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उमाकांत मालवीय की रचना: भीड़ की ज़रूरत है
Kavya Desk काव्य डेस्क
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भीड़ की ज़रूरत है
भीड़, जो दीन हो, हीन हो
सिर धुनती हो
भीड़, जो घूरे पर से
दाना बिनती हो
भीड़, जो नायक का सगुन है, महूरत है ।
भीड़, जो जुलूस हो, पोस्टर हो,
नारा हो
भीड़, जो जुगाली हो,
सींग दुम चारा हो
भीड़, जो बछिया के ताऊ की सूरत है ।
भीड़, जो अन्धी हो
गूँगी हो,
बहरी हो
भीड़, जो बँधे हुए
पानी सी ठहरी हो ।
भीड़ जो मिट्टी के माधो की मूरत है ।
©@BeingAdilKhan
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