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New निळ्या रक्ताचा प्राणी Status, Photo, Video

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#Animals #Quotes  “मूक प्राणी के लिए जीवन उतना ही प्रिय है जितना इन्सान के लिए है जैसे ही कोई इन्सान खुशी और दर्द चाहता है वैसे ही अन्य जीव भी चाहते हैं।”

©Ankit Singh

मूक प्राणी के लिए जीवन उतना ही प्रिय है जितना इन्सान के लिए है जैसे ही कोई इन्सान खुशी और दर्द चाहता है वैसे ही अन्य जीव भी चाहते हैं #anima

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कुण्डलिया :- संकट सम्मुख देखकर , देते आपा खोय । देते फिर भी ज्ञान हैं , राम करे सो होय।। राम करे सो होय , जानते सब है प्राणी । फिर क्यों करके क्रोध , बोलते हो कटु वाणी । भूल प्रेम व्यवहार , खड़ा करते हो झंझट । आज परीक्षा मान , भूल जाओ सब संकट ।। २२/०३/२०२४ -महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  कुण्डलिया :-
संकट सम्मुख देखकर , देते आपा खोय ।
देते फिर भी ज्ञान हैं , राम करे सो होय।।
राम करे सो होय , जानते सब है प्राणी ।
फिर क्यों करके क्रोध , बोलते हो कटु वाणी ।
भूल प्रेम व्यवहार , खड़ा करते हो झंझट ।
आज परीक्षा मान , भूल जाओ सब संकट ।।
२२/०३/२०२४    -महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :- संकट सम्मुख देखकर , देते आपा खोय । देते फिर भी ज्ञान हैं , राम करे सो होय।। राम करे सो होय , जानते सब है प्राणी । फिर क्यों कर

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Village Life सन्ध्या छन्द  221    111    22 माया जब भरमाती । पीड़ा तन बढ़ जाती ।। देखो पढ़कर गीता । ये जीवन अब बीता ।। क्या तू अब सँभलेगा । या तू नित भटकेगा ।। साधू कब तक बोले । लोभी मन मत डोले ।। इच्छा जब बढ़ती है । वो तो फिर डसती है ।। हो जीवन फिर बाधा । बोले गिरधर राधा ।। मीठी सुनकर वाणी । दौड़े सब अब प्राणी ।। सोचा नहिँ कुछ आगे । जोड़े मन-मन धागे ।। १४/०३/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  Village Life सन्ध्या छन्द 
221    111    22
माया जब भरमाती ।
पीड़ा तन बढ़ जाती ।।
देखो पढ़कर गीता ।
ये जीवन अब बीता ।।
क्या तू अब सँभलेगा ।
या तू नित भटकेगा ।।
साधू कब तक बोले ।
लोभी मन मत डोले ।।
इच्छा जब बढ़ती है ।
वो तो फिर डसती है ।।
हो जीवन फिर बाधा ।
बोले गिरधर राधा ।।
मीठी सुनकर वाणी ।
दौड़े सब अब प्राणी ।।
सोचा नहिँ कुछ आगे ।
जोड़े मन-मन धागे ।।
१४/०३/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

सन्ध्या छन्द  221    111    22 माया जब भरमाती । पीड़ा तन बढ़ जाती ।। देखो पढ़कर गीता । ये जीवन अब बीता ।। क्या तू अब सँभलेगा । या तू नित भटकेगा

15 Love

प्रदीप छन्द दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में । वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।। घर में बैठे मातु-पिता ही , सुन रघुवर के रूप हैं । शरण चला जा उनके प्यारे , वह भी तेरे भूप हैं ।। मन को अपने आज सँभालो , उलझ गया है बाट में । सारे तीरथ मन के होते , जो है गंगा घाट में ।। तन के वस्त्र नहीं मिलते तो, लिपटा रह तू टाट में । आ जायेगी नींद तुझे भी , सुन ले टूटी खाट में ।। जितनी मन्नत माँग रहे हो , जाकर तुम दरगाह में । उतनी सेवा दीन दुखी की , जाकर कर दो राह में ।। सुनो दौड़ आयेंगी खुशियाँ , बस इतनी परवाह में । मत ले उनकी आज परीक्षा , वो हैं कितनी थाह में ।। जीवन में खुशियों का मेला , आता मन को मार के । दूजा कर्म हमेशा देता , सुन खुशियां उपहार के ।। जीवन की भागा दौड़ी में , बैठो मत तुम हार के । यही सीढ़ियां ऊपर जाएं ,  देखो नित संसार के ।। २८/०२/२०२४       -    महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  प्रदीप छन्द

दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में ।
वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।।
घर में बैठे मातु-पिता ही , सुन रघुवर के रूप हैं ।
शरण चला जा उनके प्यारे , वह भी तेरे भूप हैं ।।

मन को अपने आज सँभालो , उलझ गया है बाट में ।
सारे तीरथ मन के होते , जो है गंगा घाट में ।।
तन के वस्त्र नहीं मिलते तो, लिपटा रह तू टाट में ।
आ जायेगी नींद तुझे भी , सुन ले टूटी खाट में ।।

जितनी मन्नत माँग रहे हो , जाकर तुम दरगाह में ।
उतनी सेवा दीन दुखी की , जाकर कर दो राह में ।।
सुनो दौड़ आयेंगी खुशियाँ , बस इतनी परवाह में ।
मत ले उनकी आज परीक्षा , वो हैं कितनी थाह में ।।

जीवन में खुशियों का मेला , आता मन को मार के ।
दूजा कर्म हमेशा देता , सुन खुशियां उपहार के ।।
जीवन की भागा दौड़ी में , बैठो मत तुम हार के ।
यही सीढ़ियां ऊपर जाएं ,  देखो नित संसार के ।।

२८/०२/२०२४       -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

प्रदीप छन्द दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में । वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।। घर में बैठे मातु-पिता ही , सु

11 Love

#समाज  हमने रिश्ते को बिगड़ते हुए देखा .......
अपनों को अपनों से झगड़ते हुए देखा
 ........हमने घरों को उजड़ते हुए देखा
हर इंसान को बदलते हुए देखा
छल , कपट , खुदगर्जी ...............
 ...........……इन्हें अपनाते हुए देखा
प्रेम , त्याग , इंसानियत
को भुलाते हुए देखा ..............…........
पैसा , धर्म , जात ,रंग , भाषा , जमीन
 ..........…...........इसके लिए इंसान को
जानवर होते हुए देखा
सच में इंसान को  .........................
इतनी नीचे गिरते हुए देखा

©वंदना ....

हमारे पूर्वज जो बंदर थे ना ..धीरे-धीरे उनकी बुद्धि डेवलप होती गई ...आज उसका अंजाम हमारे सामने है ....कभी-कभी सवाल आता है . .और भी प्राणी थे

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सोच समझ ले प्राणी तेरा असली कहां ठिकाना अपनी लेखनी अपनी वार्ता लेखक भगत सतीश कुमार घोडेला

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#Animals #Quotes  “मूक प्राणी के लिए जीवन उतना ही प्रिय है जितना इन्सान के लिए है जैसे ही कोई इन्सान खुशी और दर्द चाहता है वैसे ही अन्य जीव भी चाहते हैं।”

©Ankit Singh

मूक प्राणी के लिए जीवन उतना ही प्रिय है जितना इन्सान के लिए है जैसे ही कोई इन्सान खुशी और दर्द चाहता है वैसे ही अन्य जीव भी चाहते हैं #anima

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कुण्डलिया :- संकट सम्मुख देखकर , देते आपा खोय । देते फिर भी ज्ञान हैं , राम करे सो होय।। राम करे सो होय , जानते सब है प्राणी । फिर क्यों करके क्रोध , बोलते हो कटु वाणी । भूल प्रेम व्यवहार , खड़ा करते हो झंझट । आज परीक्षा मान , भूल जाओ सब संकट ।। २२/०३/२०२४ -महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  कुण्डलिया :-
संकट सम्मुख देखकर , देते आपा खोय ।
देते फिर भी ज्ञान हैं , राम करे सो होय।।
राम करे सो होय , जानते सब है प्राणी ।
फिर क्यों करके क्रोध , बोलते हो कटु वाणी ।
भूल प्रेम व्यवहार , खड़ा करते हो झंझट ।
आज परीक्षा मान , भूल जाओ सब संकट ।।
२२/०३/२०२४    -महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :- संकट सम्मुख देखकर , देते आपा खोय । देते फिर भी ज्ञान हैं , राम करे सो होय।। राम करे सो होय , जानते सब है प्राणी । फिर क्यों कर

9 Love

Village Life सन्ध्या छन्द  221    111    22 माया जब भरमाती । पीड़ा तन बढ़ जाती ।। देखो पढ़कर गीता । ये जीवन अब बीता ।। क्या तू अब सँभलेगा । या तू नित भटकेगा ।। साधू कब तक बोले । लोभी मन मत डोले ।। इच्छा जब बढ़ती है । वो तो फिर डसती है ।। हो जीवन फिर बाधा । बोले गिरधर राधा ।। मीठी सुनकर वाणी । दौड़े सब अब प्राणी ।। सोचा नहिँ कुछ आगे । जोड़े मन-मन धागे ।। १४/०३/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  Village Life सन्ध्या छन्द 
221    111    22
माया जब भरमाती ।
पीड़ा तन बढ़ जाती ।।
देखो पढ़कर गीता ।
ये जीवन अब बीता ।।
क्या तू अब सँभलेगा ।
या तू नित भटकेगा ।।
साधू कब तक बोले ।
लोभी मन मत डोले ।।
इच्छा जब बढ़ती है ।
वो तो फिर डसती है ।।
हो जीवन फिर बाधा ।
बोले गिरधर राधा ।।
मीठी सुनकर वाणी ।
दौड़े सब अब प्राणी ।।
सोचा नहिँ कुछ आगे ।
जोड़े मन-मन धागे ।।
१४/०३/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

सन्ध्या छन्द  221    111    22 माया जब भरमाती । पीड़ा तन बढ़ जाती ।। देखो पढ़कर गीता । ये जीवन अब बीता ।। क्या तू अब सँभलेगा । या तू नित भटकेगा

15 Love

प्रदीप छन्द दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में । वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।। घर में बैठे मातु-पिता ही , सुन रघुवर के रूप हैं । शरण चला जा उनके प्यारे , वह भी तेरे भूप हैं ।। मन को अपने आज सँभालो , उलझ गया है बाट में । सारे तीरथ मन के होते , जो है गंगा घाट में ।। तन के वस्त्र नहीं मिलते तो, लिपटा रह तू टाट में । आ जायेगी नींद तुझे भी , सुन ले टूटी खाट में ।। जितनी मन्नत माँग रहे हो , जाकर तुम दरगाह में । उतनी सेवा दीन दुखी की , जाकर कर दो राह में ।। सुनो दौड़ आयेंगी खुशियाँ , बस इतनी परवाह में । मत ले उनकी आज परीक्षा , वो हैं कितनी थाह में ।। जीवन में खुशियों का मेला , आता मन को मार के । दूजा कर्म हमेशा देता , सुन खुशियां उपहार के ।। जीवन की भागा दौड़ी में , बैठो मत तुम हार के । यही सीढ़ियां ऊपर जाएं ,  देखो नित संसार के ।। २८/०२/२०२४       -    महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  प्रदीप छन्द

दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में ।
वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।।
घर में बैठे मातु-पिता ही , सुन रघुवर के रूप हैं ।
शरण चला जा उनके प्यारे , वह भी तेरे भूप हैं ।।

मन को अपने आज सँभालो , उलझ गया है बाट में ।
सारे तीरथ मन के होते , जो है गंगा घाट में ।।
तन के वस्त्र नहीं मिलते तो, लिपटा रह तू टाट में ।
आ जायेगी नींद तुझे भी , सुन ले टूटी खाट में ।।

जितनी मन्नत माँग रहे हो , जाकर तुम दरगाह में ।
उतनी सेवा दीन दुखी की , जाकर कर दो राह में ।।
सुनो दौड़ आयेंगी खुशियाँ , बस इतनी परवाह में ।
मत ले उनकी आज परीक्षा , वो हैं कितनी थाह में ।।

जीवन में खुशियों का मेला , आता मन को मार के ।
दूजा कर्म हमेशा देता , सुन खुशियां उपहार के ।।
जीवन की भागा दौड़ी में , बैठो मत तुम हार के ।
यही सीढ़ियां ऊपर जाएं ,  देखो नित संसार के ।।

२८/०२/२०२४       -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

प्रदीप छन्द दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में । वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।। घर में बैठे मातु-पिता ही , सु

11 Love

#समाज  हमने रिश्ते को बिगड़ते हुए देखा .......
अपनों को अपनों से झगड़ते हुए देखा
 ........हमने घरों को उजड़ते हुए देखा
हर इंसान को बदलते हुए देखा
छल , कपट , खुदगर्जी ...............
 ...........……इन्हें अपनाते हुए देखा
प्रेम , त्याग , इंसानियत
को भुलाते हुए देखा ..............…........
पैसा , धर्म , जात ,रंग , भाषा , जमीन
 ..........…...........इसके लिए इंसान को
जानवर होते हुए देखा
सच में इंसान को  .........................
इतनी नीचे गिरते हुए देखा

©वंदना ....

हमारे पूर्वज जो बंदर थे ना ..धीरे-धीरे उनकी बुद्धि डेवलप होती गई ...आज उसका अंजाम हमारे सामने है ....कभी-कभी सवाल आता है . .और भी प्राणी थे

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सोच समझ ले प्राणी तेरा असली कहां ठिकाना अपनी लेखनी अपनी वार्ता लेखक भगत सतीश कुमार घोडेला

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