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#पोएट्रीलवर्स #कविताएं #sad_shayari  White " 
   गरीबों के फल 
बाढ़ बरसात फ़सल 
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
चित्र में तेरे चेहरे की चहकती चंचलता देखकर इस वीरान सी जंगल में नाव खेकर
मुझे मरुस्थल की जहाज़ याद आती हैं। 
मगरूर बेशर्म ज़माना में भी मुझे झूलती नौका ठिठूरती  कापती नंगी  वृद्ध बदन में भीं 
एक बेमिसाल ऊर्जा भरी तेरी यौवन्ता भाती हैं।।

किसी को लगता है समझ नादानी हैं ये नई जवानी है नई रवानी हैं उमंग सयानी हैं ।
पर कोई क्या जानें ये बुढ़ापे की  भावुक कहानी हैं जोश पुरानी हैं ,पेशा खानदानी हैं ।।
सजा  मठ हाथों में है लंबी लठ माथे पर मुसीबत का हठ और डगमगाती रथ रवानी हैं 
अनपढ़ अंगूठा छाप पर शून्य भाव  ईमानदारी हैं, ह्रदय में न कोई कल छल बेईमानी है ।।

चारों तरफ बाढ़ बरसात का भरा पानी ही पानी हैं हे केवट फिर आप कैसे वहन करते हों।
 चुभते कांटों के बीच झकझोरती असहनीय तीक्ष्ण पछुआ हवाएं ये सब कैसे सहन करते हों ।।

मलिन सा मुख पर तेजता जिगर में साहस और निडरता।
चूंगते तोड़ते हुए फलों को और पेड़ के पत्तों को निहारता।।
 बरबाद न हों जाय यूंही कहीं सालों की ये कच्ची जमा पूंजी
इसीलिए शायद कभी - कभी ये बात अपने मन में विचारता।।

कड़कती बिजली से भीं भयमुक्त परिवार को भरण पोषण करनेवाले 
मेंहनतकश आप वीर ही नहीं महावीर लगे।
हां अपने बागों के रखवाले ऐसी बेरहम बेदर्द मौसम में भीं  फलचुनने वाले हे 
दीनहीन महापुरुष आप अधीर लगे।।

न खुद की फिकर है तुम्हें , न ही ख़ुद की हैं कोई खबर
कैसे करते हों इतने कठिन काम  ये हैं आराम की उमर।।
आता भीं नहीं बाबा कहीं आपको विषैले जीवजन्तु नज़र।
झाँकता हूं जो तेरे अंदर बड़ा मुश्किल लगा तेरा गुजर बसर।।

मालूम है  तुम ये कच्चे पक्के अमरूद खुद खाओगे नहीं।
बेच आओगे सस्ते दामों पर बाजारों में शर्माओगे नहीं।
तरुवर फल नहीं खात हैं पंक्ति जचता हैं तुम्हारे ऊपर।
स्वयं भूखे रह जाओगे पर एक आह तक कर पाओगे नहीं।।

कभी कभार हमे मोह लगता हैं तेरी बदनसीबी देखकर ।
तरस आता हैं तेरी मशुमियता पर धुंधली लकीरे पढ़कर।।
कमर में लिपटी एक लूंगी फटी एड़ियां तलवे इधर उधर 
रोना आता हैं तेरी तकदीर पर  पाता हूं सबको निरूतर।।

क्या गरीबों की गरीबी।   बेची नहीं जा सकती ,
क्या अमीरों की अमीरी खरीदी नहीं जा सकती।।
क्या दरिद्र होने का बस यहीं  मोल हैं।
क्या संसार मे गरीब का कुछ  नहीं रोल हैं ।।

  कोई भटके बंजारे बनकर वन वन को शर्म आता है सोचकर आदमी की अदमीयता पर ।
 क्यों कब और कैसे उठते हैं ऊंगली जब किसी की काबिलियता पर अश्लीयता पर ।।

प्रशन हैं क्या फलविक्रेता की दुर्दिन व्यथित दशा फलखाने वाले साहब लोगों को समझ नहीं आती।।
चखते हैं परखते हैं खट्टे मीठे स्वाद खरीदने से पहले लोग  क्या तराज़ू का वजन बराबर नहीं हों पाती।।

स्वरचित -, प्रकाश विद्यार्थी

©Prakash Vidyarthi
#मजदूरदिवस #कविताएं #पोएट्री #मजदूरी #thouthtOfTheDay  White ☝️शीर्षक - "मैं मज़दूर हूं"☝️

हां, मैं एक मज़दूर हूं।
खपड़ैल झूगी झोपड़ियो में गुजर बसर करनेवाला।
अपनी मेहनत के रंगों से दूसरों का नाम रंगनेवाला।
दौलतमंद ,रईसो,अमीरों को आराम विश्राम देनेवाला।
चिलचिलाती धूप जड़ा बरसात में भी काम करनेवाला।
हर कार्य को श्री गणेश कर अंतिम अंजाम देनेवाला।
जरूरत और उम्र के बंदिशों में पैसों को सलाम करनेवाला।
गरीब बेबस लाचार नौकर पापी पेट के लिए बजबूर हूं।।
हां मैं..........२

श्रमिक बन दिनरात कठिन परिश्रम करते रहता हूं।
 कृषक बनकर बंजर खेतों से भी अन्न रूपी सोना उपजाता हूं।
तो कभी होटलों में प्लेट धोता हुं मेहमानों को पानी पिलाता हूं।
कुली के भेष में कभी लोगों के समान ढोकर पहुंचाता हूं।
कभी ईट जोड़कर गगनचुम्बी महल इमारतें बनाता हुं।।
कहार बनकर किसी सजी  दुल्हन की डोली उठाता हूं ।
कोई कहता बेशक हमें अनपढ़ गवांर बेलूर हूं।
हां मैं........२

दूसरों के लिऐ जूते चप्पल बनाता हूं ख़ुद खाली पैर रेंगता हूं।
हर किसी के लिए सुत्ते कातकर नए नए वस्त्र सिलता हुं ,।।
पर अपने नंगे बदन को ढकने कि लिऐ एक धागे को तरसता हूं।।
कल कारखानों में जान जोख़िम में डालकर मशीनें चलाता हूं।
तो कभी कभार गिट्टी पत्थर को तोड़कर तराशकर सड़कें बनाता हुं।
और  थक हारकर वीरान सी इन सड़कों के किनारे  चैन से सो जाता हूं।।
भई सुख सुविधा से स्वयं मैं दूर हूं।।
हा मैं.........२

मेरे भीं बाल बच्चे हैं परिवार हैं, पर रहने के लिए अपना आशियाना नही।
दवा हैं भरपुर पर बीमार पड़ने पर हम अभागो के लिए सस्ता दवाखाना नहीं।।
गाय भैंस आदि पशुओं को पालता हूं,चारा खिलाता हूं,देखभाल करता हूं।
पर इसके दूध घी माखन मैं ख़ुद नहीं खा पाता  हूं। साहब लोगों को बेच आता हूं।।
बैंक और सरकार भी माफ नहीं करता,करजो के बोझ तले सदा दबा रहता हूं।
बच्चों के पालन पोषण शादी ब्याह के चिंता में जनाब आत्महत्या भीं कर लेता हूं ।।
महंगाई का मारा मैं बिल्कुल बेकसूर हूं।।
हां मैं .........२

कभी मैं रिक्शा ठेला बस गाड़ी चलाकर ड्राइवर, खलासी के रूप मे ।
सफर में लोगों की सेवा करता हूं,  उनके मंज़िल तक पहुंचाता हूं।।
राष्ट्र निर्माण का मैं भी सूत्रधार हूं इसलिए देशहित लोकहित के विकास ।
में मैं भी पूरी ईमानदारी से भरपूर योगदान देता हूं  अपना हाथ बटाता हूं ।।
वसूलो के राह पर चलते रहता हूं अपनी धुन में कभी चीखता, चिलाता हूं।
तो कभी संवेदनशील स्वभाव से भावनाओ में बहकर रोता, हंसता,गाता हूं।।
हुं निर्धन दयालु पर नहीं राजा क्रूर हूं।
हां मैं.........२

शायद दिमाग़ से पैदल हूं इसलिए  देशभक्तों की देशभक्ति में नहीं हमारा नाम हैं।
चतुर सियारों धूर्त जानवरों की सूची में हमारा त्याग तपस्या समर्पण सब गुलाम है।।
कैसी ये मिट्टी की मलिन मूल हैं, रहम कोई करता कहां कहीं कांटे तो कहीं फूल हैं।
मानवता की बड़ी भूल हैं पीढ़ी दर पीढ़ी कोई फलफुल रहा सब अपने में मशगूल हैं।।
न कोई सहानुभूति न अच्छा रूल हैं ,स्वार्थ के नदियों के ऊपर तारीफो के जर्जर पुल हैं।
शिक्षा के धूल बने फिरे हम विद्यार्थी गरीबों के नसीब में कहां कोई अपना स्कूल हैं।।
अब अपनी किस्मत मजदूरी के उमंग में मगरूर हूं।
हां मैं,,.........२

स्वरचित -: प्रकाश विद्यार्थी
                  आरा बिहार

©Prakash Vidyarthi
#कविताएं #पोएट्री #aaina  ।।।।।।।कलम ए विद्यार्थी।।।।।।।
+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++

आज सुबह सबेरे चमचमाती धूप में नीले अम्बर को
 निहारती जैसे किसी हिरण रूपी रौशनी को देखा!
सुनसान बंजर खेतों के बीच खड़ी चारों तरफ फलों से लदे 
लहराती गेहूं चने के झूमते पौधों और टहनी को देखा !!

लूक छिप लूक छिप झगड़ा मेल कभी फुटबॉल क्रिकेट का सेल
भाई बहन पड़ोसी भेल  मानव और जानवर में फिर कैसा बेमेल ।
छुक छुक मंद गति से कभी तेज़ रफ़्तार से चल रही थीं अपनी रेल!
सफ़र था विद्यालय तक का  पर देख रहा था मैं कुछ दूसरा खेल !!

उठकर तो कभी बैठकर झांक रहा था  उच्चकर मैं खिड़की से भी!
कितनी सुन्दर कितनी प्यारी हिरण न भाग रही थी  हिचकी से भी।।
टेढ़ी +मेढ़ी लकड+अकड़ सी सिंघ सोभती पाती हुईं थीं कानों को
सिर कर सीधा मासूम भरी कोमल निगाहों से आह रही थीं वाणो को!।

उछल कूद लगा भूल गईं थीं शायद शान्ति की थीं तालाश में
आनन्द अब न उसे कुछ आ रहा था हरे भरे फूलों और घास में ।
अकेली निर्जन वातावरण में बन की विरहन सी सजी दुलहन 
प्रेम पिपासी लग रही थीं खोई थी प्यारे प्रभू के आश में ।।

पहले जैसा अब कुछ भाव न दिखा जैसे कोई जंगली डरती हैं
कनक खनक न कुछ बता रही थी मृग नयनी बस आहे भरती हैं!
पूछ का पक्ष बना संकेतक बालो का प्रमाण अब बताता है।
कोई धनुर्धर महाबली किसी का आजकल न पीछा करता हैं!!

चेहरे का भाव बता रहा था उसकी भी मन की कुछ ईक्षा थीं
प्यार नफरत के वृत्ताकार केंद्र बीच होनेवाली अग्नि परीक्षा थीं!
सोच रही थीं गर कोई मिले भी तो न कन्हैया और न श्रीराम सा
थीं ख्वाइश घायल दिल के उसको  महादेव कैलाशी महान सा।।
@विद्यार्थी

©Prakash Vidyarthi
#कविता  मृत्यु अटल सत्य है,
यह बात जानते हुए भी ,
इंसान दुनिया की व्यर्थ मोह माया में उलझा रहता है ।

सत्य यही है ,कि इंसान कभी सत्य को स्वीकारना पसंद करता ही नहीं है।
वह जानता है कि ,वह इस दुनिया में आया हुआ एक मेहमान है ।

समय समाप्त होने पर उसकी मेहमान नवाजी खत्म हो जाएगी ।
और उसे जाना होगा प्रभु के श्री चरणों में अपने परमधाम को ।

परन्तु उसके बावजूद भी इंसान ,व्यर्थ की मोह माया में उलझा रहता है।
 उसे कल की फिक्र है ,अपनों की चिंता है और दो पैसे का लालच हैं।

वास्तव में मनुष्य का जीवन  दुविधा में पड़ा हुआ है।
समय से पहले इस सत्य को दिल से स्वीकार करें तो वह जी नहीं सकता।
और अधिक समय तक इसे स्वीकार न करें तो वह दुखों से गिर जाता है।

क्योंकि आने वाले कल की चिंता को लेकर ,
मनुष्य का आज भी बिगड़ जाता है।
इसीलिए इस परम सत्य को बुलाकर जीना भी मानव के हित में।

©Negi Girl Kammu

मृत्यु अटल सत्य।

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#विचार

अटल सत्य

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Bihari and Hypocrisy राजनीतिक समझ पर ज्ञान ऐसे देंगे जैसे इनसे बड़ा कोई ज्ञानी नहीं हो पर फिर वोट किसी अपराधी को दे आयेंगे। खाने को आटा नहीं बात बिरला और टाटा की करेंगें । गोतिया के सामने अंबानी दिखने की कोशिश करेंगे फिर बाहर राज्य में जा कर मजदूरी करेंगे। गांव समाज में अगर कोई व्यक्ति मेहनत कर के आगे बढ़ना चाह रहा हो तो उसकी लिए अड़चन पैदा करेंगे, और फिर बाद में बिहारी एकता पर ज्ञान देंगे। गांव में रहेंगे तो एक गाली पर मर्डर कर देंगे वहीं बाहर राज्य में हर दिन गाली खायेंगे और निर्लज्ज की तरह बने रहेंगे। बाल बच्चा का मुंह देखे महीना हो जाए भले ही, अपना सुख चैन बेच आयेंगे पर वोट किसी ना किसी अपराधी को दे आएंगे। अजीब से नशा में चूर हैं सब, गलती करेंगे खुद और कहेंगे मजबूर हैं सब। मेहनत से चार पैसा कमाने वाला व्यापारी इनको चोर , दो नंबर का काम करने वाला लगेगा और बेटी का रिश्ता उस सरकारी बाबू से करवाएंगे जिसका आउटी आमदनी हो यानी घुस लेता हो l ©"Vibharshi" Ranjesh Singh

#hunarbaaz  Bihari and Hypocrisy 

राजनीतिक समझ पर ज्ञान ऐसे देंगे जैसे इनसे बड़ा कोई ज्ञानी नहीं हो पर फिर वोट किसी अपराधी को दे आयेंगे। 
खाने को आटा नहीं बात बिरला और टाटा की करेंगें । 
गोतिया के सामने अंबानी दिखने की कोशिश करेंगे फिर बाहर राज्य में जा कर मजदूरी करेंगे। गांव समाज में अगर कोई व्यक्ति मेहनत कर के आगे बढ़ना चाह रहा हो तो उसकी लिए अड़चन पैदा करेंगे, और फिर बाद में बिहारी एकता पर ज्ञान देंगे। गांव में रहेंगे तो एक गाली पर मर्डर कर देंगे वहीं बाहर राज्य में हर दिन गाली खायेंगे और निर्लज्ज की तरह बने रहेंगे। बाल बच्चा का मुंह देखे महीना हो जाए भले ही, अपना सुख चैन बेच आयेंगे पर वोट किसी ना किसी अपराधी को दे आएंगे। अजीब से नशा में चूर हैं सब, गलती करेंगे खुद और कहेंगे मजबूर हैं सब। मेहनत से चार पैसा कमाने वाला व्यापारी इनको चोर , दो  नंबर का काम करने वाला लगेगा और बेटी का रिश्ता उस सरकारी बाबू से करवाएंगे जिसका आउटी आमदनी हो यानी घुस लेता हो l

©"Vibharshi" Ranjesh Singh

मैं भी एक बिहारी हूं

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#पोएट्रीलवर्स #कविताएं #sad_shayari  White " 
   गरीबों के फल 
बाढ़ बरसात फ़सल 
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
चित्र में तेरे चेहरे की चहकती चंचलता देखकर इस वीरान सी जंगल में नाव खेकर
मुझे मरुस्थल की जहाज़ याद आती हैं। 
मगरूर बेशर्म ज़माना में भी मुझे झूलती नौका ठिठूरती  कापती नंगी  वृद्ध बदन में भीं 
एक बेमिसाल ऊर्जा भरी तेरी यौवन्ता भाती हैं।।

किसी को लगता है समझ नादानी हैं ये नई जवानी है नई रवानी हैं उमंग सयानी हैं ।
पर कोई क्या जानें ये बुढ़ापे की  भावुक कहानी हैं जोश पुरानी हैं ,पेशा खानदानी हैं ।।
सजा  मठ हाथों में है लंबी लठ माथे पर मुसीबत का हठ और डगमगाती रथ रवानी हैं 
अनपढ़ अंगूठा छाप पर शून्य भाव  ईमानदारी हैं, ह्रदय में न कोई कल छल बेईमानी है ।।

चारों तरफ बाढ़ बरसात का भरा पानी ही पानी हैं हे केवट फिर आप कैसे वहन करते हों।
 चुभते कांटों के बीच झकझोरती असहनीय तीक्ष्ण पछुआ हवाएं ये सब कैसे सहन करते हों ।।

मलिन सा मुख पर तेजता जिगर में साहस और निडरता।
चूंगते तोड़ते हुए फलों को और पेड़ के पत्तों को निहारता।।
 बरबाद न हों जाय यूंही कहीं सालों की ये कच्ची जमा पूंजी
इसीलिए शायद कभी - कभी ये बात अपने मन में विचारता।।

कड़कती बिजली से भीं भयमुक्त परिवार को भरण पोषण करनेवाले 
मेंहनतकश आप वीर ही नहीं महावीर लगे।
हां अपने बागों के रखवाले ऐसी बेरहम बेदर्द मौसम में भीं  फलचुनने वाले हे 
दीनहीन महापुरुष आप अधीर लगे।।

न खुद की फिकर है तुम्हें , न ही ख़ुद की हैं कोई खबर
कैसे करते हों इतने कठिन काम  ये हैं आराम की उमर।।
आता भीं नहीं बाबा कहीं आपको विषैले जीवजन्तु नज़र।
झाँकता हूं जो तेरे अंदर बड़ा मुश्किल लगा तेरा गुजर बसर।।

मालूम है  तुम ये कच्चे पक्के अमरूद खुद खाओगे नहीं।
बेच आओगे सस्ते दामों पर बाजारों में शर्माओगे नहीं।
तरुवर फल नहीं खात हैं पंक्ति जचता हैं तुम्हारे ऊपर।
स्वयं भूखे रह जाओगे पर एक आह तक कर पाओगे नहीं।।

कभी कभार हमे मोह लगता हैं तेरी बदनसीबी देखकर ।
तरस आता हैं तेरी मशुमियता पर धुंधली लकीरे पढ़कर।।
कमर में लिपटी एक लूंगी फटी एड़ियां तलवे इधर उधर 
रोना आता हैं तेरी तकदीर पर  पाता हूं सबको निरूतर।।

क्या गरीबों की गरीबी।   बेची नहीं जा सकती ,
क्या अमीरों की अमीरी खरीदी नहीं जा सकती।।
क्या दरिद्र होने का बस यहीं  मोल हैं।
क्या संसार मे गरीब का कुछ  नहीं रोल हैं ।।

  कोई भटके बंजारे बनकर वन वन को शर्म आता है सोचकर आदमी की अदमीयता पर ।
 क्यों कब और कैसे उठते हैं ऊंगली जब किसी की काबिलियता पर अश्लीयता पर ।।

प्रशन हैं क्या फलविक्रेता की दुर्दिन व्यथित दशा फलखाने वाले साहब लोगों को समझ नहीं आती।।
चखते हैं परखते हैं खट्टे मीठे स्वाद खरीदने से पहले लोग  क्या तराज़ू का वजन बराबर नहीं हों पाती।।

स्वरचित -, प्रकाश विद्यार्थी

©Prakash Vidyarthi
#मजदूरदिवस #कविताएं #पोएट्री #मजदूरी #thouthtOfTheDay  White ☝️शीर्षक - "मैं मज़दूर हूं"☝️

हां, मैं एक मज़दूर हूं।
खपड़ैल झूगी झोपड़ियो में गुजर बसर करनेवाला।
अपनी मेहनत के रंगों से दूसरों का नाम रंगनेवाला।
दौलतमंद ,रईसो,अमीरों को आराम विश्राम देनेवाला।
चिलचिलाती धूप जड़ा बरसात में भी काम करनेवाला।
हर कार्य को श्री गणेश कर अंतिम अंजाम देनेवाला।
जरूरत और उम्र के बंदिशों में पैसों को सलाम करनेवाला।
गरीब बेबस लाचार नौकर पापी पेट के लिए बजबूर हूं।।
हां मैं..........२

श्रमिक बन दिनरात कठिन परिश्रम करते रहता हूं।
 कृषक बनकर बंजर खेतों से भी अन्न रूपी सोना उपजाता हूं।
तो कभी होटलों में प्लेट धोता हुं मेहमानों को पानी पिलाता हूं।
कुली के भेष में कभी लोगों के समान ढोकर पहुंचाता हूं।
कभी ईट जोड़कर गगनचुम्बी महल इमारतें बनाता हुं।।
कहार बनकर किसी सजी  दुल्हन की डोली उठाता हूं ।
कोई कहता बेशक हमें अनपढ़ गवांर बेलूर हूं।
हां मैं........२

दूसरों के लिऐ जूते चप्पल बनाता हूं ख़ुद खाली पैर रेंगता हूं।
हर किसी के लिए सुत्ते कातकर नए नए वस्त्र सिलता हुं ,।।
पर अपने नंगे बदन को ढकने कि लिऐ एक धागे को तरसता हूं।।
कल कारखानों में जान जोख़िम में डालकर मशीनें चलाता हूं।
तो कभी कभार गिट्टी पत्थर को तोड़कर तराशकर सड़कें बनाता हुं।
और  थक हारकर वीरान सी इन सड़कों के किनारे  चैन से सो जाता हूं।।
भई सुख सुविधा से स्वयं मैं दूर हूं।।
हा मैं.........२

मेरे भीं बाल बच्चे हैं परिवार हैं, पर रहने के लिए अपना आशियाना नही।
दवा हैं भरपुर पर बीमार पड़ने पर हम अभागो के लिए सस्ता दवाखाना नहीं।।
गाय भैंस आदि पशुओं को पालता हूं,चारा खिलाता हूं,देखभाल करता हूं।
पर इसके दूध घी माखन मैं ख़ुद नहीं खा पाता  हूं। साहब लोगों को बेच आता हूं।।
बैंक और सरकार भी माफ नहीं करता,करजो के बोझ तले सदा दबा रहता हूं।
बच्चों के पालन पोषण शादी ब्याह के चिंता में जनाब आत्महत्या भीं कर लेता हूं ।।
महंगाई का मारा मैं बिल्कुल बेकसूर हूं।।
हां मैं .........२

कभी मैं रिक्शा ठेला बस गाड़ी चलाकर ड्राइवर, खलासी के रूप मे ।
सफर में लोगों की सेवा करता हूं,  उनके मंज़िल तक पहुंचाता हूं।।
राष्ट्र निर्माण का मैं भी सूत्रधार हूं इसलिए देशहित लोकहित के विकास ।
में मैं भी पूरी ईमानदारी से भरपूर योगदान देता हूं  अपना हाथ बटाता हूं ।।
वसूलो के राह पर चलते रहता हूं अपनी धुन में कभी चीखता, चिलाता हूं।
तो कभी संवेदनशील स्वभाव से भावनाओ में बहकर रोता, हंसता,गाता हूं।।
हुं निर्धन दयालु पर नहीं राजा क्रूर हूं।
हां मैं.........२

शायद दिमाग़ से पैदल हूं इसलिए  देशभक्तों की देशभक्ति में नहीं हमारा नाम हैं।
चतुर सियारों धूर्त जानवरों की सूची में हमारा त्याग तपस्या समर्पण सब गुलाम है।।
कैसी ये मिट्टी की मलिन मूल हैं, रहम कोई करता कहां कहीं कांटे तो कहीं फूल हैं।
मानवता की बड़ी भूल हैं पीढ़ी दर पीढ़ी कोई फलफुल रहा सब अपने में मशगूल हैं।।
न कोई सहानुभूति न अच्छा रूल हैं ,स्वार्थ के नदियों के ऊपर तारीफो के जर्जर पुल हैं।
शिक्षा के धूल बने फिरे हम विद्यार्थी गरीबों के नसीब में कहां कोई अपना स्कूल हैं।।
अब अपनी किस्मत मजदूरी के उमंग में मगरूर हूं।
हां मैं,,.........२

स्वरचित -: प्रकाश विद्यार्थी
                  आरा बिहार

©Prakash Vidyarthi
#कविताएं #पोएट्री #aaina  ।।।।।।।कलम ए विद्यार्थी।।।।।।।
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आज सुबह सबेरे चमचमाती धूप में नीले अम्बर को
 निहारती जैसे किसी हिरण रूपी रौशनी को देखा!
सुनसान बंजर खेतों के बीच खड़ी चारों तरफ फलों से लदे 
लहराती गेहूं चने के झूमते पौधों और टहनी को देखा !!

लूक छिप लूक छिप झगड़ा मेल कभी फुटबॉल क्रिकेट का सेल
भाई बहन पड़ोसी भेल  मानव और जानवर में फिर कैसा बेमेल ।
छुक छुक मंद गति से कभी तेज़ रफ़्तार से चल रही थीं अपनी रेल!
सफ़र था विद्यालय तक का  पर देख रहा था मैं कुछ दूसरा खेल !!

उठकर तो कभी बैठकर झांक रहा था  उच्चकर मैं खिड़की से भी!
कितनी सुन्दर कितनी प्यारी हिरण न भाग रही थी  हिचकी से भी।।
टेढ़ी +मेढ़ी लकड+अकड़ सी सिंघ सोभती पाती हुईं थीं कानों को
सिर कर सीधा मासूम भरी कोमल निगाहों से आह रही थीं वाणो को!।

उछल कूद लगा भूल गईं थीं शायद शान्ति की थीं तालाश में
आनन्द अब न उसे कुछ आ रहा था हरे भरे फूलों और घास में ।
अकेली निर्जन वातावरण में बन की विरहन सी सजी दुलहन 
प्रेम पिपासी लग रही थीं खोई थी प्यारे प्रभू के आश में ।।

पहले जैसा अब कुछ भाव न दिखा जैसे कोई जंगली डरती हैं
कनक खनक न कुछ बता रही थी मृग नयनी बस आहे भरती हैं!
पूछ का पक्ष बना संकेतक बालो का प्रमाण अब बताता है।
कोई धनुर्धर महाबली किसी का आजकल न पीछा करता हैं!!

चेहरे का भाव बता रहा था उसकी भी मन की कुछ ईक्षा थीं
प्यार नफरत के वृत्ताकार केंद्र बीच होनेवाली अग्नि परीक्षा थीं!
सोच रही थीं गर कोई मिले भी तो न कन्हैया और न श्रीराम सा
थीं ख्वाइश घायल दिल के उसको  महादेव कैलाशी महान सा।।
@विद्यार्थी

©Prakash Vidyarthi
#कविता  मृत्यु अटल सत्य है,
यह बात जानते हुए भी ,
इंसान दुनिया की व्यर्थ मोह माया में उलझा रहता है ।

सत्य यही है ,कि इंसान कभी सत्य को स्वीकारना पसंद करता ही नहीं है।
वह जानता है कि ,वह इस दुनिया में आया हुआ एक मेहमान है ।

समय समाप्त होने पर उसकी मेहमान नवाजी खत्म हो जाएगी ।
और उसे जाना होगा प्रभु के श्री चरणों में अपने परमधाम को ।

परन्तु उसके बावजूद भी इंसान ,व्यर्थ की मोह माया में उलझा रहता है।
 उसे कल की फिक्र है ,अपनों की चिंता है और दो पैसे का लालच हैं।

वास्तव में मनुष्य का जीवन  दुविधा में पड़ा हुआ है।
समय से पहले इस सत्य को दिल से स्वीकार करें तो वह जी नहीं सकता।
और अधिक समय तक इसे स्वीकार न करें तो वह दुखों से गिर जाता है।

क्योंकि आने वाले कल की चिंता को लेकर ,
मनुष्य का आज भी बिगड़ जाता है।
इसीलिए इस परम सत्य को बुलाकर जीना भी मानव के हित में।

©Negi Girl Kammu

मृत्यु अटल सत्य।

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#विचार

अटल सत्य

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Bihari and Hypocrisy राजनीतिक समझ पर ज्ञान ऐसे देंगे जैसे इनसे बड़ा कोई ज्ञानी नहीं हो पर फिर वोट किसी अपराधी को दे आयेंगे। खाने को आटा नहीं बात बिरला और टाटा की करेंगें । गोतिया के सामने अंबानी दिखने की कोशिश करेंगे फिर बाहर राज्य में जा कर मजदूरी करेंगे। गांव समाज में अगर कोई व्यक्ति मेहनत कर के आगे बढ़ना चाह रहा हो तो उसकी लिए अड़चन पैदा करेंगे, और फिर बाद में बिहारी एकता पर ज्ञान देंगे। गांव में रहेंगे तो एक गाली पर मर्डर कर देंगे वहीं बाहर राज्य में हर दिन गाली खायेंगे और निर्लज्ज की तरह बने रहेंगे। बाल बच्चा का मुंह देखे महीना हो जाए भले ही, अपना सुख चैन बेच आयेंगे पर वोट किसी ना किसी अपराधी को दे आएंगे। अजीब से नशा में चूर हैं सब, गलती करेंगे खुद और कहेंगे मजबूर हैं सब। मेहनत से चार पैसा कमाने वाला व्यापारी इनको चोर , दो नंबर का काम करने वाला लगेगा और बेटी का रिश्ता उस सरकारी बाबू से करवाएंगे जिसका आउटी आमदनी हो यानी घुस लेता हो l ©"Vibharshi" Ranjesh Singh

#hunarbaaz  Bihari and Hypocrisy 

राजनीतिक समझ पर ज्ञान ऐसे देंगे जैसे इनसे बड़ा कोई ज्ञानी नहीं हो पर फिर वोट किसी अपराधी को दे आयेंगे। 
खाने को आटा नहीं बात बिरला और टाटा की करेंगें । 
गोतिया के सामने अंबानी दिखने की कोशिश करेंगे फिर बाहर राज्य में जा कर मजदूरी करेंगे। गांव समाज में अगर कोई व्यक्ति मेहनत कर के आगे बढ़ना चाह रहा हो तो उसकी लिए अड़चन पैदा करेंगे, और फिर बाद में बिहारी एकता पर ज्ञान देंगे। गांव में रहेंगे तो एक गाली पर मर्डर कर देंगे वहीं बाहर राज्य में हर दिन गाली खायेंगे और निर्लज्ज की तरह बने रहेंगे। बाल बच्चा का मुंह देखे महीना हो जाए भले ही, अपना सुख चैन बेच आयेंगे पर वोट किसी ना किसी अपराधी को दे आएंगे। अजीब से नशा में चूर हैं सब, गलती करेंगे खुद और कहेंगे मजबूर हैं सब। मेहनत से चार पैसा कमाने वाला व्यापारी इनको चोर , दो  नंबर का काम करने वाला लगेगा और बेटी का रिश्ता उस सरकारी बाबू से करवाएंगे जिसका आउटी आमदनी हो यानी घुस लेता हो l

©"Vibharshi" Ranjesh Singh

मैं भी एक बिहारी हूं

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