प्रेम प्रेम कहते रहे, प्रेम कोई करता नहीं
प्रेम के नाम पर न खुद को झूठलाइए
आज का हैं प्रेम कैसा, रोज रोज नया होता
गुजरे जमाने वाला प्रेम करके दिखाइए
नैनन से मृगनैनी, चांद के से रूप जैसी
दूध जैसी राधा को, कृष्ण सावरे भा गए
मंद मंद मुस्काने, धनुष पर प्रत्यंचा ताने
रामजी जानकी को अयोध्या लेकर आ गए
प्रेम राम सीता सा या राधे कृष्ण जैसा यहां
प्रेम को समझिए और उसमे डूब जाइए
चौदह वर्ष दूर रहे, तनिक प्रेम ना कम हुआ
लक्ष्मण उर्मिल सा कोई प्रेम करके दिखाइए
¢डा• रामवीर गंगवार
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©Ramveer Gangwar
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