Kusum Sharma

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सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:|| अर्थात सम्पूर्ण धर्मों का आश्रय छोड़कर तू केवल मेरी शरण में आ जा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूंगा अंतर्यामी रूप से परमात्मा ही गुरु हैं और हम जीव रूप से शिष्य हैं ||श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय१८-श्लोक 66 || सारी सृष्टि बनाई उसी का एक हिस्सा हूँ। मेरी लेखनी ही मेरी पहचान है Married सभी रचनायें स्वरचित हैं 🙇

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अनुकूलता में प्रसन्न और प्रतिकूलता में दुखी हो गए ये तो स्थिरता नही है.. दोनों ही परिस्थिति में जो शांत चित्त से परिस्थितियों अनुसार व्यवहार करे वही स्थिर चित्त वाला होगा.. और इसके लिए हमे खुद ही अपना मंथन करना होगा.. हमारा आनंद दूसरों पर नही खुद पर निर्भर करता है दूसरे तो निमित्त बन जाते हैं.. ज्यादातर लोग सहज सरल व्यक्ति को समझ नही पाते तो न समझे... इसमें उनका कोई दोष नही सब अपने अपने हिसाब से सोचते हैं.. इसलिए वे भी अपनी जगह सही होते हैं.. कुसुम..✍️ ©Kusum Sharma

#विचार #कुसुम #holikadahan #thought  अनुकूलता में प्रसन्न और  प्रतिकूलता में दुखी हो गए ये तो स्थिरता नही है.. दोनों ही परिस्थिति में जो शांत चित्त से परिस्थितियों अनुसार व्यवहार करे वही स्थिर चित्त वाला होगा..

और इसके लिए हमे खुद ही अपना मंथन करना होगा.. हमारा आनंद दूसरों पर नही खुद पर निर्भर करता है दूसरे तो निमित्त बन जाते हैं.. 

ज्यादातर लोग सहज सरल व्यक्ति को समझ नही पाते तो न समझे... इसमें उनका कोई दोष नही सब अपने अपने हिसाब से सोचते हैं.. इसलिए वे भी अपनी जगह सही होते हैं..
कुसुम..✍️

©Kusum Sharma

प्रकृति में कुदरती बदलाव होता ही रहता है पतझड़ में पत्ते फूल सब झड़ जाते हैं और फिर बसंत आता है नई नई कोपलों के साथ फिर फूल खिलते हैं शाखाओं पर फिर पक्षियों का कलरव सुनाई देता है बस यही जीव के साथ होता है एक शरीर से दूसरे शरीर का चोला धारण करता है अपने कर्मों के अनुसार जहां उसने यात्रा खत्म की थी वहीं से फिर शुरू करता है अपने पीछे छूट गईं ख्वाहिशों के साथ फिर से बटोरने लगता है कंकड़ पत्थर और बांध लेता है गठरी ये सिलसिला चलता रहता है अनवरत जब तक हल्की सी भी कहीं कोई चाह छूट गई होती है ©Kusum Sharma

#writerscommunity #कुसुम #thought #writer  प्रकृति में कुदरती बदलाव होता ही रहता है पतझड़ में पत्ते फूल सब झड़ जाते हैं 

और फिर बसंत आता है नई नई कोपलों के साथ फिर फूल खिलते हैं शाखाओं पर फिर पक्षियों का कलरव सुनाई देता है

बस यही जीव के साथ होता है एक  शरीर से दूसरे शरीर का चोला धारण करता है अपने कर्मों के अनुसार

जहां उसने यात्रा खत्म की थी वहीं से फिर शुरू करता है अपने पीछे छूट गईं ख्वाहिशों के साथ 

फिर से बटोरने लगता है कंकड़ पत्थर और बांध लेता है गठरी

ये सिलसिला चलता रहता है अनवरत जब तक हल्की सी भी कहीं कोई चाह छूट गई होती है

©Kusum Sharma

हम प्रेम को शरीर में ढूँढ़ते हैं इसलिये मिलता नही प्रतिदान चाहते हैं और जब वह मिलता नही इसलिए धोखा दिखाई देता है अगर आप प्रेम करते हो तो करते हो फिर कोई करे या न करे कोई फर्क नही पड़ना चाहिए क्योंकि प्रेम ठहराव का नाम नही है ये एक से शुरू होकर विस्तार असीम होकर असीम में ही मिल जाता है फिर कोई भेदभाव नही रहता नफ़रत के लिए कोई जगह नही होती वह ईश्वरीय हो जाता है और जब ऐसा हो तभी समझना चाहिए कि आप प्रेममय हो गये हो अब सही मायने में प्रेम को जाना है #कुसुम ✍️❤️ #प्रेम ©Kusum Sharma

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प्रतिदान चाहते हैं और जब वह मिलता नही इसलिए धोखा दिखाई देता है 

अगर आप प्रेम करते हो तो करते हो फिर कोई करे या न करे कोई फर्क नही पड़ना चाहिए 

क्योंकि प्रेम ठहराव का नाम नही है ये एक से शुरू होकर विस्तार असीम होकर असीम में ही मिल जाता है

फिर कोई भेदभाव नही रहता नफ़रत के लिए कोई जगह नही होती वह ईश्वरीय हो जाता है 

और जब ऐसा हो तभी समझना चाहिए कि आप प्रेममय हो गये हो अब सही मायने में प्रेम को जाना है

#कुसुम ✍️❤️
#प्रेम

©Kusum Sharma

ज़माने की क्या कहें अब तो हवाओं ने भी साज़िशें शुरू कर दीं देख तेरे मेरे चर्चे फैल रहे दावानल की तरह #कुसुम ✍️❤️ ©Kusum Sharma

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अब तो 

हवाओं ने भी 

साज़िशें शुरू कर दीं

देख 

तेरे मेरे चर्चे 

फैल रहे 

दावानल की तरह

#कुसुम ✍️❤️

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देख मेरी आवारगी मुझे कहाँ तक ले आई सरेआम तेरी मोहब्बत में बदनाम हो गये कुसुम ©Kusum Sharma

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सरेआम तेरी मोहब्बत में बदनाम हो गये
कुसुम

©Kusum Sharma

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14 Love

गिरने दो अँखियों के झरनों से इश्क़ के अश्क़ों को मिलने दो दिल के समुंदर में अपने महबूब से ©Kusum Sharma

#शुभरात्रि #शायरी #कुसुम #poetclub #writers  गिरने दो अँखियों के झरनों से
इश्क़ के अश्क़ों को
मिलने दो दिल के समुंदर में
अपने महबूब से

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