अभिषेक क्षितिज

अभिषेक क्षितिज Lives in Indore, Madhya Pradesh, India

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 जब भी मिलने की बात कहते हो क्षितिज 
वो कभी कल कभी परसो के वादे करती है
व्यस्त है वो जरूरी काम में फंसी है कहते हो
मग़र आहट मिलने के इरादे नही रखती है
भरोसा करो इबादत में खुदा की ठीक है
मग़र याद रहे आहट शैतानियों की आदतें रखती है 
आँशुओ में सच का आईना दिखाया करती है
मग़र आँखे मिलाकर झूठ पर भी एतबार कराती है
आलम ये है कि अब हम उसे महसूस करते है 
मग़र याद आती है मग़र रुलाया नही करती है

अभिषेक क्षितिज



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©अभिषेक क्षितिज

जब भी मिलने की बात कहते हो क्षितिज वो कभी कल कभी परसो के वादे करती है व्यस्त है वो जरूरी काम में फंसी है कहते हो मग़र आहट मिलने के इरादे नही रखती है भरोसा करो इबादत में खुदा की ठीक है मग़र याद रहे आहट शैतानियों की आदतें रखती है आँशुओ में सच का आईना दिखाया करती है मग़र आँखे मिलाकर झूठ पर भी एतबार कराती है आलम ये है कि अब हम उसे महसूस करते है मग़र याद आती है मग़र रुलाया नही करती है अभिषेक क्षितिज - ©अभिषेक क्षितिज

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लोग कहते है समझते है मुझे, मग़र वो लोग समझते है मुझे? सवाल से सवाल है या ज़बाब समझते ग़र वो समझते है मुझे। अभिषेक क्षितिज . . ©अभिषेक क्षितिज

 लोग कहते है समझते है मुझे,
मग़र वो लोग समझते है मुझे?
सवाल से सवाल है या ज़बाब
 समझते ग़र वो समझते है मुझे।

अभिषेक क्षितिज










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©अभिषेक क्षितिज

लोग कहते है समझते है मुझे, मग़र वो लोग समझते है मुझे? सवाल से सवाल है या ज़बाब समझते ग़र वो समझते है मुझे। अभिषेक क्षितिज . . ©अभिषेक क्षितिज

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#meresapne  😶

#meresapne

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#StoryOfHonesty
#Allegations  आहट

#Allegations

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मेरे दरीचे के भीतर झांक कर हाल चाल जान लेते हो ज़नाब फिक्रमंद है ग़र आप तो दहलीज़ के पार क्यों न आते हो।। इन छोटी छोटी हरक़तों से जाने क्या ख़ुशी मिलती है आपको ज़बाब देने मेरे काशाने में मुझसे रूबरू हो हमे क्यों न बताते हो।। माना कि तेरे दिल के जज़्बात हमने समझे नही थे मग़र कोशिशें होगी समझने अबकी बार ,क्यों न आकर हमे समझाते हो।। आहट तुम समझो न समझो, गलती न तेरी न मेरी थी मग़र तुम समझतीं रही सज़ा सिर्फ़ तुम्हे मिली है ये ग़लत कहते हो।। (दरीचे-खिड़की)(काशाने -घर) ©अभिषेक क्षितिज

#brokenwindow  मेरे दरीचे  के भीतर झांक कर हाल चाल जान लेते हो
 ज़नाब फिक्रमंद है ग़र आप तो दहलीज़ के पार क्यों न आते हो।।

इन छोटी छोटी हरक़तों से जाने क्या ख़ुशी मिलती है आपको
ज़बाब देने मेरे काशाने  में  मुझसे रूबरू हो हमे क्यों न बताते हो।।

माना कि  तेरे दिल के जज़्बात हमने समझे नही थे मग़र
कोशिशें होगी समझने अबकी बार ,क्यों न आकर हमे समझाते हो।।

आहट तुम समझो न समझो, गलती न तेरी न मेरी थी मग़र 
तुम समझतीं रही  सज़ा सिर्फ़  तुम्हे मिली है  ये ग़लत कहते हो।।

 
(दरीचे-खिड़की)(काशाने -घर)

©अभिषेक क्षितिज
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