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New गजल ओं की बौछार Status, Photo, Video

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#शायरी #mango  White गजल

यूँ वक्त भी हमें क्यो देता भी सिसकियाँ हैं।
गम मे कहाँ दिखेंगी फूलों पे शोखियाँ हैं। 

बच्चो को साथ रखना,गुलशन है आजकल के।
वो घर भरा खुशी से जिसमे कहानियाँ हैं।

कहते सभी हमे भी रखना ख्याल सबका।
आ सीख हम भी ले ले करना न गलतियाँ हैं।

क्यो चाँद आज हमको आँखें बड़ी दिखाये।
आ जाये जब जमीं पे करता वो मस्तियाँ हैं।

फूलों पे अब दिखी हैं कलियाँ भी अब खिली सी।
लायी हैं हौसला भी हरहाल बेटियाँ हैं।

मरते हैं भूख से सब,फैली बे-रोजगारी।
बस भूख से तड़फती बेहाल बस्तियाँ हैं।गिरह

स्वरचित..✍️
रीतागुलाटी ऋतंभरा

©ऋतु गुलाटी ऋतंभरा

#mango गजल..रीतागुलाटी की चंडीगढ़ से

126 View

#शायरी #mango  यूँ वक्त भी हमें क्यो देता भी सिसकियाँ हैं।
गम मे कहाँ दिखेंगी फूलों पे शोखियाँ हैं। 

बच्चो को साथ रखना,गुलशन है आजकल के।
वो घर भरा खुशी से जिसमे कहानियाँ हैं।

कहते सभी हमे भी रखना ख्याल सबका।
आ सीख हम भी ले ले करना न गलतियाँ हैं।

क्यो चाँद आज हमको आँखें बड़ी दिखाये।
आ जाये जब जमीं पे करता वो मस्तियाँ हैं।

फूलों पे अब दिखी हैं कलियाँ भी अब खिली सी।
लायी हैं हौसला भी हरहाल बेटियाँ हैं।

मरते हैं भूख से सब,फैली बे-रोजगारी।
बस भूख से तड़फती बेहाल बस्तियाँ हैं।गिरह

स्वरचित..✍️
रीतागुलाटी ऋतंभरा

©ऋतु गुलाटी ऋतंभरा

#mango गजल पेशखिदमत है रीतागुलाटी की चंडीगढ़ से।

135 View

#शायरी #गजल  वही शाम वही रात वही तारे हैं
 मगर मायूस दिल वही नजारे हैं

लगा था कल जंग जीत कर आए
आज बैठे हैं जैसे जिंदगी से हारे हैं

मेरी  जहां से खफा हो चांद गया
गम मैं डूबे मिलते नहीं किनारे हैं

गुल खिले खुशबू से घुट रहा है दम
आज बेखुद हमें तड़पा रही बहारें हैं

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#गजल

99 View

न जाने क्या ज़माना चाहता है, मेरी ख़ुशियां मिटाना चाहता है। मेरी मासूमियत को छीन कर क्यों, मुझे शातिर बनाना चाहता है. अभी कोई कमी बाक़ी है शायद, जो फिर से आज़माना चाहता है। मिटाकर तीरगी अब ज़िन्दगी से, उजाले में वो आना चाहता है। निगाहों से लगे सीधा जिगर पर, वो इक ऐसा निशाना चाहता है । परिंदे की है बस इतनी सी ख़्वाहिश, नशेमन फिर बसाना चाहता है। अल्पना सुहासिनी ©Dr. Alpana suhasini

#गजल_सृजन #शायरी #गजल  न जाने क्या ज़माना चाहता है,
मेरी ख़ुशियां मिटाना चाहता है।

मेरी  मासूमियत को छीन कर क्यों,
मुझे शातिर बनाना चाहता है.

अभी कोई कमी बाक़ी है शायद,
जो फिर से आज़माना चाहता है।

मिटाकर तीरगी अब ज़िन्दगी से,
उजाले में वो आना चाहता है।

निगाहों से लगे सीधा जिगर पर,
वो इक ऐसा निशाना चाहता है । 

परिंदे की है बस इतनी सी ख़्वाहिश,
नशेमन फिर बसाना चाहता है।
         अल्पना सुहासिनी

©Dr. Alpana suhasini
#शायरी #गजल  गजल

करवट बदल बदल कर क्यूं रात बितातें हैं
इक नाम क्यों जमीं पर लिखतें हैं मिटाते हैं

मालूम है डगर में लुट जातें हैं मुसाफिर
गर लुट गए तो फिर क्यों अब शोर मचाते हैं

कट कर पतंग कोई आती न लौट करके
धागे में बांध फिर क्यूं खुशियों को उड़ाते हैं

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#गजल

108 View

#पेशेखिदमत #शायरी

#पेशेखिदमत एक गजल

1,971 View

#शायरी #mango  White गजल

यूँ वक्त भी हमें क्यो देता भी सिसकियाँ हैं।
गम मे कहाँ दिखेंगी फूलों पे शोखियाँ हैं। 

बच्चो को साथ रखना,गुलशन है आजकल के।
वो घर भरा खुशी से जिसमे कहानियाँ हैं।

कहते सभी हमे भी रखना ख्याल सबका।
आ सीख हम भी ले ले करना न गलतियाँ हैं।

क्यो चाँद आज हमको आँखें बड़ी दिखाये।
आ जाये जब जमीं पे करता वो मस्तियाँ हैं।

फूलों पे अब दिखी हैं कलियाँ भी अब खिली सी।
लायी हैं हौसला भी हरहाल बेटियाँ हैं।

मरते हैं भूख से सब,फैली बे-रोजगारी।
बस भूख से तड़फती बेहाल बस्तियाँ हैं।गिरह

स्वरचित..✍️
रीतागुलाटी ऋतंभरा

©ऋतु गुलाटी ऋतंभरा

#mango गजल..रीतागुलाटी की चंडीगढ़ से

126 View

#शायरी #mango  यूँ वक्त भी हमें क्यो देता भी सिसकियाँ हैं।
गम मे कहाँ दिखेंगी फूलों पे शोखियाँ हैं। 

बच्चो को साथ रखना,गुलशन है आजकल के।
वो घर भरा खुशी से जिसमे कहानियाँ हैं।

कहते सभी हमे भी रखना ख्याल सबका।
आ सीख हम भी ले ले करना न गलतियाँ हैं।

क्यो चाँद आज हमको आँखें बड़ी दिखाये।
आ जाये जब जमीं पे करता वो मस्तियाँ हैं।

फूलों पे अब दिखी हैं कलियाँ भी अब खिली सी।
लायी हैं हौसला भी हरहाल बेटियाँ हैं।

मरते हैं भूख से सब,फैली बे-रोजगारी।
बस भूख से तड़फती बेहाल बस्तियाँ हैं।गिरह

स्वरचित..✍️
रीतागुलाटी ऋतंभरा

©ऋतु गुलाटी ऋतंभरा

#mango गजल पेशखिदमत है रीतागुलाटी की चंडीगढ़ से।

135 View

#शायरी #गजल  वही शाम वही रात वही तारे हैं
 मगर मायूस दिल वही नजारे हैं

लगा था कल जंग जीत कर आए
आज बैठे हैं जैसे जिंदगी से हारे हैं

मेरी  जहां से खफा हो चांद गया
गम मैं डूबे मिलते नहीं किनारे हैं

गुल खिले खुशबू से घुट रहा है दम
आज बेखुद हमें तड़पा रही बहारें हैं

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#गजल

99 View

न जाने क्या ज़माना चाहता है, मेरी ख़ुशियां मिटाना चाहता है। मेरी मासूमियत को छीन कर क्यों, मुझे शातिर बनाना चाहता है. अभी कोई कमी बाक़ी है शायद, जो फिर से आज़माना चाहता है। मिटाकर तीरगी अब ज़िन्दगी से, उजाले में वो आना चाहता है। निगाहों से लगे सीधा जिगर पर, वो इक ऐसा निशाना चाहता है । परिंदे की है बस इतनी सी ख़्वाहिश, नशेमन फिर बसाना चाहता है। अल्पना सुहासिनी ©Dr. Alpana suhasini

#गजल_सृजन #शायरी #गजल  न जाने क्या ज़माना चाहता है,
मेरी ख़ुशियां मिटाना चाहता है।

मेरी  मासूमियत को छीन कर क्यों,
मुझे शातिर बनाना चाहता है.

अभी कोई कमी बाक़ी है शायद,
जो फिर से आज़माना चाहता है।

मिटाकर तीरगी अब ज़िन्दगी से,
उजाले में वो आना चाहता है।

निगाहों से लगे सीधा जिगर पर,
वो इक ऐसा निशाना चाहता है । 

परिंदे की है बस इतनी सी ख़्वाहिश,
नशेमन फिर बसाना चाहता है।
         अल्पना सुहासिनी

©Dr. Alpana suhasini
#शायरी #गजल  गजल

करवट बदल बदल कर क्यूं रात बितातें हैं
इक नाम क्यों जमीं पर लिखतें हैं मिटाते हैं

मालूम है डगर में लुट जातें हैं मुसाफिर
गर लुट गए तो फिर क्यों अब शोर मचाते हैं

कट कर पतंग कोई आती न लौट करके
धागे में बांध फिर क्यूं खुशियों को उड़ाते हैं

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#गजल

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#पेशेखिदमत #शायरी

#पेशेखिदमत एक गजल

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