पायल, कंगन,झुमका,जुल्फों का संवारा लिख दिया
कुछ न छोड़ा मेरी कलम ने सारा लिख दिया
ऐसे ही मुकम्मल न हो जाती मेरी ये गज़ल
ले कर तेरे हुस्न का सहारा लिख दिया
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लब़ की लाली लिखी,और लिखा काज़ल तेरी आँखों का
तेरे रुखसार पे तिल जैसे चाँद का सितारा लिख दिया
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कैसे लिख देता कोई श़ेर तेरी सुराही सी गर्दन पे
ऐसे लिपटा था उसपे हार पे दिल हारा लिख दिया
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कभी इधर कभी उधर हवा सी बलखाती तेरी कमर
जाता नही ख़यालों से वो दिलकश़ नज़ारा लिख दिया
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पन्नो पे जो लिखता तो हो जाता चर्चा जहाँ मे
इस बाइस चुपके से इस दिल में नाम तुम्हारा लिख दिया
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गनीमत होती जो सिर्फ खनकती चूडियाँ तेरी
पायल की छनक ने था जान से मारा लिख दिया
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गुस्ताखी होती जो तेरी शान में तो माज़रत चाहता,,सैज,,
दी इज़ाज़त तभी तो ग़ज़ल तुझपे दोबारा लिख दिया
©saij salmaani
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