मनुष्य वही श्रेष्ठ माना जाएगा, जो कठिनाई में अपनी राह निकालता है.
बीच रास्ते से लौटने का कोई फायदा नहीं, लौटने पर भी उतनी ही दूरी तय करनी पड़ेगी जितनी दूरी तय कर लक्ष्य तक पहुच सकते है।
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थोड़ी सी तू अस्त-व्यस्त है…! फिर भी...,”ज़िंदगी”…., तू ज़बरदस्त है…
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समय चला, पर कैसे चला…पता ही नहीं चला… ज़िन्दगी की आपाधापी में, कब निकली उम्र हमारी, यारों पता ही नहीं चला. कंधे पर चढ़ने वाले बच्चे, कब कंधे तक आ गए, पता ही नहीं चला. किराये के घर से शुरू हुआ था सफर अपना कब अपने घर तक आ गए, पता ही नहीं चला.
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