Habib Kinkhabwala

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सूरत गुजरात से ताल्लुक़ रखने वाले हबीब किंख़ाबवाला का जन्म ४/१०/९६ को सूरत में हुआ था। वाणिज्य से स्नातक हबीब ने सूरत से ही वाणिज्य प्रशासन में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। रचनात्मक सोच के धनी हबीब पेशे से शिक्षक ज़रूर हैं मगर इनके अंदर का फ़नकार अक्सर इनसे जुदा नज़र आता है। हबीब किंखाबवाला एक उम्दा शायर भी हैं। बचपन से पढ़ने-लिखने के शौक़ ने हबीब को एक बेहतरीन लेखक बनाने में अहम भूमिका निभायी है। इनकी इससे पहले भी एक किताब "A letter to terrorist" प्रकाशित हो चुकी है। हबीब किंखाबवाला आँखविहीन लोगों के लिए काम कर रही संस्था 'प्रोग्रेसिव फेडरेशन फॉर ब्लाइंड्स' एवं उर्दू-हिंदी साहित्य के संदर्भ में काम कर रही संस्था 'जौनीयत फाउंडेशन' के सक्रिय सदस्य भी हैं। हबीब किंख़ाबवाला से आप निचे दिए गए सपंर्क सूत्रों पर संपर्क कर सकते हैं। फेसबुक : Habib Kinkhabwala इंस्टाग्राम : @habib_410 ट्विटर : मोबाईल : +91 72849 08628 ई-मेल : hkinkhabwala@gmail.com

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दर्द भरे बाज़ारो में मुस्कान कहाँ से लाए पूछ रहे सब हमसे ये सामान कहाँ से लाए भूक नहीं थी काफी जो अब प्यास सताने आई लोग ख़सारे में और एक दुकान कहाँ से लाए चौंक गया माली जब तेरे बाद गया बागों में मुरझाए थे फूल सभी तुम जान कहाँ से लाए दोस्त तेरा तीर गया सीने से पार हमारे दुश्मन बोल रहा है हम पैकान कहाँ से लाए ©Habib Kinkhabwala

#शायरी #Death  दर्द भरे बाज़ारो में मुस्कान कहाँ से लाए 
पूछ रहे सब हमसे ये सामान कहाँ से लाए

भूक नहीं थी काफी जो अब प्यास सताने आई 
लोग ख़सारे में और एक दुकान कहाँ से लाए 

चौंक गया माली जब तेरे बाद गया बागों में 
मुरझाए थे फूल सभी तुम जान कहाँ से लाए 

दोस्त तेरा तीर गया सीने से पार हमारे 
दुश्मन बोल रहा है हम पैकान कहाँ से लाए

©Habib Kinkhabwala

#Death

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ये मेरा ना होना मेरे होने से बहतर है क्या यानी मुझ पे रोना मेरे रोने से बहतर है क्या ©Habib Kinkhabwala

#शायरी #Death  ये मेरा ना होना मेरे होने से बहतर है क्या 
यानी मुझ पे रोना मेरे रोने से बहतर है क्या

©Habib Kinkhabwala

#Death

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ज़माना लगा है मिटाने में मुझको नहीं दाल अब तू फ़साने में मुझको फ़रिश्ते नमाज़े कज़ा कर रहे थे खुदा ले रहा था निशाने में मुझको मुहब्बत की पहली सतह पे था फिर भी कमी ना रखी आज़माने में मुझको ये सोच के पतंगा खुशी से मरा है जला है दिया भी जलाने में मुझको कयामत है अब तो मकाँ जो ये कह दे लगी है दिवारें गिराने में मुझको ©Habib Kinkhabwala

#शायरी #Death  ज़माना लगा है मिटाने में मुझको 
नहीं दाल अब तू फ़साने में मुझको 

फ़रिश्ते नमाज़े कज़ा कर रहे थे 
खुदा ले रहा था निशाने में मुझको 

मुहब्बत की पहली सतह पे था फिर भी  
कमी ना रखी आज़माने में मुझको 

ये सोच के पतंगा खुशी से मरा है 
जला है दिया भी जलाने में मुझको 

कयामत है अब तो मकाँ जो ये कह दे 
लगी है दिवारें गिराने में मुझको

©Habib Kinkhabwala

#Death

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मुझमें है जो बसी हर कमी माज़रत ख़ुदकुशी शुक्रिया जिंदगी माज़रत जिंदगी भी अजब रंग से है भरी सोचती शुक्रिया बोलती माज़रत घर की दीवार पे लिख दिया खून से आखिरी शुक्रिया आखिरी माज़रत ©Habib Kinkhabwala

#शायरी #Death  मुझमें है जो बसी हर कमी माज़रत
ख़ुदकुशी शुक्रिया जिंदगी माज़रत

जिंदगी भी अजब रंग से है भरी 
सोचती शुक्रिया बोलती माज़रत 

घर की दीवार पे लिख दिया खून से 
आखिरी शुक्रिया आखिरी माज़रत

©Habib Kinkhabwala

#Death

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दे हमें तीर तो फिर कमाँ छीन ले शाह दे लफ्ज़ तो फिर ज़बाँ छीन ले थक गई रूह भी एक हीं जिस्म में अब नया दे मकाँ ये मकाँ छीन ले ना मुहब्बत बची ना बची है वफ़ा इन खिलौनो की अब चाबियाँ छीन ले आग आराम ना दे ज़मीं पे कहीं और ये आसमाँ भी धुआँ छीन ले है क़मर सिर पे अब लौट चल घर "हबीब" इससे पहले लहर सीपियाँ छीन ले ©Habib Kinkhabwala

#शायरी #Death  दे हमें तीर तो फिर कमाँ छीन ले
शाह दे लफ्ज़ तो फिर ज़बाँ छीन ले

थक गई रूह भी एक हीं जिस्म में 
अब नया दे मकाँ ये मकाँ छीन ले

ना मुहब्बत बची ना बची है वफ़ा 
इन खिलौनो की अब चाबियाँ छीन ले

आग आराम ना दे ज़मीं पे कहीं 
और ये आसमाँ भी धुआँ छीन ले

है क़मर सिर पे अब लौट चल घर "हबीब"
इससे पहले लहर सीपियाँ छीन ले

©Habib Kinkhabwala

#Death

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प्रिय शम्मा, उम्मीद है तुम जिस हाल में हो उसी हाल से मैं गुज़रु हमारे गम में किसी तरह का इम्तियाज़ ना हो| अभी हाली मेरी मुलाक़ात मेरे कुछ अज़ीज़ से हुई| उन्होंने वैसे तो कई बेमतलब के सवाल किये मेरी नज़्मों पे लेकिन एक सवाल जो मुझे बेहद खूबसूरत लगा वो ये था की हम शायर अपनी नज़्मों में झूठ क्यूँ लिखते है क्यूँ वो बाते लिखते है जिनका होना मुमकिन ही नहीं| मैंने उन्हें तो खैर कोई जवाब ना दिया मगर सोचा तुम्हे इससे महरूम ना रखूँ| हाँ ये सच है हमने जो भी लिखा जब भी लिखा जैसे भी लिखा सब झूठ था और आगे भी लिखेंगे ताकि हम वो एक हक़ीक़त को सँवार सके जिसे दुनिया मिटाने में लगी हुई है| जैसे सूरज चाँद को सामने लाने के लिए रात ईजाद करती है उसे अपनी रौशनी देती है ताकि लोग चाँद की खूबसूरती को निहार सके वैसे ही वो सूरज हम शायर है ये रौशनी वो नज़्मे है और चाँद तुम हो| तुम्हे पता है मैं ये अक्सर सोचता हूँ के अगर मुझे कभी सही और गलत के दरमियाँ फैसला करना पढ़ा तो मैं कैसे करूँगा लेकिन फिर मैं हँस देता हूँ और तुम्हारी ओर देखता हूँ मेरे लिए तो जिस तरफ तुम खड़ी हो वो सही है और जिस तरफ नहीं वो बात गलत है| खैर मैं दुआ करता हूँ की ये बारिश जल्द ख़त्म हो जाए और तुम्हारी लौ फिर से मुझे अपना रास्ता दिखाए तुम्हारा, परवाना ©Habib Kinkhabwala

#जानकारी #Death  प्रिय शम्मा, 

उम्मीद है तुम जिस हाल में हो उसी हाल से मैं गुज़रु हमारे गम में किसी तरह का इम्तियाज़ ना हो| अभी हाली मेरी मुलाक़ात मेरे कुछ अज़ीज़ से हुई| उन्होंने वैसे तो कई बेमतलब के सवाल किये मेरी नज़्मों पे लेकिन एक सवाल जो मुझे बेहद खूबसूरत लगा वो ये था की हम शायर अपनी नज़्मों में झूठ क्यूँ लिखते है क्यूँ वो बाते लिखते है जिनका होना मुमकिन ही नहीं| मैंने उन्हें तो खैर कोई जवाब ना दिया मगर सोचा तुम्हे इससे महरूम ना रखूँ| 

हाँ ये सच है हमने जो भी लिखा जब भी लिखा जैसे भी लिखा सब झूठ था और आगे भी लिखेंगे ताकि हम वो एक हक़ीक़त को सँवार सके जिसे दुनिया मिटाने में लगी हुई है| जैसे सूरज चाँद को सामने लाने के लिए रात ईजाद करती है उसे अपनी रौशनी देती है ताकि लोग चाँद की खूबसूरती को निहार सके वैसे ही वो सूरज हम शायर है ये रौशनी वो नज़्मे है और चाँद तुम हो| 

तुम्हे पता है मैं ये अक्सर सोचता हूँ के अगर मुझे कभी सही और गलत के दरमियाँ फैसला करना पढ़ा तो मैं कैसे करूँगा लेकिन फिर मैं हँस देता हूँ और तुम्हारी ओर देखता हूँ मेरे लिए तो जिस तरफ तुम खड़ी हो वो सही है और जिस तरफ नहीं वो बात गलत है| 

खैर मैं दुआ करता हूँ की ये बारिश जल्द ख़त्म हो जाए और तुम्हारी लौ फिर से मुझे अपना रास्ता दिखाए 

तुम्हारा, 
परवाना

©Habib Kinkhabwala

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