Priya Kumari Niharika

Priya Kumari Niharika Lives in Durgapur, West Bengal, India

काशी पुण्य की नगरी और सकल विश्व का पारस है मन्त्रमुग्ध कर लेता सबको ये रंगरेज़ बनारस है 💗🇮🇳🌅⛵🍯🦚🐦🦜💐🥰

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शीर्षक: ढलती उम्र और संतान उन हथेलियों से उंगलियां छूटना चाहती है पूरी ताकत लगाकर जिन्हें थाम कर कभी हुई थी गलियों से मुलाकात जिनकी रीढ़ अब लगभग झुकी है उम्र और दायित्व के वजन से उन्हीं कंधों पर बचपन में सवारी लगती चेतक सी जरूरत भी पड़ी कभी ,सहारे की यदि उन्हें स्वयं के लाल की परछाई,कदाचित ढूंढ न पाएं प्रतिक्षा की उम्मीद में वक्त कुछ ही बचा है अब मगर यह भी नहीं है तय कि तुम मिल पाओगे या नहीं हमेशा साफ चश्मे को किया करता हूं मैं अक्सर नजर कमजोर हैं मेरी मन बहला लिया करता हूं कहकर कि कदाचित तुम मुझे अब दिख नहीं पाते अभी मैं भूल जाता हूं , जले चूल्हे को बंद करना पता घर का नहीं केवल, खुले जिप को भी बंद करना बटन वाली कमीज अब मैं ,पहन पता नहीं खुद से मगर कुर्ते में अक्सर ही मुझे अब ठंड लगती है शरीर अब शव बना जाता मरघट सा लगे घर भी सरसैया लगे बिस्तर सुकूं मिलता न क्षण भर भी बहुत तरसी मेरी अखियां, तुम्हें फुर्सत मिली न पर नहीं मैं याद आता क्या सूना लगता है अब शहर क्या वीडियो कॉल पर ही फिर से मिलने का इरादा है ? या मैं समझूं मेरी चिन्ता,मेरे दुलार से तेरी तनख्वाह ज्यादा है कभी उत्सव के न्योते पर नवादा ऑफलाइन आ जाना पिता अनुरोध करता है, बनाना न कोई बहाना खड़े पाया था साथ अपने ,कठिन हालात में जिनको अकेला पा रहे वे खुद को ,जरूरत है उन्हें तेरी तुम्हारी आश में उनको, जीते देख पाया हूं सहारे के नहीं मोहताज, तुम्हीं उनकी हो कमजोरी स्वरचित कविता –प्रिया कुमारी ©Priya Kumari Niharika

#nojotopoetry #MoonShayari #Tranding  शीर्षक: ढलती उम्र और संतान
उन हथेलियों से उंगलियां
छूटना चाहती है पूरी ताकत लगाकर
जिन्हें थाम कर कभी 
हुई थी गलियों से मुलाकात 
जिनकी रीढ़ अब लगभग झुकी है
उम्र और दायित्व के वजन से
उन्हीं कंधों पर बचपन में
सवारी लगती चेतक सी
जरूरत भी पड़ी कभी ,सहारे की यदि उन्हें
स्वयं के लाल की परछाई,कदाचित ढूंढ न पाएं 
प्रतिक्षा की उम्मीद में वक्त कुछ ही बचा है अब
मगर यह भी नहीं है तय
कि तुम मिल पाओगे या नहीं 
हमेशा साफ चश्मे को
किया करता हूं मैं अक्सर
नजर कमजोर हैं मेरी 
मन बहला लिया करता हूं कहकर कि कदाचित तुम
 मुझे अब दिख नहीं पाते
अभी मैं भूल जाता हूं , जले चूल्हे को बंद करना
पता घर का नहीं केवल, खुले जिप को भी बंद करना
बटन वाली कमीज अब मैं ,पहन पता नहीं खुद से
मगर कुर्ते में अक्सर ही मुझे अब ठंड लगती है 
शरीर अब शव बना जाता
मरघट सा लगे घर भी
सरसैया लगे बिस्तर
सुकूं मिलता न क्षण भर भी
बहुत तरसी मेरी अखियां,
तुम्हें फुर्सत मिली न पर 
नहीं मैं याद आता क्या
 सूना लगता है अब शहर
क्या वीडियो कॉल पर ही फिर से मिलने का इरादा है ?
या मैं समझूं मेरी चिन्ता,मेरे दुलार से तेरी तनख्वाह ज्यादा है
कभी उत्सव के न्योते पर नवादा ऑफलाइन आ जाना
पिता अनुरोध करता है, बनाना न कोई  बहाना 
खड़े पाया था साथ अपने ,कठिन हालात में जिनको
अकेला पा रहे वे खुद को  ,जरूरत है उन्हें तेरी
तुम्हारी आश में उनको, जीते देख पाया हूं
सहारे के नहीं मोहताज, तुम्हीं उनकी हो कमजोरी
                    स्वरचित कविता
                   –प्रिया कुमारी

©Priya Kumari Niharika

आप बने आदर्श हमारे, व्यापक हमारे हुए विचार थाम कर शिष्यों की उंगली, आप कराते नैया पार नई दिशा जो दी आपने ,जटिलताएं सरल हो गई सीखने के प्रयास अनेकों,धीरे-धीरे सफल हो गई भूल हमारी करी क्षमा,और हृदय से अपनाया है संघर्षों का सामना करना, अपने ही सिखलाया है कमी हमेशा शेष रहेगी, आप हमेशा साथ रहे कमियों को हम दूर करें तो,आप हमें शाबाश कहें अपरिमित विवेक आपका, अतुलनीय अंदाज है आप से गुरुवर के लिए,कम मेरे अल्फाज़ है ©Priya Kumari Niharika

#कविता  आप बने आदर्श हमारे, व्यापक हमारे हुए विचार
 थाम कर शिष्यों की उंगली, आप कराते नैया पार
 नई दिशा जो दी आपने ,जटिलताएं सरल हो गई
 सीखने के प्रयास अनेकों,धीरे-धीरे सफल हो गई
 भूल हमारी करी क्षमा,और हृदय से अपनाया है
 संघर्षों का सामना करना, अपने ही सिखलाया है 
कमी हमेशा शेष रहेगी, आप हमेशा साथ रहे
 कमियों को हम दूर करें तो,आप हमें शाबाश कहें
अपरिमित विवेक आपका, अतुलनीय अंदाज है
आप से गुरुवर के लिए,कम मेरे अल्फाज़ है

©Priya Kumari Niharika

आप बने आदर्श हमारे, व्यापक हमारे हुए विचार थाम कर शिष्यों की उंगली, आप कराते नैया पार नई दिशा जो दी आपने ,जटिलताएं सरल हो गई सीखने के प्रयास अनेकों,धीरे-धीरे सफल हो गई भूल हमारी करी क्षमा,और हृदय से अपनाया है संघर्षों का सामना करना, अपने ही सिखलाया है कमी हमेशा शेष रहेगी, आप हमेशा साथ रहे कमियों को हम दूर करें तो,आप हमें शाबाश कहें अपरिमित विवेक आपका, अतुलनीय अंदाज है आप से गुरुवर के लिए,कम मेरे अल्फाज़ है ©Priya Kumari Niharika

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#कविता #walkingalone  शीर्षक: क्या लिखूं 
है कलम भी मौन देखो, स्याही भी सोई हुई
पन्ने भी खामोश से हैं, लब्ज भी खोई हुई
 है मगर एक चित जो, ना सो रहा, ना खो रहा
 और विचार अज्ञात चंचल, चित्त में बोई हुई
है विषय कितने उमड़ते, चित के भीतर स्वयं
 क्या लिखूं, मन की ज्योति, या छिपे कोने का तम
क्या लिखूं संघर्ष कोई, या लिखूं कुछ उससे कम
या लिखूं कुछ हंसी ठिठोली, या नयन कर दू मैं नम
क्या लिखूं स्वच्छंदता को, या गुलामी की कसक
 या लिखूं मैं आज को, या लिखू बीते दशक
युद्ध का उद्घोष लिखू, सैनिकों का जोश लिखूं
रणभूमि परिघोष लिखू, रक्तपान संतोष लिखू
या दमन लिख दूं किसी का, या कोई जयघोष लिख दू
क्या लिखूं तुम ही कहो ना, क्या किसी का दोष लिख दू
योजना ऐलान लिख दू या गरीबों का बयान
 कल्पनाओं को लिखूं, या हकीकत पे दू ध्यान
 क्या लिखू कोई शहादत, या शहीदी जंग की
या गिनाऊ ख्वाब उनके, थी वो कितने रंग की
या वो अंतिम स्वर सुनाऊ, उसके अंतरंग की
या दिखा दू वही नजारे, छलनी करते अंग की
 वेदना लिख दूं किसी की, या लिखूं उतरंग मैं 
या लिखू हृदय में उठते, असिमित तरंग मैं
क्या लिखूं तुम ही कहो ना, हो गई हूं तंग मैं
 न्याय कर दूं कैसे आखिर इस कलम के संग मैं

©Priya Kumari Niharika

#walkingalone

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हर सुबह खिलखिलाये, मुस्कुराये निशा, हो बदी दूर कोसों, मिले नूतन दिशा खुली आखों से जिए, हर ख्वाब को ग़र चुनौती भी दे तो,आफताब को जन्मदिन की मुबारकवाद आपको अलविदा कह दे कड़वे हर स्वाद को और लगा ले गले से, ये अनमोल पल चमके कुंदन से ज्यादा, आनेवाले हर कल जन्मदिन की मुबारकवाद आपको और हमेशा करे जग भी याद आपको ©Priya Kumari Niharika

#कविता #DiyaSalaai  हर सुबह खिलखिलाये, मुस्कुराये निशा,
हो बदी दूर कोसों, मिले नूतन दिशा
खुली आखों से जिए, हर ख्वाब को
ग़र चुनौती भी दे तो,आफताब को
जन्मदिन की मुबारकवाद आपको
अलविदा कह दे कड़वे हर स्वाद को 
और लगा ले गले से, ये अनमोल पल
चमके कुंदन से ज्यादा, आनेवाले हर कल
जन्मदिन की मुबारकवाद आपको
और हमेशा करे जग भी याद आपको

©Priya Kumari Niharika

#DiyaSalaai

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आरंभ नवल वर्ष का जन्म के उत्कर्ष का आनंद और हर्ष का जीवन के मर्ष का नववर्ष की शुभकामना बढ़ती रहे संभावना नव संकल्प की हो भावना हो पूर्ण हर मनोकामना "हो नवल चाह, हो नई उमंग लीजियें नवल राह, छू नई तरंग उड़ती रहें विश्वास संग पंखों में भर खुशियों के रंग स्वरचित कविता ©Priya Kumari Niharika

#कविता #holihai  आरंभ नवल वर्ष का
 जन्म के उत्कर्ष का
 आनंद और हर्ष का
जीवन के मर्ष का
नववर्ष की शुभकामना
बढ़ती रहे संभावना 
 नव संकल्प की हो भावना
हो पूर्ण हर मनोकामना
"हो नवल चाह, हो नई उमंग
लीजियें नवल राह, छू नई तरंग
उड़ती रहें विश्वास संग
पंखों में भर खुशियों के रंग
 स्वरचित कविता

©Priya Kumari Niharika

#holihai

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#कविता #Likho  सस्त्र बताये शिक्षा को और मानवीय मूल्यों को आधार
हमें चेतना दी आपने,व्यापक हमारे हुए विचार
 प्रेरणा के हैं उत्स आप, और अनुभव का उत्कर्ष आपमें
 समझाने की घनी प्रतिभा, विषयों का निष्कर्ष आपमें 
 अध्ययन की ऊर्जा और रूचि, बढ़ी आप की युक्ति से
 शुद्ध हुए विचार हमारे, जड़ताओं की मुक्ति से 
 तर्कपूर्ण विचार हुए अब, सूक्ष्म, सघन हुए दृष्टिकोण
 आपकी समतामूलक दृष्टि से, हार गए परशुराम व गुरु द्रोण
 संकीर्णताएँ नष्ट हुई, विस्तार फलक सा पाया है
 ज्ञान का मनका गुरु आपने, हमसब पर बरसाया है
 पूर्वाग्रह सब धरे रह गए, बहुआयामी बनी धारणा
 रूढ़ियों के विरुद्ध हमने,सीख लिया है अब दहाड़ना
 चरणों में हम करे समर्पण, नमन करे शत बार गुरु
 मार्गदर्शक बनकर आपने, सदा किया उद्धार गुरु 
 अपरिमित विवेक आपका, अतुलनीय अंदाज है
 अप्रतिम ये मंगल बेला, निरुपम दिवस भी आज है
 जन्मदिवस की अनंत बधाई, चरणों में प्रणाम है
 आराध्य हैं गुरु जी, जिनका हृदय अक्षयधाम है

©Priya Kumari Niharika

#Likho Dipak Jha Sethi Ji खामोशी और दस्तक Ankit verma 'utkarsh' Rakhie.. "दिल की आवाज़"

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