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#शायरी #आलम  Black उदासी  धूप की  फैली  तेरे  मुस्कान  की  छाया
मुसाफ़िर  था  थका  हारा  ज़रा सी देर सुस्ताया
चली महकी हवा चारों तरफ़ मदहोश सी करती
बसंती हो गया आलम तेरा आँचल जो लहराया.

©malay_28

#आलम बसंती

135 View

##मुझे थम जाना हैं , बस #तुम पर ही.....💞 #ता_उम्र किसी बेहतर की , तलाश नहीं मुझे.....💞 ©Kuldeep Shrivastava

#ता_उम्र #बस_तुम #शायरी #मुझे #तुम  ##मुझे थम जाना हैं ,
                        बस #तुम पर ही.....💞
                   
#ता_उम्र किसी बेहतर की ,
                             तलाश नहीं  मुझे.....💞

©Kuldeep Shrivastava
#Quotes  यूँ तो मेरी रूह तलक को छू चुके हो तुम...
फिर भी माथे को चूमना सुकून दे जाता हैं

©MमtA Maया

27/05/24 रूह में बसना

234 View

परिधानों से लाज ढाँपती नज़रों में छुप जाती थी, लज्जा बसती थी आँखों में मन ही मन सकुचाती थी, पर्दे के पीछे का सच भी डर की जद में सिमटा था, लोक लाज के डर से नारी अक्सर चुप रह जाती थी, बचपन का वो अल्हड़पन दहलीज जवानी की चढते, खेतों की मेड़ों पर चलती इठलाती बलखाती थी, सावन में मदमस्त नदी सी चली उफनती राह कभी, देख आईने में ख़ुद को नटखट कितनी शर्माती थी, प्रेम और विश्वास अडिग वादे थे जीने मरने के, रूप सलोना फूलों सा कितनी सुंदर कद-काठी थी, माँ बाबूजी भैया भाभी सबके मन में रची-बसी, सखियों के संग हँसी ठिठोली मिलने से घबराती थी, भावुक हृदय सुकोमल काया मन से भोली थी 'गुंजन', बात-बात पर नखरे शोखी नयन अश्रु छलकाती थी, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ •प्र • ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #लज्जा  परिधानों  से  लाज  ढाँपती
                                 नज़रों में छुप जाती थी, 
                             लज्जा बसती थी आँखों में 
                               मन ही मन सकुचाती थी,

पर्दे के पीछे का सच भी  डर की जद में सिमटा था, 
लोक लाज के डर से नारी अक्सर चुप रह जाती थी,

बचपन का वो अल्हड़पन दहलीज जवानी की चढते, 
खेतों की  मेड़ों पर  चलती  इठलाती  बलखाती थी,

सावन  में  मदमस्त नदी सी चली उफनती राह कभी, 
देख  आईने में  ख़ुद को  नटखट कितनी शर्माती थी,

प्रेम  और  विश्वास  अडिग  वादे  थे   जीने मरने  के,
रूप सलोना फूलों सा  कितनी सुंदर  कद-काठी थी,

माँ  बाबूजी  भैया  भाभी  सबके  मन में  रची-बसी, 
सखियों के संग हँसी ठिठोली मिलने से घबराती थी,

भावुक हृदय सुकोमल काया मन से भोली थी 'गुंजन',
बात-बात पर नखरे शोखी नयन अश्रु छलकाती थी,
       ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
               प्रयागराज उ •प्र •

©Shashi Bhushan Mishra

#लज्जा बसती थी आँखों में#

16 Love

सपने बसते हैं आंखो में.. टूटते है और फिर बरस जाते हैं, मानो जैसे... बादल फट कर बारिश बरसती हैं...। ©sampankaj 64

#Quotes #rain  सपने बसते हैं आंखो में..
टूटते है और फिर बरस जाते हैं,
मानो जैसे...
बादल फट कर बारिश बरसती हैं...।

©sampankaj 64

#rain सपने बसते हैं...

10 Love

अंत का भी अंत होता है, सब कुछ कहाँ अनंत होता है। पतझड़ एक घटना है, बारह महीने कहाँ बसंत होता है।। 🩶🩶🩶 ©3 Little Hearts

#बसंत #tree  अंत का भी अंत होता है,
सब कुछ कहाँ अनंत होता है।
पतझड़ एक घटना है,
बारह महीने कहाँ बसंत होता है।।
🩶🩶🩶

©3 Little Hearts
#शायरी #आलम  Black उदासी  धूप की  फैली  तेरे  मुस्कान  की  छाया
मुसाफ़िर  था  थका  हारा  ज़रा सी देर सुस्ताया
चली महकी हवा चारों तरफ़ मदहोश सी करती
बसंती हो गया आलम तेरा आँचल जो लहराया.

©malay_28

#आलम बसंती

135 View

##मुझे थम जाना हैं , बस #तुम पर ही.....💞 #ता_उम्र किसी बेहतर की , तलाश नहीं मुझे.....💞 ©Kuldeep Shrivastava

#ता_उम्र #बस_तुम #शायरी #मुझे #तुम  ##मुझे थम जाना हैं ,
                        बस #तुम पर ही.....💞
                   
#ता_उम्र किसी बेहतर की ,
                             तलाश नहीं  मुझे.....💞

©Kuldeep Shrivastava
#Quotes  यूँ तो मेरी रूह तलक को छू चुके हो तुम...
फिर भी माथे को चूमना सुकून दे जाता हैं

©MमtA Maया

27/05/24 रूह में बसना

234 View

परिधानों से लाज ढाँपती नज़रों में छुप जाती थी, लज्जा बसती थी आँखों में मन ही मन सकुचाती थी, पर्दे के पीछे का सच भी डर की जद में सिमटा था, लोक लाज के डर से नारी अक्सर चुप रह जाती थी, बचपन का वो अल्हड़पन दहलीज जवानी की चढते, खेतों की मेड़ों पर चलती इठलाती बलखाती थी, सावन में मदमस्त नदी सी चली उफनती राह कभी, देख आईने में ख़ुद को नटखट कितनी शर्माती थी, प्रेम और विश्वास अडिग वादे थे जीने मरने के, रूप सलोना फूलों सा कितनी सुंदर कद-काठी थी, माँ बाबूजी भैया भाभी सबके मन में रची-बसी, सखियों के संग हँसी ठिठोली मिलने से घबराती थी, भावुक हृदय सुकोमल काया मन से भोली थी 'गुंजन', बात-बात पर नखरे शोखी नयन अश्रु छलकाती थी, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ •प्र • ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #लज्जा  परिधानों  से  लाज  ढाँपती
                                 नज़रों में छुप जाती थी, 
                             लज्जा बसती थी आँखों में 
                               मन ही मन सकुचाती थी,

पर्दे के पीछे का सच भी  डर की जद में सिमटा था, 
लोक लाज के डर से नारी अक्सर चुप रह जाती थी,

बचपन का वो अल्हड़पन दहलीज जवानी की चढते, 
खेतों की  मेड़ों पर  चलती  इठलाती  बलखाती थी,

सावन  में  मदमस्त नदी सी चली उफनती राह कभी, 
देख  आईने में  ख़ुद को  नटखट कितनी शर्माती थी,

प्रेम  और  विश्वास  अडिग  वादे  थे   जीने मरने  के,
रूप सलोना फूलों सा  कितनी सुंदर  कद-काठी थी,

माँ  बाबूजी  भैया  भाभी  सबके  मन में  रची-बसी, 
सखियों के संग हँसी ठिठोली मिलने से घबराती थी,

भावुक हृदय सुकोमल काया मन से भोली थी 'गुंजन',
बात-बात पर नखरे शोखी नयन अश्रु छलकाती थी,
       ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
               प्रयागराज उ •प्र •

©Shashi Bhushan Mishra

#लज्जा बसती थी आँखों में#

16 Love

सपने बसते हैं आंखो में.. टूटते है और फिर बरस जाते हैं, मानो जैसे... बादल फट कर बारिश बरसती हैं...। ©sampankaj 64

#Quotes #rain  सपने बसते हैं आंखो में..
टूटते है और फिर बरस जाते हैं,
मानो जैसे...
बादल फट कर बारिश बरसती हैं...।

©sampankaj 64

#rain सपने बसते हैं...

10 Love

अंत का भी अंत होता है, सब कुछ कहाँ अनंत होता है। पतझड़ एक घटना है, बारह महीने कहाँ बसंत होता है।। 🩶🩶🩶 ©3 Little Hearts

#बसंत #tree  अंत का भी अंत होता है,
सब कुछ कहाँ अनंत होता है।
पतझड़ एक घटना है,
बारह महीने कहाँ बसंत होता है।।
🩶🩶🩶

©3 Little Hearts
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