(दिव्या संगीत रचित)
माँ
माँ ओ मेरी माँ,सबसे प्यारी मेरी माँ।
सोचा की आज कुछ माँ पर लिखने बैठूँ।।
क्या लिखू ,तेरी ही तो लिखावट हूँ मैं।
माँ ओ मेरी माँ, सबसे प्यारी मेरी माँ।।
तेरी ही तो परच्छाई हूँ, तुझसे ही तो आई हूँ।
तुझ जैसी काश मै बन पाऊ माँ।।
अपने बच्चे को सारे गुण जो दे पाऊ माँ।
माँ ओ मेरी माँ,सबसे प्यारी मेरी माँ।।
जब छोटे थे, तब तुम्हारा त्याग पता चलता ही नहीं था।
आज जब खुद माँ बने तो पता चला।।
कितने तप त्याग किये तुम ने।
माँ ओ मेरी माँ, सबसे प्यारी मेरी माँ।।
आज जो भी हूँ सब तुम्हारे बदौलत ही तो हूँ।
जो भी सीखा तुझसे ही सीखा।।
तू न होती ,तो मैं एक कोरा कागज -सी होती।
माँ ओ मेरी माँ,सबसे प्यारी मेरी माँ।।
कितना भी अभाव क्यों न हो।
तुमने हमे किसी चीज का अभाव होने न दिया।।
खुद नया न पहनती, पर हमे जरूर दिलवाती।
माँ ओ मेरी माँ, सबसे प्यारी मेरी माँ।।
तुम्हारा डाँट,तुम्हारा प्यार।
पढाई के लिए वो प्यार भरी मार।।
खुद समझती थी , फिर हमे समझाती थी।
माँ ओ मेरी माँ, सबसे प्यारी मेरी माँ।।
कभी सजना सवँरना तो तुम्हें आता ही न था।
मै यह नहीं कहती कि तेरी इच्छा न होती होगी।।
पर समय की किल्लत ही इतनी थी तेरे पास।
माँ ओ मेरी माँ, सबसे प्यारी मेरी माँ।।
कुछ गुण न था मुझमे।
फिर भी सबसे बड़ाई ही करती थी।।
कहती थी नाज है तू मेरा।
माँ ओ मेरी माँ, सबसे प्यारी मेरी माँ।।
आज मै खुद को खुशनसीब समझती हूँ।
आज एक नहीं दो-दो माँऐं है मेरे पास।।
एक ने मुझे गुण-सम्पन्न बनाया,दूजे ने गुण-सम्पनन्न दिया।
माँ ओ मेरी माँ, सबसे प्यारी मेरी माँ।।
क्या लिंखू क्या कहूँ माँ।
आपके प्यार- त्याग के बारे में माँ।।
एक ग्रंथ भी छोटा पड़ जाएगा।
माँ ओ मेरी माँ,सबसे प्यारी मेरी माँ।
(दिव्या संगीत , दरभंगा )
🖋️स्व-रचित 🌹🌹
©संगीत कुमार
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