इस ऋतु बसंत की आड़ में अगर तुम चाहो तो इक रोज हम भी मिलेंगे,
बसंत के असंख्य कुसुमों के बीच दो फूल हम भी खिलेंगे।
ये ऋतुराज स्थिर रहे या ना रहे,
हम अपनी वस्ल का ये सिलसिला हर मौसम में भी जारी रखेंगे।
तुम अगर चाहो तो,
मिलकर कुछ गीत भी प्रेम के गुनगुनाते रहेंगे।
जिस तरह आकाश घिर जाता है मेघों की ओट से,
हम भी उसी भांति प्रणय से घिर जाएंगे।
ताउम्र ये हाथ तुम्हारे हाथों में ही रहे ,
इसलिए इक रोज इसी प्रणय के साथ,
परिणय सूत्र में बंध जाएंगे।
तुम अगर चाहो तो,
इस ऋतु बसंत की आड़ में इक रोज हम भी मिलेंगे ।।
©D.R. divya (Deepa)
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