आजा़द रूह की झलक अब दिखाई नहीं देती !
बचपन वाली वो ललक अब दिखाई नहीं देती !!
मापदन्ड और मानकों के सहारे भी ना बचे!
मुझे नब्जों में हरकत अब दिखाई नहीं देती !!
जगाने वाली कोई किरण दिखाई नहीं देती !
मुल्क में मेरे, व्याकरण अब दिखाई नहीं देती !!
नशा, फ़रेब और चालबाजी की ख़बर खुश है !
जरुरतमन्द की शरण अब दिखाई नहीं देती !!
मैं नीन्द में रहकर सोचता रहता हूँ यही अक्सर!
कौन सी ऐसी गलती है , जो दिखाई नहीं देती !!
अनुराग ओझा "प्रतिबन्धित कलम "
©Adamya Tripathi
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