शीर्षक - जाकर वहाँ मैं क्या करुँगा
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जाकर वहाँ मैं क्या करूँगा, जाकर वहाँ मैं किससे मिलूँगा।
क्या मुझको वो मानेंगें अपना, जाकर वहाँ मैं क्या कहूँगा।।
जाकर वहाँ मैं क्या करुँगा----------------------।।
उनके जैसा नहीं घर मेरे पास, सजती है रोज महफ़िल उनकी।
रखता नहीं उन जैसी समझ मैं, फूलों से महकी है मंजिल उनकी।।
मैं हूँ गरीब और बीमार काया, रहकर वहाँ मैं क्या करुँगा।
जाकर वहाँ मैं क्या करुँगा-------------------।।
अशुभ मुझको वो मानते हैं, मुझको पराया वो मानते हैं।
मैं एक खलल हूँ उनकी खुशी में, एक बोझ मुझको वो मानते हैं।।
करते नहीं बात मुझसे हँसकर, उनके बीच मैं क्या करुँगा।
जाकर वहाँ मैं क्या करुँगा-------------------।।
अच्छा हूँ मैं यहाँ सुखी और खुश हूँ , इज्जत है यहाँ आबाद हूँ।
मिलता है साथ यहाँ सबका मुझको, गम से यहाँ जी.आज़ाद हूँ।।
स्वागत नहीं जब उस दर मेरा, नहीं अब उनके आगे झुकूंगा।
जाकर वहाँ मैं क्या करुँगा--------------------।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
©Gurudeen Verma
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