nikhil kapoor

nikhil kapoor Lives in Jaipur, Rajasthan, India

Hindi Writer and Poet

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“ ना प्रश्नों में , ना उत्तर में , ना किताबों में , ना किसी पुराने लिफ़ाफ़े में , खोजना अपनी हथेली में , जिससे तुमने मेरी हथेली थामी थी , वो एक गाँठ जो एक बेनाम रिश्ते की हमने कभी बांधी थी, चलो आज इस गाँठ को खोल देते हैं , मेरी डोर तुम रख लेना , तुम्हारी मैं सम्भाल लेता हूँ , यही है जिसे हम “ याद “ कहते हैं “

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मैं by Nikhil Kapoor Read more on www.lamhezindagike.in #hindipoetry #HindiPoem #mein #poem #hindikavita #hindipoet

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अंजान सी बातें.......... इत्र लगा रुमाल.......... बहा हुआ आटा........ शुगरफ्री से बनी खीर......... उफ़ ये आज के रिश्ते........ या तो संभाले हुए..... या बिखरे हुए..... निखिल

 अंजान सी बातें..........

इत्र लगा रुमाल..........

बहा हुआ आटा........

शुगरफ्री से बनी खीर.........

उफ़ ये आज के रिश्ते........

या तो संभाले हुए.....

या बिखरे हुए.....

निखिल

अंजान सी बातें.......... इत्र लगा रुमाल.......... बहा हुआ आटा........ शुगरफ्री से बनी खीर......... उफ़ ये आज के रिश्ते........ या तो संभाले हुए..... या बिखरे हुए..... निखिल

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फटे हुए नोट ....... बदल लाया हूँ बॅंक से...... फटे हुए रिश्तों को...... जाने क्यूँ बदलने की हिम्मत नहीं पड़ती....... निखिल

 फटे हुए नोट .......

बदल लाया हूँ बॅंक से......

फटे हुए रिश्तों को......

जाने क्यूँ बदलने की हिम्मत नहीं पड़ती....... 

निखिल

फटे हुए नोट ....... बदल लाया हूँ बॅंक से...... फटे हुए रिश्तों को...... जाने क्यूँ बदलने की हिम्मत नहीं पड़ती....... निखिल

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मेरी फटी जेब से....... वक़्त की सब रेजगारी छन गयी...... कुछ काग़ज़ात थे रिश्तों के....... बस बचे रह गये...... घबरा के कुछ इस तरह जकॅड के रखा........ मुट्ठी में उन्हे........ जब खोल के देखा तो........ नॅमी से....... कुछ लुद्गी सा तो रहा....... लिखा हुआ जो था..... सब..... बह गया....... 18/1/2014

 मेरी फटी जेब से.......

वक़्त की सब रेजगारी छन गयी......

कुछ काग़ज़ात थे रिश्तों के.......

बस बचे रह गये......

घबरा के कुछ इस तरह जकॅड के रखा........

मुट्ठी में उन्हे........

जब खोल के देखा तो........

नॅमी से.......

कुछ लुद्गी सा तो रहा.......

लिखा हुआ जो था.....

सब.....

बह गया....... 

18/1/2014

मेरी फटी जेब से....... वक़्त की सब रेजगारी छन गयी...... कुछ काग़ज़ात थे रिश्तों के....... बस बचे रह गये...... घबरा के कुछ इस तरह जकॅड के रखा........ मुट्ठी में उन्हे........ जब खोल के देखा तो........ नॅमी से....... कुछ लुद्गी सा तो रहा....... लिखा हुआ जो था..... सब..... बह गया....... 18/1/2014

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“ साँसे भी कुछ यूँ ही ठहर जाएँगी , एक दिन , रिश्तों में कोई बात ठहर गयी हो जैसे ।” www.lamhezindagike.in

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एक दिन ,
रिश्तों में कोई बात ठहर गयी हो जैसे ।”

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