निसतो नाबुत हो जाएंगे यह महामारी के किले, जब तक धैर्य और धीर कि हमारे तीर बाकी हैं ;रखें ख्याल खुद का और अपनों का ,लड़खड़ाए ना कदम जब तक आखरी सांस बाकी है ।तंगी है तो क्या हमारे हिस्से में, फिर भी दिलों की अमीरीयत बाकी है; बढ़ाएंगे कदम उन्हें भी साथ लेकर, जब तक बुद्धका दया का वरदान बाकी है। टूटा है यह करो ना का रोग हम पर पहाड़ बनकर, अरे सुरक्षित हैं जब तक डॉक्टरों की ढाल बाकी है।
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