#घाट
कल कल ध्वनि से बहतीं नदियां, संग साथ चला एक थार है,
कहीं पूज्य,कहीं किले तमाम, कहीं मंदिर अपरम्पार हैं,
कहीं उड़ रहे गुलाल,कहीं, रंगीं पुष्पों की बारिश है,
कहीं हो रहे दीप प्रज्वलित, तो कहीं क़त्ल की साजिश है,
गूंज रही ध्वनि घंटों की, और कहीं करतल,सुर ताल है,
कहीं घूमते प्रेमी युगल, तो कहीं मछुवारों का जाल है,
कहीं पर बन उपजाउ जहां को, भोजन भरपूर कराता है,
कहीं हरियाली,कहीं वन उपवन, कहीं दूषित मन शुद्ध कराता है,
कहीं संगम का तट कहलाता, कहीं मुक्ति का द्वार है,
कहीं जल रहीं ढेर चिताएं, तो कोई आत्महत्या को लाचार है,
क्या क्या देखा है इसने युगों से, ये हर घटना का कपाट है,
कभी पढ़ कर देखो इसके विचार, ये रुका हुआ सा .....घाट है।
@ऋषि सिंह
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