क्या कहती हो ठहरो नारी
संकल्प अश्रु-जल-से-अपने
तुम दान कर चुकी पहले ही
जीवन के सोने-से सपने
नारी! तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास-रजत-नग पगतल में
पीयूष-स्रोत-सी बहा करो
जीवन के सुंदर समतल में
देवों की विजय, दानवों की
हारों का होता-युद्ध रहा
संघर्ष सदा उर-अंतर में जीवित
रह नित्य-विरूद्ध रहा
आँसू से भींगे अंचल पर
मन का सब कुछ रखना होगा
तुमको अपनी स्मित रेखा से
यह संधिपत्र लिखना होगा
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