घर से निकली गोपियाँ , लेकर हाथ गुलाल ।
छुपते फिरते हैं इधर , देख नगर के ग्वाल ।।
लेकर हाथ गुलाल से , छूना चाहो गाल ।
आज तुम्हारी चाल का , पूरा रखूँ खयाल ।।
आये कितनी दूर से , देखो है ये ग्वाल ।
हे राधा छू लेन दो , यही नन्द के लाल ।।
हर कोई मोहन बना , लेकर आज गुलाल ।
मैं कोई नादान हूँ , सब समझूँ मैं चाल ।।
भर पिचकारी मारते , हम भी तुझे गुलाल ।
तुम बिन तो अपनी यहाँ , रहती आँखें लाल ।।
रिश्ता :-
रिश्ता अपना भी यहाँ , देखो एक मिसाल ।
छुपा किसी से है नही , हम दोनो का हाल ।।
रिश्ते की बुनियाद है , अटल हमारी प्रीति ।
क्या तोड़ेगा जग इसे , जिसकी उलटी रीति ।।
रिश्ते में हम आप हैं , पति पत्नी का रूप ।
मातु-पिता को मानते , हैं हम अपने भूप ।।
रिश्तों की बगिया खिली , तनय उसी के फूल ।
लेकिन उनमें आज कुछ , बनकर चुभते शूल ।।
एक रंग है रक्त का , जीव जन्तु इंसान ।
जिनका रिश्ता ये जगत , जोड़ गया भगवान ।।
रिश्ता छोटा हो गया , पति पत्नी आधार ।
मातु-पिता बैरी बने , साला है परिवार ।।
०७/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
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