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 White ये  बर्ग, ग़ुंचे,  बहार-ओ-चमन  वहीं  के  हैं 
ज़मीं है  जन्नती  जिस की  उसी  हसीं के हैं  

ये कहकशाँ, ये सितारे, तजल्लियाँ ओ मह  
ये  ज़ाविए  उसी  की  नुक़रई  जबीं  के  हैं 

हैं  रौनकें उसी की  चश्म-ए-आब-दारी  से  
ये धुँदलके उसी की  चश्म-ए-सुर्मगीं  के हैं 

बनफ़्श  आसमाँ  हो  या हो  सौसनी  झीलें 
तिलिस्म ये उसी की  चश्म-ए-नीलमीं  के हैं 

फ़लक की गोद में  बिखरे  ये अब्र के  फाहे
ख़याल-ओ-ख़्वाब उसी हुस्न-ए-मर्मरीं के हैं

ये  ख़ुशबुएँ, ये परिंदे, ये  तितलियाँ,  जुगनू 
असीर  बस उसी के  जिस्म-ए-संदलीं के हैं 

लरज़ती शाख़  के दामन में  ओस के  मोती 
अरक़ हैं जो उसी रुख़्सार-ए-मह-जबीं के हैं

©Parastish

तजल्लियाँ - lightnings, मह - moon ज़ाविए - angles नुक़रई -made of silver चश्म- eye आब-दारी - brightness बनफ़्श/सौसनी - Blue colour नीलमीं

1377 View

#shamawritesBebaak #Motivational #sad_shayari  White ***औरत का वजूद***
कोई भी शादीशुदा औरत अपने सुसराल में केवल अपना जिस्म लेकर नहीं आती है...?
वो लाती है अपनी परवरिश के साथ अच्छे अखलाक, इल्म,तालीम,और अपना जहीन जहन......
फिर उसकी पहचान,उसकी अजमत,अस्मत,आजादी और अल्हड़पन कहाँ खो जाती होगी...
गजाला सी चंचल चितवन वाली
पिंजरेनुमा सुसराल में कैद मैना सी,शिरीन जुबा से रस उड़ेलती अनजान लोगों से सबकी जी हुजूरी में खिदमते करती बोलती, झिड़कियां,तंज,रंज गाली ग्लोच झेलती और इसी उधेड़बुन में सब्र करती बस......
फिर इसी कशमकश में संतानोत्पत्ति के बाद खुद से ही जिहाद करती हुई,अपनी गृहस्थी संभालती,भूलती रही,अपने जिस्म और रुह पर पड़े जख्मों की थकन से चकनाचूर,अपनी आप बीती को डायरी के पन्नो पर लिखती,संजोती...........
वो एक बेनाम,औरत एक रोज मर जाती रही अपना फर्ज निभाकर,और भूल जाते हैं ये मतलबी लोग,....
यही सब सुनते और देखते आ रहे हैं,पता नहीं कब से.?
मौजूदा दौर मे तो रिश्ते बस समझौते भर रह गए है..?

सुनो बीन्त हव्वा 🎤अबअपने जिस्म को बिछौना बनाकर नहीं जीना...?
तुम्हारी वुसअती तो (फैलाव) ला_मेहदूद(अनंत) है!!
तुम इब्न आदम की नस्ल बढाने वाली हो,निस्वार्थ उल्फ्तें बांटने वाली हो,
तुम अदबन हो अदब के काबिल हो...
औरत ही मर्द की संपूरक है,और मर्द औरत से ही संपूर्ण और परिपूर्ण है.!!
आदमी मतलबी,अना परस्त,ढीठ,तंगदिल,संगदिल सा हो सकता है,मगर औरत संजीदा,आब ए हयात की मानिंद.हयात देने वाली होती है।जैसे मानो पूरी कायनात बिन औरत के वजूद के अधूरी और बेमानी हो..!
मुख्तसर बात यही है के आदमी जरिया है तो औरत तामीरदा(निर्माता).....
बनना और मिटना,औरत से ही है,तो फिर ये बेमिसाल औरत पर आदमी को फजीलत देने वाला,पुरुष प्रधान मुआश्रा क्यूं भूल जाता है औरत के वजूद को....???Bolg by✍️
#shamawritesBebaak

©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर

#sad_shayari ***औरत का वजूद*** कोई भी शादीशुदा औरत अपने सुसराल में केवल अपना जिस्म लेकर नहीं आती है...? वो लाती है अपनी परवरिश के साथ अच्छे

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 White ये  बर्ग, ग़ुंचे,  बहार-ओ-चमन  वहीं  के  हैं 
ज़मीं है  जन्नती  जिस की  उसी  हसीं के हैं  

ये कहकशाँ, ये सितारे, तजल्लियाँ ओ मह  
ये  ज़ाविए  उसी  की  नुक़रई  जबीं  के  हैं 

हैं  रौनकें उसी की  चश्म-ए-आब-दारी  से  
ये धुँदलके उसी की  चश्म-ए-सुर्मगीं  के हैं 

बनफ़्श  आसमाँ  हो  या हो  सौसनी  झीलें 
तिलिस्म ये उसी की  चश्म-ए-नीलमीं  के हैं 

फ़लक की गोद में  बिखरे  ये अब्र के  फाहे
ख़याल-ओ-ख़्वाब उसी हुस्न-ए-मर्मरीं के हैं

ये  ख़ुशबुएँ, ये परिंदे, ये  तितलियाँ,  जुगनू 
असीर  बस उसी के  जिस्म-ए-संदलीं के हैं 

लरज़ती शाख़  के दामन में  ओस के  मोती 
अरक़ हैं जो उसी रुख़्सार-ए-मह-जबीं के हैं

©Parastish

तजल्लियाँ - lightnings, मह - moon ज़ाविए - angles नुक़रई -made of silver चश्म- eye आब-दारी - brightness बनफ़्श/सौसनी - Blue colour नीलमीं

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#shamawritesBebaak #Motivational #sad_shayari  White ***औरत का वजूद***
कोई भी शादीशुदा औरत अपने सुसराल में केवल अपना जिस्म लेकर नहीं आती है...?
वो लाती है अपनी परवरिश के साथ अच्छे अखलाक, इल्म,तालीम,और अपना जहीन जहन......
फिर उसकी पहचान,उसकी अजमत,अस्मत,आजादी और अल्हड़पन कहाँ खो जाती होगी...
गजाला सी चंचल चितवन वाली
पिंजरेनुमा सुसराल में कैद मैना सी,शिरीन जुबा से रस उड़ेलती अनजान लोगों से सबकी जी हुजूरी में खिदमते करती बोलती, झिड़कियां,तंज,रंज गाली ग्लोच झेलती और इसी उधेड़बुन में सब्र करती बस......
फिर इसी कशमकश में संतानोत्पत्ति के बाद खुद से ही जिहाद करती हुई,अपनी गृहस्थी संभालती,भूलती रही,अपने जिस्म और रुह पर पड़े जख्मों की थकन से चकनाचूर,अपनी आप बीती को डायरी के पन्नो पर लिखती,संजोती...........
वो एक बेनाम,औरत एक रोज मर जाती रही अपना फर्ज निभाकर,और भूल जाते हैं ये मतलबी लोग,....
यही सब सुनते और देखते आ रहे हैं,पता नहीं कब से.?
मौजूदा दौर मे तो रिश्ते बस समझौते भर रह गए है..?

सुनो बीन्त हव्वा 🎤अबअपने जिस्म को बिछौना बनाकर नहीं जीना...?
तुम्हारी वुसअती तो (फैलाव) ला_मेहदूद(अनंत) है!!
तुम इब्न आदम की नस्ल बढाने वाली हो,निस्वार्थ उल्फ्तें बांटने वाली हो,
तुम अदबन हो अदब के काबिल हो...
औरत ही मर्द की संपूरक है,और मर्द औरत से ही संपूर्ण और परिपूर्ण है.!!
आदमी मतलबी,अना परस्त,ढीठ,तंगदिल,संगदिल सा हो सकता है,मगर औरत संजीदा,आब ए हयात की मानिंद.हयात देने वाली होती है।जैसे मानो पूरी कायनात बिन औरत के वजूद के अधूरी और बेमानी हो..!
मुख्तसर बात यही है के आदमी जरिया है तो औरत तामीरदा(निर्माता).....
बनना और मिटना,औरत से ही है,तो फिर ये बेमिसाल औरत पर आदमी को फजीलत देने वाला,पुरुष प्रधान मुआश्रा क्यूं भूल जाता है औरत के वजूद को....???Bolg by✍️
#shamawritesBebaak

©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर

#sad_shayari ***औरत का वजूद*** कोई भी शादीशुदा औरत अपने सुसराल में केवल अपना जिस्म लेकर नहीं आती है...? वो लाती है अपनी परवरिश के साथ अच्छे

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