं नहीं मगर घर का बिस्तर पूछ रहा था तुम दिन भर की थकन कब मिटाओगी। वो नर्म तकिया पूछ रहा था कब उसे सीने से लगाओगी । मैं नहीं मगर पूरा घर पूछ रहा था तुम लौटकर कब आओगी। ©Johnny Ahmed " क़ैस"

#uskechalejaanese #johnnyahmedqais #kavita  मैं नहीं मगर 
बरामदे पे रखे गेरुवे फूलदान पूछ रहे थे
उन पर अपने अल्फ़ाज़ का पानी कब डालोगी।
घर की हवादार खिड़कियाँ पूछ रही थी
तुम उन्हें नए पर्दों का तोहफ़ा कब दोगी।

मैं नहीं मगर
फ़र्श पूछ रही थी
तुम उसे रंगोली से कब सजाओगी।
अलमारी की किताबें पूछ रही थी
तुम उन्हें मुस्कुराते हुए कब पढ़ोगी।

मैं नहीं मगर 
आईना पूछ रहा था
तुम उसे देखकर कब ख़ुदको निहारोगी।
रसोई पूछ रही थी
गुनगुनाते हुए खाना कब पकाओगी।

मैं नहीं मगर 
घर का बिस्तर पूछ रहा था
तुम दिन भर की थकन कब मिटाओगी।
वो नर्म तकिया पूछ रहा था
कब उसे सीने से लगाओगी ।

मैं नहीं मगर 
पूरा घर पूछ रहा था
तुम लौटकर कब आओगी।

©Johnny Ahmed " क़ैस"
Trending Topic