Devendra Pratap Singh

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mai kuch bhi nahi...

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कहना चाहता था बहुत कुछ पर कुछ कहा ही नहीं रोया इतना अश्क सुख चुके हैं एक बूंद भी बहा ही नहीं बेबाक, बिफकरा, मस्तमौला जो शख्श था मैं कभी अब देखता हूं जब आईने में वो रहा ही नहीं गुम सा गया है कहीं कुछ पता नहीं चलता तलाशता रहता हूं खुद भी जो शख्स मैं कल था ये चालाकियों का दौर है रिश्ते दिल से निभाता था मगर इस बेरहम जमाने में क्या काम है दिल है अजनबी शहर से बेहतर है हमें गांव में सुकून था वो सरदी में अमरूद के मजे आम का समय जून था इस शहर ने हमे आज इतना है खामोश कर दिया है वरना मैं भी था कभी अपनी मैइया का लल्ला मासूम सा यहां भरी सा रहता है मन जैसे सब कुछ हूं मैं हार चुका धीरे धीरे धीरे धीरे हूं खुद को भी मैं मार चुका हैं चेहरे यहां पर कई और हर चेहरे के दो चेहरे हैं जो समझे हालत मेरी नही ऐसा कोई यार मिला -Deva ©Devendra Pratap Singh

#कविता  कहना चाहता था बहुत कुछ
पर कुछ कहा ही नहीं
रोया इतना अश्क सुख चुके हैं
एक बूंद भी बहा ही नहीं
बेबाक, बिफकरा, मस्तमौला
जो शख्श था मैं कभी
अब देखता हूं जब आईने में 
 वो रहा ही नहीं
गुम सा गया है कहीं
कुछ पता नहीं चलता
तलाशता रहता हूं खुद भी
जो शख्स मैं कल था
ये चालाकियों का दौर है
रिश्ते दिल से निभाता था
मगर इस बेरहम जमाने में
क्या काम है दिल है
अजनबी शहर से बेहतर है
हमें गांव में सुकून था
वो सरदी में अमरूद के मजे
आम का समय जून था
इस शहर ने हमे आज इतना है
खामोश कर दिया है
वरना मैं भी था कभी अपनी
मैइया का लल्ला मासूम सा
यहां भरी सा रहता है मन
जैसे सब कुछ हूं मैं हार चुका
धीरे धीरे धीरे धीरे
हूं खुद को भी मैं मार चुका
हैं चेहरे यहां पर कई और 
हर चेहरे के दो चेहरे हैं
जो समझे हालत मेरी
नही ऐसा कोई यार मिला

-Deva

©Devendra Pratap Singh

कहना चाहता था बहुत कुछ पर कुछ कहा ही नहीं रोया इतना अश्क सुख चुके हैं एक बूंद भी बहा ही नहीं बेबाक, बिफकरा, मस्तमौला जो शख्श था मैं कभी अब देखता हूं जब आईने में वो रहा ही नहीं गुम सा गया है कहीं कुछ पता नहीं चलता तलाशता रहता हूं खुद भी जो शख्स मैं कल था ये चालाकियों का दौर है रिश्ते दिल से निभाता था मगर इस बेरहम जमाने में क्या काम है दिल है अजनबी शहर से बेहतर है हमें गांव में सुकून था वो सरदी में अमरूद के मजे आम का समय जून था इस शहर ने हमे आज इतना है खामोश कर दिया है वरना मैं भी था कभी अपनी मैइया का लल्ला मासूम सा यहां भरी सा रहता है मन जैसे सब कुछ हूं मैं हार चुका धीरे धीरे धीरे धीरे हूं खुद को भी मैं मार चुका हैं चेहरे यहां पर कई और हर चेहरे के दो चेहरे हैं जो समझे हालत मेरी नही ऐसा कोई यार मिला -Deva ©Devendra Pratap Singh

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#विचार

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#कविता

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Ek nazar dekha tumko aur fida ho gaya Mai tujhme hi kahin laapta ho gaya noor hai tere chehre me kuch aisa meri jaan Mai gunah karke bhi sabhi begunah ho gaya Log poochte hain mujhse Deva hua kya hai Kya tha tu kabhi aur kya se kya ho gaya Jo shakhsa mehfilon ki jaan tha kabhi Aaj dekhte hi dekhte bejubaan ho gayea Ki ab aaine me mujhko nazar tu hi aata hai Mai tujhme kuch is qadar fanaa ho gaya Bada hi tajjub hota hai ye jankar murshad Kaise koi ajnabi aaj mera khuda ho gaya Itni mohabbat ke baad bhi tujhe paa na saka Mai wafa karke bhi Jaana Bewafa ho gaye Are abhi to mile, nazar bhar dekha bhi na tha Do pal bhi na rahe sath aur juda ho gaye 🥀💔 -Deva . ©Devendra Pratap Singh

#कविता #Her  Ek nazar dekha tumko aur fida ho gaya
Mai tujhme hi kahin laapta ho gaya
noor hai tere chehre me kuch aisa meri jaan
Mai gunah karke bhi sabhi begunah ho gaya
Log poochte hain mujhse Deva hua kya hai
Kya tha tu kabhi aur kya se kya ho gaya
Jo shakhsa mehfilon ki jaan tha kabhi
Aaj dekhte hi dekhte bejubaan ho gayea
Ki ab aaine me mujhko nazar tu hi aata hai
Mai tujhme kuch is qadar fanaa ho gaya
Bada hi tajjub hota hai ye jankar murshad
Kaise koi ajnabi aaj mera khuda ho gaya
Itni mohabbat ke baad bhi tujhe paa na saka
Mai wafa karke bhi Jaana Bewafa ho gaye
Are abhi to mile, nazar bhar dekha bhi na tha
Do pal bhi na rahe sath aur juda ho gaye


🥀💔
-Deva







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©Devendra Pratap Singh

#Her

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एक शायर भी रहता था कभी तेरे शहर में जाना❣️ तुम रुख्सत क्या हुए कमबख्त बेमौत मारा गया -Deva . ©Devendra Pratap Singh

#शायरी  एक शायर भी रहता था
कभी तेरे शहर में जाना❣️
तुम रुख्सत क्या हुए
कमबख्त बेमौत मारा गया

-Deva

























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©Devendra Pratap Singh

एक शायर भी रहता था कभी तेरे शहर में जाना❣️ तुम रुख्सत क्या हुए कमबख्त बेमौत मारा गया -Deva . ©Devendra Pratap Singh

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#विचार #BeatMusic

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