चलो ऐसा करते हैं, मोहब्बत इक रोज़ करते हैं।
कभी मन्दिर कभी मस्जिद, इबादत रोज़ करते हैं।।
उनका कहना है, वो हमसे कोई तालुक़्क़ नहीं रखते
मेरी गुफ़्तगू पर किसीसे वो, शिकायत रोज़ करते हैं।।
बाहर वाला ज़हर भी दे दे तो हँस के पी ले लेकिन
ये बच्चे माँ बाप से घर में, बगावत रोज़ करते हैं।।
हो तुम नासमझ या वाकई तुम्हे दीखाई नहीं देता
हमारे अल्लाह हम सब पर, इनायत रोज़ करते हैं।।
बचा कर रखा है कुछ इश्क़, करेंगे तुम जब रूठ जाओगे
इसी कारण इश्क़ में अपने, किफायत रोज़ करते हैं।।
©कंचन प्रिया
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here