SARAS KUMAR poetry

SARAS KUMAR poetry Lives in Tikamgarh, Madhya Pradesh, India

I'm poet. I'm from tikamgarh madhyapradesh. My YouTube channel -Saras Kumar official

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#कविता #lovebeat

#lovebeat

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हमारी दास्ताँ किससे छुपी हैं पसीना माथे पे है लहू एड़ियों से बहता नंगा सिर हमारा सूर्य का ताप सहता गरीबी से नहीं डरते हम तो अमीरी से दुखी है हमारी दास्ताँ किससे छुपी हैं रोटियाँ सुखी हुई खायी पेट आधा सा भरा है हम इमारत को बनाते सामान मेरा रोड पे धरा है कौन सुनता हैं ओठों की चुप्पी हैं हमारी दास्ताँ किससे छुपी हैं

#श्रमिक #कविता #मजदूर #Labourday #labour  हमारी दास्ताँ किससे छुपी हैं 

पसीना माथे पे है 
लहू एड़ियों से बहता 
नंगा सिर हमारा 
सूर्य का ताप सहता 
गरीबी से नहीं डरते 
हम तो अमीरी से दुखी है 
हमारी दास्ताँ किससे छुपी हैं 

रोटियाँ सुखी हुई खायी 
पेट आधा सा भरा है 
हम इमारत को बनाते 
सामान मेरा रोड पे धरा है 
कौन सुनता हैं ओठों की चुप्पी हैं 
हमारी दास्ताँ किससे छुपी हैं

आँखों के आँसू न सूखे फिर से आँखें भर आई, हाय खुदा ने किरदार भी चुन- चुन के उठाए है।

#deathrishikapoor #riprishikapoor #RishiKapoor #बात #RIP  आँखों के आँसू न सूखे फिर से आँखें भर आई, 

हाय खुदा ने किरदार भी चुन- चुन  के उठाए है।

श्रद्धांजलि कितनी आँखों में तस्वीर छोड़ गए खुदा करे आंसू संग तस्वीर न बह जाए मेरे ओठों पे कितने कथन छोड़ गए खुदा करे हर वक्त ओठों पे रह जाए

#विचार #irrfankhan #Death #RIP  श्रद्धांजलि 

कितनी  आँखों  में  तस्वीर   छोड़  गए 
खुदा करे आंसू संग तस्वीर न बह जाए 
मेरे ओठों पे  कितने  कथन  छोड़  गए 
खुदा करे हर  वक्त ओठों  पे  रह  जाए

World earth day - Poetry - आपके चैनल के लिए - हे मानव अब और नहीं क्या मेरा कोई सिरमौर नहीं पर्वत काटे नदिया बाटी समतल कर दी घाटी -घाटी वृक्षों में अब पतझर आया धूमिल हो गई सारी माटी प्रदुषण ने अब जहर उगला, जिसका कोई ओर छोर नहीं हे मानव अब और नहीं। मैं जीवन हूँ प्राणदायनी पंचतत्व की मे हूँ स्वामिनी क्यों भूले के सब तेरा है हे कलयुगी रावण अभिमानी निर्मल, स्वच्छ, शाकाहारी रहो, तुम नहीं जानवर ढोर नहीं हे मानव अब और नहीं। प्लास्टिक, पाॅलिथिन त्यागों हे विश्व मानव तुम जागो शपथ ग्रहण करो आज ही पृथ्वी को अभी बचालो मैं निर्दयी हुई तो सुनलो, फिर तो किसी का ठौर नहीं, हे मानव अब और नहीं। -सरस कुमार

#कविता #Worldearthday #EarthDay #EARTHGIF  World earth day - 
Poetry -
आपके चैनल के लिए - 

हे मानव अब और नहीं 
क्या मेरा कोई सिरमौर नहीं 

पर्वत काटे नदिया बाटी 
समतल कर दी घाटी -घाटी 
वृक्षों में अब पतझर आया 
धूमिल हो गई सारी माटी 
प्रदुषण ने अब जहर उगला, 
जिसका कोई ओर छोर नहीं 
हे मानव अब और नहीं। 

मैं जीवन हूँ प्राणदायनी 
पंचतत्व की मे हूँ स्वामिनी 
क्यों भूले के सब तेरा है 
हे कलयुगी रावण अभिमानी 
निर्मल, स्वच्छ, शाकाहारी रहो,
तुम नहीं जानवर ढोर नहीं 
हे मानव अब और नहीं। 

प्लास्टिक, पाॅलिथिन त्यागों 
हे विश्व मानव तुम जागो 
शपथ ग्रहण करो आज ही 
पृथ्वी को अभी बचालो
मैं निर्दयी हुई तो सुनलो, 
फिर तो किसी का ठौर नहीं, 
हे मानव अब और नहीं। 


  -सरस कुमार

ऐ गमछा तो बुन्देलखंड में सदियों से प्रसिद्ध है हमारे दादा परदादा 12 हाथ का गमछा से सिर बाध ते थे भाई साहब हमारे यहाँ गमछा को हमेशा सिर में बाँधते है मौका आने पर ओढ़ते और बिछाते हैं इसे हमेशा गले में डालकर चलते है बाहर जाने पर पिता जी कहते है अरे बेटा - सुआपी से मौह तो बाँद ले (बुन्देली लोकभाषा ) और बेटा कहता हैं - हऔ दद्दा ( हाँ पिता जी ) हम इस बात की घमंड में है कि हमारा घर बुन्देलखंड में है। कवि - सरस कुमार

#विचार #गमछा  ऐ गमछा तो बुन्देलखंड में सदियों से 
प्रसिद्ध है 
हमारे दादा परदादा 12 हाथ का गमछा से 
सिर बाध ते थे 
भाई साहब हमारे यहाँ 
गमछा को हमेशा सिर में बाँधते है 
मौका आने पर 
ओढ़ते और बिछाते हैं 
इसे हमेशा गले में डालकर चलते है 
बाहर जाने पर पिता जी कहते है 
अरे बेटा - 
सुआपी से मौह तो बाँद ले (बुन्देली लोकभाषा )
और बेटा कहता हैं - 
हऔ दद्दा ( हाँ पिता जी )

हम इस बात की घमंड में है 
कि हमारा घर बुन्देलखंड में है। 

कवि - सरस कुमार
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