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दोहा :-  उलझा जीवन में रहे , करता नहीं विचार । मानव भी यह मूर्ख है , त्याग रहा संसार ।। जीवन के हर मोड़ पर , मिल ही जाते लोग । कुछ तो देते साथ हैं, कुछ करते उपयोग ।। सुखमय जीवन के लिए , जप लेना हरि नाम । बडा सरल सुंदर लगे , कह के देखो राम ।। पग-पग सुंदर है धरा , पग-पग प्रभु का धाम ।  जहाँ कहीं भी हो खड़े , बोलो सीताराम ।। क्यों होते हो तुम दुखी , पहुंच न पाये धाम । इतना मत सोचो कभी , यहीं सुमिरि लो नाम ।। मंदिर मस्जिद आज तो , लगते है समुदाय । जिससे नित सरकार अब ,बढ़ा रही है आय ।। महादेव है ध्यान में , सूर्यदेव है शान्त । मेघदेव लाएं प्रलय , धरे रूप विक्रान्त ।। प्रकृति साथ हमने किया , घोर बहुत अन्याय । बढ़ा रहे थे आप हम , तब तो अपनी आय ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  दोहा :- 

उलझा जीवन में रहे , करता नहीं विचार ।
मानव भी यह मूर्ख है , त्याग रहा संसार ।।

जीवन के हर मोड़ पर , मिल ही जाते लोग ।
कुछ तो देते साथ हैं, कुछ करते उपयोग ।।

सुखमय जीवन के लिए , जप लेना हरि नाम ।
बडा सरल सुंदर लगे , कह के देखो राम ।।

पग-पग सुंदर है धरा , पग-पग प्रभु का धाम ।
 जहाँ कहीं भी हो खड़े , बोलो सीताराम ।।

क्यों होते हो तुम दुखी , पहुंच न पाये धाम ।
इतना मत सोचो कभी , यहीं सुमिरि लो नाम ।।

मंदिर मस्जिद आज तो , लगते है समुदाय ।
जिससे नित सरकार अब ,बढ़ा रही है आय ।।

महादेव है ध्यान में , सूर्यदेव है शान्त ।
मेघदेव लाएं प्रलय , धरे रूप विक्रान्त ।।

प्रकृति साथ हमने किया , घोर बहुत अन्याय ।
बढ़ा रहे थे आप हम , तब तो अपनी आय ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :-  उलझा जीवन में रहे , करता नहीं विचार । मानव भी यह मूर्ख है , त्याग रहा संसार ।। जीवन के हर मोड़ पर , मिल ही जाते लोग । कुछ तो देते

0 Love

विहावा छन्द  122   122   12 मुझे रूप नारी लगे । वही सृष्टि सारी लगे ।। महादेव देवी कहे । धरा देख सेवी रहे ।। रहा व्यर्थ का सोचना । खड़ा साथ है मोहना ।। डरो आप ऐसे नही । मिले राह टेढ़ी सही ।। मुझे मातु सीता मिली । यही देख पत्नी जली ।। नहीं माँग वो तो भरे । सदा मूर्ख बातें करे ।। चलो बात प्यारी करे । नये स्वप्न क्यारी भरे ।। लगे प्रेम की ज्यों झड़ी । नहीं दूर देखो खड़ी ।। अभी देखना गाँव है । वहाँ नीम की छाँव है ।। मिले नीर जो कूप से । पियें संग वे भूप के ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  विहावा छन्द 
122   122   12

मुझे रूप नारी लगे ।
वही सृष्टि सारी लगे ।।
महादेव देवी कहे ।
धरा देख सेवी रहे ।।

रहा व्यर्थ का सोचना ।
खड़ा साथ है मोहना ।।
डरो आप ऐसे नही ।
मिले राह टेढ़ी सही ।।

मुझे मातु सीता मिली ।
यही देख पत्नी जली ।।
नहीं माँग वो तो भरे ।
सदा मूर्ख बातें करे ।।

चलो बात प्यारी करे ।
नये स्वप्न क्यारी भरे ।।
लगे प्रेम की ज्यों झड़ी ।
नहीं दूर देखो खड़ी ।।

अभी देखना गाँव है ।
वहाँ नीम की छाँव है ।।
मिले नीर जो कूप से ।
पियें संग वे भूप के ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विहावा छन्द  122   122   12 मुझे रूप नारी लगे । वही सृष्टि सारी लगे ।। महादेव देवी कहे । धरा देख सेवी रहे ।।

12 Love

#वस्तुओं #प्रेम #विचार #मूर्ख #भौतिक #motivatation  " प्रेम का भाव तो तुच्छ मन से ही होता हैं, 
मूर्ख हैं वो लोग जो इसे 
देह और भौतिक को
तुम उन वस्तुओं से क्यो तोलते हैं "

©Shivkumar एक गुमनाम शायर

#thought #motivatation #Quotes #Nojoto " #प्रेम का #भाव तो तुच्छ #मन से ही होता हैं, #मूर्ख हैं वो लोग जो इसे देह और #भौतिक को तुम उन #

135 View

#Motivational #alone_quotes  White मूर्खों हि शोभते तावद् यावत् किंचिन्न भाषते

अर्थ : मूर्ख तभी तक सुशोभित होता है, जब तक कि वह कुछ नहीं बोलता

©Ganesh joshi

#alone_quotes मूर्खों हि शोभते तावद् यावत् किंचिन्न भाषते अर्थ : मूर्ख तभी तक सुशोभित होता है, जब तक कि वह कुछ नहीं बोलता

108 View

#प्रयत्न #इंतजार #स्वयं #विचार #मूर्ख #समय  White सही समय का इंतजार करके स्वयं को
मूर्ख मत बनाएं क्योंकि सही समय
तभी आएगा जब उसे सही बनाने
के लिए आप प्रयत्न करेंगे

















.

©Mukesh Poonia

#Lake सही #समय का #इंतजार करके #स्वयं को #मूर्ख मत बनाएं क्योंकि सही समय तभी आएगा जब उसे सही बनाने के लिए आप #प्रयत्न करेंगे

324 View

#मोटिवेशनल #SAD  White {Bolo Ji Radhey Radhey}
नियुक्त किये हुए न्यायाधिकारी पुरुष अपराधियों के अपराध की मात्रा को भली भाँति जानकर जो दण्डनीय हों, उन्हें ही उचित दण्ड दें पढ़िए महाभारत !! 🌷🌷 
महाभारत: आश्रमवासिका पर्व 
पंचम अध्याय: श्लोक 18-32 
📔 भारत। जिन मनुष्यों के कुल और शील अच्छी तरह ज्ञात हों, उन्हीं से तुम्हें काम लेना चाहिये। भोजन आदि के अवसरों पर सदा तुम्हें आत्मरक्षा पर ध्यान देना चाहिये। आहार विहार के समय तथा माला पहनने, शय्या पर सोने और आसनों पर बैठने के समय भी तुम्हें सावधानी के साथ अपनी रक्षा करनी चाहिये। युधिष्ठिर। कुलीन, शीलवान्, विद्वान, विश्वासपात्र एवं वृद्ध पुरुषों की अध्यक्षता में रखकर तुम्हें अन्तःपुर की स्त्रियों की रक्षा का सुन्दर प्रबन्ध करना चाहिये। राजन्। तुम उन्हीं ब्राह्मणों को अपने मन्त्री बनाओ, जो विद्या में प्रवीण, विनयशील, कुलीन, धर्म और अर्थ में कुशल तथा सरल स्वभाव वाले हों। उन्हीं के साथ तुम गूढ़ विषय पर विचार करो, किंतु अधिक लोगों को साथ लेकर देर तक मन्त्रणा नहीं करनी चाहिये। सम्पूर्ण मन्त्रियों को अथवा उनमें से दो एक को किसी के बहाने चारों ओर से घिरे हुए बंद कमरे में या खुले मैदान में ले जाकर उनके साथ किसी गूढ़ विषय पर विचार करना। जहाँ अधिक घास फूस या झाड़ झंखाड़ न हो, ऐसे जंगल में भी गुप्त मन्त्रणा की जा सकती है, परंतु रात्रि के समय इन स्थानों में किसी तरह गुप्त सलाह नहीं करनी चाहिये।
📔 मनुष्यों का अनुसरण करने वाले जो वानर और पक्षी आदि हैं, उन सबको तथा मूर्ख एवं पंगु मनुष्यों को भी मन्त्रणा गृह में नहीं आने देना चाहिये। गुप्त मन्त्रणा के दूसरों पर प्रकट हो जाने से राजाओं को जो संकट प्राप्त होते हैं, उनका किसी तरह समाधान नहीं किया जा सकता - ऐसा मेरा विश्वास है। शत्रुदमन नरेश। गुप्त मन्त्रणा फूट जाने पर जो दोष पैदा होते हैं और न फूटने से जो लाभ होते हैं, उनको तुम मन्त्रिमण्डल के समक्ष बारंबार बतलाते रहना। राजन्। कुरूश्रेष्ठ युधिष्ठिर। नगर औश्र जनपद के लोगों का हृदय तुम्हारे प्रति शुद्ध है या अशुद्ध, इस बात का तुम्हें जैसे भी ज्ञान प्राप्त हो सके, वैसा उपाय करना। नरेश्वर। न्याय करने के काम पर तुम सदा ऐसे ही पुरुषों को नियुक्त करना, जो विश्वासपात्र, संतोषी और हितैषी हों तथा गुप्तचरों के द्वारा सदा उनके कार्यों पर दृष्टि रखना। भरतनन्दन युधिष्ठिर। तुम्हें ऐसा विधान बनाना चाहिये, जिससे तुम्हारे नियुक्त किये हुए न्यायाधिकारी पुरुष अपराधियों के अपराध की मात्रा को भली भाँति जानकर जो दण्डनीय हों, उन्हें ही उचित दण्ड दें।
📔 जो दूसरों से घूस लेने की रुचि रखते हों, परायी स्त्रियों से जिनका सम्पर्क हो, जो विशषतः कठोर दण्ड देने के पक्षपाती हों, झूठा फैसला देते हों, जो कटुवादी, लोभी, दूसरों का धन हड़पने वाले, दुस्साहसी, सभाभवन और उद्यान आदि को नष्ट करने वाले तथा सभी वर्ण के लोगों को कलंकित करने वाले हों, उन न्यायाधिकारियों को देश काल का ध्यान रखते हुए सुवर्ण दण्ड अथवा प्राण दण्ड के द्वारा दण्डित करना चाहिये। प्रातःकाल उठकर (नित्य नियम से निवृत्त होने के बाद) पहले तुम्हें उन लोगों से मिलना चाहिये, जो तुम्हारे खर्च बर्च के काम पर नियुक्त हों। उसके बाद आभूषण पहनने या भोजन करने के काम पर ध्यान देना चाहिये। जय श्री राधे कृष्ण जी।।

©N S Yadav GoldMine

#SAD {Bolo Ji Radhey Radhey} नियुक्त किये हुए न्यायाधिकारी पुरुष अपराधियों के अपराध की मात्रा को भली भाँति जानकर जो दण्डनीय हों, उन्हें ही उ

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दोहा :-  उलझा जीवन में रहे , करता नहीं विचार । मानव भी यह मूर्ख है , त्याग रहा संसार ।। जीवन के हर मोड़ पर , मिल ही जाते लोग । कुछ तो देते साथ हैं, कुछ करते उपयोग ।। सुखमय जीवन के लिए , जप लेना हरि नाम । बडा सरल सुंदर लगे , कह के देखो राम ।। पग-पग सुंदर है धरा , पग-पग प्रभु का धाम ।  जहाँ कहीं भी हो खड़े , बोलो सीताराम ।। क्यों होते हो तुम दुखी , पहुंच न पाये धाम । इतना मत सोचो कभी , यहीं सुमिरि लो नाम ।। मंदिर मस्जिद आज तो , लगते है समुदाय । जिससे नित सरकार अब ,बढ़ा रही है आय ।। महादेव है ध्यान में , सूर्यदेव है शान्त । मेघदेव लाएं प्रलय , धरे रूप विक्रान्त ।। प्रकृति साथ हमने किया , घोर बहुत अन्याय । बढ़ा रहे थे आप हम , तब तो अपनी आय ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  दोहा :- 

उलझा जीवन में रहे , करता नहीं विचार ।
मानव भी यह मूर्ख है , त्याग रहा संसार ।।

जीवन के हर मोड़ पर , मिल ही जाते लोग ।
कुछ तो देते साथ हैं, कुछ करते उपयोग ।।

सुखमय जीवन के लिए , जप लेना हरि नाम ।
बडा सरल सुंदर लगे , कह के देखो राम ।।

पग-पग सुंदर है धरा , पग-पग प्रभु का धाम ।
 जहाँ कहीं भी हो खड़े , बोलो सीताराम ।।

क्यों होते हो तुम दुखी , पहुंच न पाये धाम ।
इतना मत सोचो कभी , यहीं सुमिरि लो नाम ।।

मंदिर मस्जिद आज तो , लगते है समुदाय ।
जिससे नित सरकार अब ,बढ़ा रही है आय ।।

महादेव है ध्यान में , सूर्यदेव है शान्त ।
मेघदेव लाएं प्रलय , धरे रूप विक्रान्त ।।

प्रकृति साथ हमने किया , घोर बहुत अन्याय ।
बढ़ा रहे थे आप हम , तब तो अपनी आय ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :-  उलझा जीवन में रहे , करता नहीं विचार । मानव भी यह मूर्ख है , त्याग रहा संसार ।। जीवन के हर मोड़ पर , मिल ही जाते लोग । कुछ तो देते

0 Love

विहावा छन्द  122   122   12 मुझे रूप नारी लगे । वही सृष्टि सारी लगे ।। महादेव देवी कहे । धरा देख सेवी रहे ।। रहा व्यर्थ का सोचना । खड़ा साथ है मोहना ।। डरो आप ऐसे नही । मिले राह टेढ़ी सही ।। मुझे मातु सीता मिली । यही देख पत्नी जली ।। नहीं माँग वो तो भरे । सदा मूर्ख बातें करे ।। चलो बात प्यारी करे । नये स्वप्न क्यारी भरे ।। लगे प्रेम की ज्यों झड़ी । नहीं दूर देखो खड़ी ।। अभी देखना गाँव है । वहाँ नीम की छाँव है ।। मिले नीर जो कूप से । पियें संग वे भूप के ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  विहावा छन्द 
122   122   12

मुझे रूप नारी लगे ।
वही सृष्टि सारी लगे ।।
महादेव देवी कहे ।
धरा देख सेवी रहे ।।

रहा व्यर्थ का सोचना ।
खड़ा साथ है मोहना ।।
डरो आप ऐसे नही ।
मिले राह टेढ़ी सही ।।

मुझे मातु सीता मिली ।
यही देख पत्नी जली ।।
नहीं माँग वो तो भरे ।
सदा मूर्ख बातें करे ।।

चलो बात प्यारी करे ।
नये स्वप्न क्यारी भरे ।।
लगे प्रेम की ज्यों झड़ी ।
नहीं दूर देखो खड़ी ।।

अभी देखना गाँव है ।
वहाँ नीम की छाँव है ।।
मिले नीर जो कूप से ।
पियें संग वे भूप के ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विहावा छन्द  122   122   12 मुझे रूप नारी लगे । वही सृष्टि सारी लगे ।। महादेव देवी कहे । धरा देख सेवी रहे ।।

12 Love

#वस्तुओं #प्रेम #विचार #मूर्ख #भौतिक #motivatation  " प्रेम का भाव तो तुच्छ मन से ही होता हैं, 
मूर्ख हैं वो लोग जो इसे 
देह और भौतिक को
तुम उन वस्तुओं से क्यो तोलते हैं "

©Shivkumar एक गुमनाम शायर

#thought #motivatation #Quotes #Nojoto " #प्रेम का #भाव तो तुच्छ #मन से ही होता हैं, #मूर्ख हैं वो लोग जो इसे देह और #भौतिक को तुम उन #

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#Motivational #alone_quotes  White मूर्खों हि शोभते तावद् यावत् किंचिन्न भाषते

अर्थ : मूर्ख तभी तक सुशोभित होता है, जब तक कि वह कुछ नहीं बोलता

©Ganesh joshi

#alone_quotes मूर्खों हि शोभते तावद् यावत् किंचिन्न भाषते अर्थ : मूर्ख तभी तक सुशोभित होता है, जब तक कि वह कुछ नहीं बोलता

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#प्रयत्न #इंतजार #स्वयं #विचार #मूर्ख #समय  White सही समय का इंतजार करके स्वयं को
मूर्ख मत बनाएं क्योंकि सही समय
तभी आएगा जब उसे सही बनाने
के लिए आप प्रयत्न करेंगे

















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©Mukesh Poonia

#Lake सही #समय का #इंतजार करके #स्वयं को #मूर्ख मत बनाएं क्योंकि सही समय तभी आएगा जब उसे सही बनाने के लिए आप #प्रयत्न करेंगे

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#मोटिवेशनल #SAD  White {Bolo Ji Radhey Radhey}
नियुक्त किये हुए न्यायाधिकारी पुरुष अपराधियों के अपराध की मात्रा को भली भाँति जानकर जो दण्डनीय हों, उन्हें ही उचित दण्ड दें पढ़िए महाभारत !! 🌷🌷 
महाभारत: आश्रमवासिका पर्व 
पंचम अध्याय: श्लोक 18-32 
📔 भारत। जिन मनुष्यों के कुल और शील अच्छी तरह ज्ञात हों, उन्हीं से तुम्हें काम लेना चाहिये। भोजन आदि के अवसरों पर सदा तुम्हें आत्मरक्षा पर ध्यान देना चाहिये। आहार विहार के समय तथा माला पहनने, शय्या पर सोने और आसनों पर बैठने के समय भी तुम्हें सावधानी के साथ अपनी रक्षा करनी चाहिये। युधिष्ठिर। कुलीन, शीलवान्, विद्वान, विश्वासपात्र एवं वृद्ध पुरुषों की अध्यक्षता में रखकर तुम्हें अन्तःपुर की स्त्रियों की रक्षा का सुन्दर प्रबन्ध करना चाहिये। राजन्। तुम उन्हीं ब्राह्मणों को अपने मन्त्री बनाओ, जो विद्या में प्रवीण, विनयशील, कुलीन, धर्म और अर्थ में कुशल तथा सरल स्वभाव वाले हों। उन्हीं के साथ तुम गूढ़ विषय पर विचार करो, किंतु अधिक लोगों को साथ लेकर देर तक मन्त्रणा नहीं करनी चाहिये। सम्पूर्ण मन्त्रियों को अथवा उनमें से दो एक को किसी के बहाने चारों ओर से घिरे हुए बंद कमरे में या खुले मैदान में ले जाकर उनके साथ किसी गूढ़ विषय पर विचार करना। जहाँ अधिक घास फूस या झाड़ झंखाड़ न हो, ऐसे जंगल में भी गुप्त मन्त्रणा की जा सकती है, परंतु रात्रि के समय इन स्थानों में किसी तरह गुप्त सलाह नहीं करनी चाहिये।
📔 मनुष्यों का अनुसरण करने वाले जो वानर और पक्षी आदि हैं, उन सबको तथा मूर्ख एवं पंगु मनुष्यों को भी मन्त्रणा गृह में नहीं आने देना चाहिये। गुप्त मन्त्रणा के दूसरों पर प्रकट हो जाने से राजाओं को जो संकट प्राप्त होते हैं, उनका किसी तरह समाधान नहीं किया जा सकता - ऐसा मेरा विश्वास है। शत्रुदमन नरेश। गुप्त मन्त्रणा फूट जाने पर जो दोष पैदा होते हैं और न फूटने से जो लाभ होते हैं, उनको तुम मन्त्रिमण्डल के समक्ष बारंबार बतलाते रहना। राजन्। कुरूश्रेष्ठ युधिष्ठिर। नगर औश्र जनपद के लोगों का हृदय तुम्हारे प्रति शुद्ध है या अशुद्ध, इस बात का तुम्हें जैसे भी ज्ञान प्राप्त हो सके, वैसा उपाय करना। नरेश्वर। न्याय करने के काम पर तुम सदा ऐसे ही पुरुषों को नियुक्त करना, जो विश्वासपात्र, संतोषी और हितैषी हों तथा गुप्तचरों के द्वारा सदा उनके कार्यों पर दृष्टि रखना। भरतनन्दन युधिष्ठिर। तुम्हें ऐसा विधान बनाना चाहिये, जिससे तुम्हारे नियुक्त किये हुए न्यायाधिकारी पुरुष अपराधियों के अपराध की मात्रा को भली भाँति जानकर जो दण्डनीय हों, उन्हें ही उचित दण्ड दें।
📔 जो दूसरों से घूस लेने की रुचि रखते हों, परायी स्त्रियों से जिनका सम्पर्क हो, जो विशषतः कठोर दण्ड देने के पक्षपाती हों, झूठा फैसला देते हों, जो कटुवादी, लोभी, दूसरों का धन हड़पने वाले, दुस्साहसी, सभाभवन और उद्यान आदि को नष्ट करने वाले तथा सभी वर्ण के लोगों को कलंकित करने वाले हों, उन न्यायाधिकारियों को देश काल का ध्यान रखते हुए सुवर्ण दण्ड अथवा प्राण दण्ड के द्वारा दण्डित करना चाहिये। प्रातःकाल उठकर (नित्य नियम से निवृत्त होने के बाद) पहले तुम्हें उन लोगों से मिलना चाहिये, जो तुम्हारे खर्च बर्च के काम पर नियुक्त हों। उसके बाद आभूषण पहनने या भोजन करने के काम पर ध्यान देना चाहिये। जय श्री राधे कृष्ण जी।।

©N S Yadav GoldMine

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