Arjun Singh

Arjun Singh Lives in Chitrakoot Dham, Uttar Pradesh, India

नादान मैं हूं नादान मेरी शायरी बस जुस्तजू एक दोस्त की है

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मेरी पहली मुलाकात में मैं बहुत नर्वस था मैंने जब उसे देखा मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था मेरे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं

 मेरी पहली मुलाकात में मैं बहुत नर्वस था
मैंने जब उसे देखा मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था
मेरे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं

Hart touching#arjun Singh#

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बहुत दिनों बाद मैंने अपनी डायरी और कलम उठायी लिखने को, लेकिन अचानक से उस डायरी में उसके नाम का भी जिक्र था जिसे हमने दिल से चाहा था मेरे हाथ काम नहीं कर रहे थे मेरा दिल बेचैन सा हो गया और मेरे आंसू मानो बस इसी दर्द का इन्तजार कर रहे थे मैंने तो कलम उठाई थी कुछ लिखने के लिए पर उसकी याद मानो फिर से वही जख्म दे दिया जो उससे बिछड़ते समय हुआ था

 बहुत दिनों बाद मैंने अपनी डायरी और कलम उठायी लिखने को, लेकिन अचानक से उस डायरी में उसके नाम का भी जिक्र था  जिसे हमने दिल से चाहा था
मेरे हाथ काम नहीं कर रहे थे
मेरा दिल बेचैन सा हो गया
और मेरे आंसू मानो  बस इसी दर्द का इन्तजार कर रहे थे
मैंने तो कलम उठाई थी कुछ लिखने के लिए पर 
उसकी याद मानो फिर से वही जख्म दे दिया जो
उससे बिछड़ते समय हुआ था

hart touching#arjun singh#

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मैंने उसे भूलने की खूब कोशिश की, लेकिन एक दिन वो हमें वही पुरानी चाचा जी की दुकान में मिल ही गई कमबख्त पता नहीं उस समय मेरे साथ क्या हुआ मेरे आख से एकाएक आंसू निकल पड़े वो पगली अब भी इस गुमनाम आशिक कि शायद आश लगाए हुए थी

 मैंने उसे भूलने की खूब कोशिश की, लेकिन एक दिन वो हमें वही  पुरानी चाचा जी की दुकान में मिल ही गई 
कमबख्त पता नहीं उस समय मेरे साथ क्या हुआ मेरे आख से एकाएक आंसू निकल पड़े वो पगली अब भी इस गुमनाम आशिक कि शायद आश लगाए हुए थी

hart touching#written by Arjun Singh#

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वक़्त घड़ी की सुईओं के साथ बीत रहा था, और एकाएक मुझे एहसास हुआ कि अब मुझे जगना होगा वरना जिन्दगी का पहिया गहरे कीचड़ के दलदल में धंसने को तैयार हैं

 वक़्त घड़ी की सुईओं के साथ बीत रहा था, और एकाएक मुझे एहसास हुआ कि अब मुझे जगना होगा
वरना जिन्दगी का पहिया 
गहरे कीचड़ के दलदल में धंसने को तैयार हैं

motivation speech#written by Arjun Singh#

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मैं हाथ में फाइलें पकड़ें एकटक उस दरवाज़े की ओर देख रहा था, जिस दरवाजे से मेरी मां कि दुवा और मेरे पिता जी की आसा दोनों का साथ में परिणाम आना था

 मैं हाथ में फाइलें पकड़ें एकटक उस दरवाज़े की ओर देख रहा था, जिस दरवाजे से मेरी मां कि दुवा और मेरे पिता जी की आसा दोनों का साथ में परिणाम आना था

hart touching#written by Arjun Singh#

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#विश्वहिंदीदिवस जी सही कहा आप कि भाषा सबसे ज्यादा अच्छी है पर जगत गुरू भारत और माता जैसी प्यारी हिन्दी का कोई मुकाबला ही नहीं

#विश्वहिंदीदिवस  #विश्वहिंदीदिवस जी सही कहा आप कि भाषा सबसे ज्यादा अच्छी है
पर जगत गुरू भारत और
माता जैसी प्यारी हिन्दी का कोई मुकाबला ही नहीं

written by#Arjun Singh#

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