ऊपर नीचे अपनी सरकार।
बीच में जनता पिसे हजार।
बंदर की तरह मैं खेल दिखाऊं।
जानवर का भी चारा खा जाऊं।
-आशीष रॉय।
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कविता - रामधारी सिंह दिनकर।
दिनकर की रचनाओं ने स्वाभिमान जगाया है।
दबी बुझी सी चिंगारी में फिर ज्वाला भड़काया है।
कलमों को हथियार बना अंग्रेजों को भगाया है।
कविताओं के बल पर आजादी हमें दिलाया है।
कविताओं में हुंकार जब दिनकर ने लगाया है।
दुश्मन के सीने को दिनकर ने खूब जलाया है।
दुश्मन हो या अपने सभी को आईना दिखलाया है।
लड़खड़ाती राजनीति को साहित्य से संभाला है।
कोरे कागज सा जीवन में साहित्य का दीप जलाया है।
उर्वशी में स्त्री का क्या कोमल ह्रदय दर्शाया है।
जो देश के लिए तन मन सब अर्पित कर जाता है।
वही राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर कहलाता है।
- आशीष रॉय।
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