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सीता छन्द मापनी:- २१२२   २१२२   २१२२  २१२ वर्ण :-  १५ राधिका को मानते है कृष्ण को ही पूजते । प्रीति के जो हैं सतायें ईश को ही ढूढ़ते ।। लोग क्यों माने बुरा जो आपसे ही प्रेम है । आपके तो संग मेरी ज़िन्दगी ही क्षेम है ।। १ भूल जाये आपको ऐसा कभी होगा नहीं । दूर हूँगा आपसे ऐसा कभी सोचा नहीं ।। प्रीति तेरी है बसी वो रक्त के प्रावाह में । खोज पाता है नहीं संसार मेरी आह में ।। २ प्रीति का व्यापार तो होता नहीं था देख लो । प्रीति में कैसे हुआ है सोंच के ही देख लो ।। प्रेम में तो हारना है लोग ये हैं भूलते । जीत ले वो प्रेम को ये बाट ऐसी ढूढ़ते ।। ३ प्रेम कोई जीत ले देखो नही है वस्तु ये । प्रेम में तो हार के होता नही है अस्तु ये ।। प्रेम का तो आज भी होता वहीं से मेल है । प्रीत जो पाके कहे लागे नहीं वो जेल है  ।। ०१/०४/२०२४  -   महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  सीता छन्द
मापनी:- २१२२   २१२२   २१२२  २१२
वर्ण :-  १५
राधिका को मानते है कृष्ण को ही पूजते ।
प्रीति के जो हैं सतायें ईश को ही ढूढ़ते ।।
लोग क्यों माने बुरा जो आपसे ही प्रेम है ।
आपके तो संग मेरी ज़िन्दगी ही क्षेम है ।।
१
भूल जाये आपको ऐसा कभी होगा नहीं ।
दूर हूँगा आपसे ऐसा कभी सोचा नहीं ।।
प्रीति तेरी है बसी वो रक्त के प्रावाह में ।
खोज पाता है नहीं संसार मेरी आह में ।।
२
प्रीति का व्यापार तो होता नहीं था देख लो ।
प्रीति में कैसे हुआ है सोंच के ही देख लो ।।
प्रेम में तो हारना है लोग ये हैं भूलते ।
जीत ले वो प्रेम को ये बाट ऐसी ढूढ़ते ।।
३
प्रेम कोई जीत ले देखो नही है वस्तु ये ।
प्रेम में तो हार के होता नही है अस्तु ये ।।
प्रेम का तो आज भी होता वहीं से मेल है ।
प्रीत जो पाके कहे लागे नहीं वो जेल है  ।।
०१/०४/२०२४  -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

सीता छन्द मापनी:- २१२२   २१२२   २१२२  २१२ वर्ण :-  १५ राधिका को मानते है कृष्ण को ही पूजते ।

14 Love

 चित्रपदा छंद
                                 विधान:-- ८ वर्ण प्रति चरण
                                 चार चरण, दो-दो समतुकांत 
                                     भगण भगण गुरु गुरु
                                       २११   २११  २   २

  नीरद जो घिर आए।         
  तृप्त धरा कर जाए।।
  कानन में हरियाली।
  हर्षित है हर डाली।।
  कोयल गीत सुनाती।
  मंगल आज प्रभाती।
  गूँजित हैं अब भौंरे।
  दादुर ताल किनारे।।
  मेघ खड़े सम सीढ़ी।
  झूम युवागण पीढ़ी।।
  खेल रहे जब होली।
  भींग गये जन टोली।।
  दृश्य मनोहर भाते।
  पुष्प सभी खिल जाते।।
  पूरित ताल तलैया।
  वायु बहे पुरवैया।।


भारत भूषण पाठक'देवांश'

©Bharat Bhushan pathak

#holikadahan #होली#holi#nojotohindi#poetry#साहित्य#छंद चित्रपदा छंद विध

108 View

#जानकारी #fisherman  {Bolo Ji Radhey Radhey}
हम सभी मनुष्य भगवान 
श्री कृष्ण की भगवत्प्राप्ति के 
अधिकारी हैं, चाहे वे किसी 
भी वर्ण, आश्रम, सम्प्रदाय, 
देश, वेश आदि के क्यों न हों।

©N S Yadav GoldMine

#fisherman {Bolo Ji Radhey Radhey} हम सभी मनुष्य भगवान श्री कृष्ण की भगवत्प्राप्ति के अधिकारी हैं, चाहे वे किसी भी वर्ण, आश्रम, सम्प्रदाय

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सीता छन्द मापनी:- २१२२   २१२२   २१२२  २१२ वर्ण :-  १५ राधिका को मानते है कृष्ण को ही पूजते । प्रीति के जो हैं सतायें ईश को ही ढूढ़ते ।। लोग क्यों माने बुरा जो आपसे ही प्रेम है । आपके तो संग मेरी ज़िन्दगी ही क्षेम है ।। १ भूल जाये आपको ऐसा कभी होगा नहीं । दूर हूँगा आपसे ऐसा कभी सोचा नहीं ।। प्रीति तेरी है बसी वो रक्त के प्रावाह में । खोज पाता है नहीं संसार मेरी आह में ।। २ प्रीति का व्यापार तो होता नहीं था देख लो । प्रीति में कैसे हुआ है सोंच के ही देख लो ।। प्रेम में तो हारना है लोग ये हैं भूलते । जीत ले वो प्रेम को ये बाट ऐसी ढूढ़ते ।। ३ प्रेम कोई जीत ले देखो नही है वस्तु ये । प्रेम में तो हार के होता नही है अस्तु ये ।। प्रेम का तो आज भी होता वहीं से मेल है । प्रीत जो पाके कहे लागे नहीं वो जेल है  ।। ०१/०४/२०२४  -   महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  सीता छन्द
मापनी:- २१२२   २१२२   २१२२  २१२
वर्ण :-  १५
राधिका को मानते है कृष्ण को ही पूजते ।
प्रीति के जो हैं सतायें ईश को ही ढूढ़ते ।।
लोग क्यों माने बुरा जो आपसे ही प्रेम है ।
आपके तो संग मेरी ज़िन्दगी ही क्षेम है ।।
१
भूल जाये आपको ऐसा कभी होगा नहीं ।
दूर हूँगा आपसे ऐसा कभी सोचा नहीं ।।
प्रीति तेरी है बसी वो रक्त के प्रावाह में ।
खोज पाता है नहीं संसार मेरी आह में ।।
२
प्रीति का व्यापार तो होता नहीं था देख लो ।
प्रीति में कैसे हुआ है सोंच के ही देख लो ।।
प्रेम में तो हारना है लोग ये हैं भूलते ।
जीत ले वो प्रेम को ये बाट ऐसी ढूढ़ते ।।
३
प्रेम कोई जीत ले देखो नही है वस्तु ये ।
प्रेम में तो हार के होता नही है अस्तु ये ।।
प्रेम का तो आज भी होता वहीं से मेल है ।
प्रीत जो पाके कहे लागे नहीं वो जेल है  ।।
०१/०४/२०२४  -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

सीता छन्द मापनी:- २१२२   २१२२   २१२२  २१२ वर्ण :-  १५ राधिका को मानते है कृष्ण को ही पूजते ।

14 Love

 चित्रपदा छंद
                                 विधान:-- ८ वर्ण प्रति चरण
                                 चार चरण, दो-दो समतुकांत 
                                     भगण भगण गुरु गुरु
                                       २११   २११  २   २

  नीरद जो घिर आए।         
  तृप्त धरा कर जाए।।
  कानन में हरियाली।
  हर्षित है हर डाली।।
  कोयल गीत सुनाती।
  मंगल आज प्रभाती।
  गूँजित हैं अब भौंरे।
  दादुर ताल किनारे।।
  मेघ खड़े सम सीढ़ी।
  झूम युवागण पीढ़ी।।
  खेल रहे जब होली।
  भींग गये जन टोली।।
  दृश्य मनोहर भाते।
  पुष्प सभी खिल जाते।।
  पूरित ताल तलैया।
  वायु बहे पुरवैया।।


भारत भूषण पाठक'देवांश'

©Bharat Bhushan pathak

#holikadahan #होली#holi#nojotohindi#poetry#साहित्य#छंद चित्रपदा छंद विध

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#जानकारी #fisherman  {Bolo Ji Radhey Radhey}
हम सभी मनुष्य भगवान 
श्री कृष्ण की भगवत्प्राप्ति के 
अधिकारी हैं, चाहे वे किसी 
भी वर्ण, आश्रम, सम्प्रदाय, 
देश, वेश आदि के क्यों न हों।

©N S Yadav GoldMine

#fisherman {Bolo Ji Radhey Radhey} हम सभी मनुष्य भगवान श्री कृष्ण की भगवत्प्राप्ति के अधिकारी हैं, चाहे वे किसी भी वर्ण, आश्रम, सम्प्रदाय

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