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#गजल  White दिलों के माबैन शक की दीवार हो रही है
तो क्या जुदाई की राह हमवार हो रही है

ज़रा सा मुझ को भी तजरबा कम है रास्ते का
ज़रा सी तेरी भी तेज़ रफ़्तार हो रही है

उधर से भी जो चाहिए था नहीं मिला है
इधर हमारी भी उम्र बे-कार हो रही है

शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा
सो अपने रस्ते में धूप दीवार हो रही है

बस इक तअ'ल्लुक़ ने मेरी नींदें उड़ा रखी हैं
बस इक शनासाई जाँ का आज़ार हो रही है

यहाँ से क़िस्सा शुरूअ' होता है क़त्ल-ओ-ख़ूँ का
यहाँ से ये दास्ताँ मज़ेदार हो रही है

ये लोग दुनिया को किस तरफ़ ले के जा रहे हैं
ये लोग जिन की ज़बान तलवार हो रही है

           शकील जमाली

©Nilam Agarwalla

#गजल

117 View

#हिन्दी #पुस्तक #कविता #गजल  मेरी नई पुस्तक

©S K Sachin उर्फ sachit
 अब तुम्हारे प्यार के बारे में क्या कहूं?

मैं तो तुम्हारे दिए ज़ख्म को भी
सीने से लगा कर रखता हूं...

©Madhur Nayan Mishra

#MountainPeak #शायरी #गजल

126 View

#शायरी #गजल  वही शाम वही रात वही तारे हैं
 मगर मायूस दिल वही नजारे हैं

लगा था कल जंग जीत कर आए
आज बैठे हैं जैसे जिंदगी से हारे हैं

मेरी  जहां से खफा हो चांद गया
गम मैं डूबे मिलते नहीं किनारे हैं

गुल खिले खुशबू से घुट रहा है दम
आज बेखुद हमें तड़पा रही बहारें हैं

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#गजल

99 View

न जाने क्या ज़माना चाहता है, मेरी ख़ुशियां मिटाना चाहता है। मेरी मासूमियत को छीन कर क्यों, मुझे शातिर बनाना चाहता है. अभी कोई कमी बाक़ी है शायद, जो फिर से आज़माना चाहता है। मिटाकर तीरगी अब ज़िन्दगी से, उजाले में वो आना चाहता है। निगाहों से लगे सीधा जिगर पर, वो इक ऐसा निशाना चाहता है । परिंदे की है बस इतनी सी ख़्वाहिश, नशेमन फिर बसाना चाहता है। अल्पना सुहासिनी ©Dr. Alpana suhasini

#गजल_सृजन #शायरी #गजल  न जाने क्या ज़माना चाहता है,
मेरी ख़ुशियां मिटाना चाहता है।

मेरी  मासूमियत को छीन कर क्यों,
मुझे शातिर बनाना चाहता है.

अभी कोई कमी बाक़ी है शायद,
जो फिर से आज़माना चाहता है।

मिटाकर तीरगी अब ज़िन्दगी से,
उजाले में वो आना चाहता है।

निगाहों से लगे सीधा जिगर पर,
वो इक ऐसा निशाना चाहता है । 

परिंदे की है बस इतनी सी ख़्वाहिश,
नशेमन फिर बसाना चाहता है।
         अल्पना सुहासिनी

©Dr. Alpana suhasini
#शायरी #गजल  गजल

करवट बदल बदल कर क्यूं रात बितातें हैं
इक नाम क्यों जमीं पर लिखतें हैं मिटाते हैं

मालूम है डगर में लुट जातें हैं मुसाफिर
गर लुट गए तो फिर क्यों अब शोर मचाते हैं

कट कर पतंग कोई आती न लौट करके
धागे में बांध फिर क्यूं खुशियों को उड़ाते हैं

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#गजल

108 View

#गजल  White दिलों के माबैन शक की दीवार हो रही है
तो क्या जुदाई की राह हमवार हो रही है

ज़रा सा मुझ को भी तजरबा कम है रास्ते का
ज़रा सी तेरी भी तेज़ रफ़्तार हो रही है

उधर से भी जो चाहिए था नहीं मिला है
इधर हमारी भी उम्र बे-कार हो रही है

शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा
सो अपने रस्ते में धूप दीवार हो रही है

बस इक तअ'ल्लुक़ ने मेरी नींदें उड़ा रखी हैं
बस इक शनासाई जाँ का आज़ार हो रही है

यहाँ से क़िस्सा शुरूअ' होता है क़त्ल-ओ-ख़ूँ का
यहाँ से ये दास्ताँ मज़ेदार हो रही है

ये लोग दुनिया को किस तरफ़ ले के जा रहे हैं
ये लोग जिन की ज़बान तलवार हो रही है

           शकील जमाली

©Nilam Agarwalla

#गजल

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#हिन्दी #पुस्तक #कविता #गजल  मेरी नई पुस्तक

©S K Sachin उर्फ sachit
 अब तुम्हारे प्यार के बारे में क्या कहूं?

मैं तो तुम्हारे दिए ज़ख्म को भी
सीने से लगा कर रखता हूं...

©Madhur Nayan Mishra

#MountainPeak #शायरी #गजल

126 View

#शायरी #गजल  वही शाम वही रात वही तारे हैं
 मगर मायूस दिल वही नजारे हैं

लगा था कल जंग जीत कर आए
आज बैठे हैं जैसे जिंदगी से हारे हैं

मेरी  जहां से खफा हो चांद गया
गम मैं डूबे मिलते नहीं किनारे हैं

गुल खिले खुशबू से घुट रहा है दम
आज बेखुद हमें तड़पा रही बहारें हैं

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#गजल

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न जाने क्या ज़माना चाहता है, मेरी ख़ुशियां मिटाना चाहता है। मेरी मासूमियत को छीन कर क्यों, मुझे शातिर बनाना चाहता है. अभी कोई कमी बाक़ी है शायद, जो फिर से आज़माना चाहता है। मिटाकर तीरगी अब ज़िन्दगी से, उजाले में वो आना चाहता है। निगाहों से लगे सीधा जिगर पर, वो इक ऐसा निशाना चाहता है । परिंदे की है बस इतनी सी ख़्वाहिश, नशेमन फिर बसाना चाहता है। अल्पना सुहासिनी ©Dr. Alpana suhasini

#गजल_सृजन #शायरी #गजल  न जाने क्या ज़माना चाहता है,
मेरी ख़ुशियां मिटाना चाहता है।

मेरी  मासूमियत को छीन कर क्यों,
मुझे शातिर बनाना चाहता है.

अभी कोई कमी बाक़ी है शायद,
जो फिर से आज़माना चाहता है।

मिटाकर तीरगी अब ज़िन्दगी से,
उजाले में वो आना चाहता है।

निगाहों से लगे सीधा जिगर पर,
वो इक ऐसा निशाना चाहता है । 

परिंदे की है बस इतनी सी ख़्वाहिश,
नशेमन फिर बसाना चाहता है।
         अल्पना सुहासिनी

©Dr. Alpana suhasini
#शायरी #गजल  गजल

करवट बदल बदल कर क्यूं रात बितातें हैं
इक नाम क्यों जमीं पर लिखतें हैं मिटाते हैं

मालूम है डगर में लुट जातें हैं मुसाफिर
गर लुट गए तो फिर क्यों अब शोर मचाते हैं

कट कर पतंग कोई आती न लौट करके
धागे में बांध फिर क्यूं खुशियों को उड़ाते हैं

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#गजल

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