Ganesh Kumar Verma

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मेरे ऑफिस की वो लड़की उसकी हँसती आँखों में, सारी खुशियाँ दिख जाती है, मेरे ऑफिस की वो लड़की, याद बहुत अब आती है। अपने मैडम की इज्जत वो हद से ज्यादा करती है, पर सच्ची बातों की खातिर, मैडम से भी लड़ती है। कल क्या होगा जाने कौन, अच्छा समय है सबको भाता , जिस दिन वो ऑफिस आ जाये, मेरा दिन अच्छा हो जाता। ऑफिस का काम हमेशा वो, घर से भीं कर जाती है, अच्छी सुन्दर बातें करती, मन को वो हर्षाती है, मेरे ऑफिस की वो लड़की, याद बहुत अब आती है। तन रम्भा, मन सरस्वती है, मनमोहक नवयौवन है, पहाड़ी नदी सी वो चलती, गजगामीनी चंचल मन है। सबके मन की भाषा समझे, अपनी बात छिपाती है। मेरे ऑफिस की वो लड़की याद बहुत अब आती है, पुष्प, धुप और दीप सजी, वो पूजा की एक थाली है, इससे ज्यादा क्या और बताऊं, नाम उसका दीपाली है। नहीं किसी को ऊँचा बोले सदा हँसती-खिलखिलाती है। मन की बात न बोले हमसे, जाने क्यों शर्माती है, मेरे ऑफिस की वो लड़की याद बहुत अब आती है।। मन की कलम से.................... जन्म दिन की अशेष शुभकामनाओं के साथ 💐💐 ©Ganesh Kumar Verma

#जन्मदिन #कविता  मेरे ऑफिस की वो लड़की
उसकी हँसती आँखों में, सारी  खुशियाँ दिख जाती है,
मेरे ऑफिस की वो लड़की, याद बहुत अब आती है।
अपने मैडम की इज्जत वो हद से ज्यादा करती है,
पर सच्ची बातों की खातिर, मैडम से भी लड़ती है।
कल क्या होगा जाने कौन, अच्छा समय है सबको भाता ,
जिस दिन वो ऑफिस आ जाये, मेरा दिन अच्छा हो जाता।
ऑफिस का काम हमेशा वो,  घर से भीं कर जाती है,
अच्छी सुन्दर बातें करती, मन को वो हर्षाती है,
मेरे ऑफिस की वो लड़की, याद बहुत अब आती है।
तन रम्भा, मन सरस्वती है, मनमोहक नवयौवन है,
पहाड़ी नदी सी वो चलती, गजगामीनी चंचल मन है।
सबके मन की भाषा समझे, अपनी  बात छिपाती है।
मेरे ऑफिस की वो लड़की याद बहुत अब आती है, 
पुष्प, धुप और दीप  सजी,  वो पूजा की एक थाली है,
इससे ज्यादा क्या और बताऊं, नाम उसका दीपाली है।
नहीं किसी को ऊँचा बोले सदा हँसती-खिलखिलाती है।
मन की बात न बोले हमसे, जाने क्यों शर्माती है,
मेरे ऑफिस की वो लड़की याद बहुत अब आती है।।
          मन की कलम से....................
जन्म दिन की अशेष शुभकामनाओं के साथ 💐💐

©Ganesh Kumar Verma

पुरवी हवा के झोंके से फिर भीनी खुशबू आयी है । जलती होली की ज्वाला से पूरब में अरुणिमा छायी है गेहूं की बाली लाल हुई , महुए के फूलों में रस भर आयी है । गयी ठंड आया बसंत , मौसम में आयी अलसायी है । लाल पलाश , नीली अलसी, प्रकृति ने ली अंगड़ाई है । चेहरे भी रंग-विरंगे हैं , क्या फिर से होली आयी है ।।।। होली की हार्दिक शुभकामनाएँ गणेश कुमार वर्मा ............ ©Ganesh Kumar Verma

#कविता #Holi  पुरवी हवा के झोंके से 
फिर भीनी खुशबू आयी है ।
जलती होली की ज्वाला से 
पूरब में अरुणिमा छायी है 
गेहूं की बाली लाल हुई ,
महुए के फूलों में रस भर आयी है ।
गयी ठंड आया बसंत ,
मौसम में आयी अलसायी है ।
लाल पलाश , नीली अलसी,
प्रकृति ने ली अंगड़ाई है ।
चेहरे भी रंग-विरंगे हैं ,
क्या फिर से होली आयी है ।।।।
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ
गणेश कुमार वर्मा ............

©Ganesh Kumar Verma

#Holi

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#कविता #Holi  Holi is a popular and significant Hindu festival celebrated as the Festival of Colours, Love, and Spring. फिर से होली आयी है ।।।।
जलती होली की ज्वाला से 
पूरब में अरुणिमा छायी है 
गेहूं की बाली लाल हुई ,
महुए के फूलों में रस भर आयी है ।
गयी ठंड आया बसंत ,
मौसम में आयी अलसायी है ।
लाल पलाश , नीली अलसी,
प्रकृति ने ली अंगड़ाई है ।
चेहरे भी रंग-विरंगे हैं ,
क्या फिर से होली आयी है ।।।।
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ
गणेश कुमार वर्मा ............

©Ganesh Kumar Verma

#Holi

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सुन लो मन की आवाजों को……. मंदिर-मस्जिद क्यों दौड़ रहे, खोलो मन के दरवाजों को, बाहर इतना क्यों शोर करो, सुन लो मन की आवाजों को। बैठा है ईश्वर क्या मंदिर में? या चर्च में, या गुरुद्वारे में ? जीवनदाता जो जग का है, क्यों रहे वो किसी के सहारे में। नर- नर में है, चराचर में है, अम्बर में है और भुतालों में, क्या कैद है वो किसी मानव निर्मित दरवाजे और तालों में? नही मिलेगा वो मंदिर-मस्जिद और किसी गिरजाघर में, वो खुश ना हो पाखण्डों में , ना हीं विविध आडम्बर में। यदि उससे लगन लगानी हो, उससे गर आँख मिलानी हो , तो सुन लेना किसी लाचार ,और बेबस के फरियादों को । मंदिर-मस्जिद क्यों दौड़ रहे, खोलो मन के दरवाजों को । बाहर इतना क्यों शोर करो, सुन लो मन की आवाजों को। सारी ध्वनियां बंद करो, बस बजने दो मन की साजों को , मानव इतना क्यों शोर करो,बस सुन लो मन की आवाजों को। गणेश वर्मा ……. …..मन की कलम से ………………. ©Ganesh Kumar Verma

#मंदिर #कविता  सुन लो मन की आवाजों को…….
मंदिर-मस्जिद क्यों दौड़ रहे, खोलो मन के दरवाजों को,
बाहर इतना क्यों शोर करो, सुन लो मन की आवाजों को।
बैठा है ईश्वर क्या मंदिर में? या चर्च में, या गुरुद्वारे में ?
जीवनदाता जो जग का है, क्यों रहे वो किसी के सहारे में।
नर- नर में है, चराचर में है, अम्बर में है और भुतालों में, 
क्या कैद है वो किसी मानव निर्मित दरवाजे और तालों में?
नही मिलेगा वो मंदिर-मस्जिद और किसी गिरजाघर में, 
वो  खुश ना हो पाखण्डों में , ना हीं विविध आडम्बर में।
यदि उससे लगन लगानी हो, उससे गर आँख मिलानी हो ,
तो सुन लेना किसी लाचार ,और बेबस के फरियादों को ।
मंदिर-मस्जिद क्यों दौड़ रहे, खोलो मन के दरवाजों को ।
बाहर इतना क्यों शोर करो, सुन लो मन की आवाजों को।
सारी ध्वनियां बंद करो, बस बजने दो मन की साजों को , 
मानव इतना क्यों शोर करो,बस सुन लो मन की आवाजों को।
गणेश वर्मा …….  …..मन की कलम से ……………….

©Ganesh Kumar Verma

किनारे छूट जाते हैं । हवा का काम है चलना, नदी का काम है बहना, बहती नदी से अपने हीं किनारे छूट जाते हैं । ऐ नदी तू कोमल है , कमजोर नही है , पानी की धारों से भी पत्थर टूट जाते हैं । आज साथ हो तो खुशियां मना लो , नाच गा लो , पल-पल में ही अपने हमारे रुठ जाते हैं । फूंक दी पूरी सांस , उसने बांसुरी बजाने में , और महफ़िल बंजारे लूट जाते हैं । अपने सपनों की दुनिया मे, कभी तन्हा नहीं हूं मैं , बस जागते हीं उनकी यादों के सपने टूट जाते है। हमें मंजिल को पाना है , तुम्हे सागर को जाना है , बस इसी चक्कर मे,सफ़र के दिलकश नजारे छूट जाते हैं । हवा का काम है चलना, नदी का काम है बहना, बहती नदी से अपने भीं किनारे छूट जाते हैं । ©Ganesh Kumar Verma

#प्रेम #कविता  किनारे छूट जाते हैं ।
हवा का काम है चलना, नदी का काम है बहना,
बहती नदी से अपने हीं किनारे छूट जाते हैं ।
ऐ नदी तू कोमल है , कमजोर नही है ,
पानी की धारों से भी पत्थर टूट जाते हैं ।
आज साथ हो तो खुशियां मना लो , नाच गा लो ,
पल-पल में ही अपने हमारे रुठ जाते हैं ।
फूंक दी पूरी सांस , उसने बांसुरी बजाने में ,
और महफ़िल बंजारे  लूट जाते हैं ।
अपने सपनों की दुनिया मे, कभी तन्हा नहीं हूं मैं ,
बस जागते हीं उनकी यादों के सपने टूट जाते है। 
हमें मंजिल को पाना है , तुम्हे सागर को जाना है ,
बस इसी चक्कर मे,सफ़र के दिलकश नजारे छूट जाते हैं ।
हवा का काम है चलना, नदी का काम है बहना,
बहती नदी से अपने भीं किनारे छूट जाते हैं ।

©Ganesh Kumar Verma

एक नदी से प्यार मौत आनी है , आएगी एक दिन , जिंदगी से फिर भी ऐतबार कर लिया हमने , ये नदी तो बहता पानी है , बह जाएगी एक दिन फिर भी एक नदी से प्यार कर लिया हमने। एक ग़ज़ल है, तराना है, या है मोहब्बत मेरी , नाजुक है , कोमल है, छूने से सिहर जाती है । जल तरंगों सी उसकी लहराती बाहें , बलखाती राहें, चलती है , मचलती है, पर हमें देख ठहर जाती है । गिरते झरनों के इंद्रधनुष सा उड़ता, दुपट्टा, उसका , चंचल है , नटखट है , पर मेरे बाहों में सिमट जाती है । अभी यहाँ है, अब वहां है , कल न जाने कहाँ हो , फिर भी उससे , इश्क का इकरार कर लिया हमने , ये नदी तो चलता पानी है , चली जाएगी , फिर भी एक नदी से प्यार कर लिया हमने। गणेश वर्मा ..........मन की कलम से ...... ©Ganesh Kumar Verma

#प्यार #कविता  एक नदी से प्यार

मौत आनी है , आएगी  एक दिन ,
 जिंदगी से फिर भी ऐतबार कर लिया हमने ,
ये नदी तो बहता पानी है , बह जाएगी एक दिन 
फिर भी एक नदी से प्यार कर लिया हमने।
एक ग़ज़ल है, तराना है,  या है  मोहब्बत मेरी ,
नाजुक है , कोमल है,  छूने से सिहर जाती है ।
जल तरंगों सी उसकी लहराती बाहें , बलखाती राहें,
चलती है , मचलती है, पर हमें देख ठहर जाती है ।
गिरते झरनों के इंद्रधनुष सा उड़ता, दुपट्टा,  उसका ,
चंचल है , नटखट है , पर मेरे बाहों में सिमट जाती है ।
अभी यहाँ है, अब वहां है , कल न जाने कहाँ हो ,
फिर भी उससे , इश्क का इकरार कर लिया हमने ,
ये नदी तो चलता पानी है ,  चली जाएगी ,
फिर भी एक  नदी से प्यार कर लिया हमने।
गणेश वर्मा ..........मन की कलम से ......

©Ganesh Kumar Verma

#प्यार की याद

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