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#motivation_for_life #rohanroymotivation #dailymotivation #Motivational #inspirdaily #RohanRoy  White इत्तेफाक की घड़ियों को देखकर, 
जीवन में कहीं भी कभी भी, 
समय से पहुंचना कठिन है। 
ये वो मार्ग है।
जो कर्म की नियति से, होकर ही गुजरती है।

©Rohan Roy

इत्तेफाक की घड़ियों को देखकर | #RohanRoy | #dailymotivation | #inspirdaily | #motivation_for_life | #rohanroymotivation |

126 View

#शायरी #लाचार  White एक शख्स के आगे यारों, वो इस कदर लाचार हैं।
बस उन्ही की गली में, रुसवा हुए हर बार हैं।।
उनसे तो डायल न होते, दस अंक उम्मीद के।
प्रेम में पागल इन्ही के, मिस्ड कॉल की बौछार हैं।।

©Abhishek Pandey

ग़ज़ल :- तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है । सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।। जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया । ये बताता युग हमारा धर्म शिष्टाचार है ।। दूर दुनिया देख लो यह आज इतनी हो गई । मान भी लो आज पीछे चलना भी बेकार है ।। गर्व था मुझको कभी ये यह हमारा धर्म था । पर पतन की राह जाते देखूँ मैं धिक्कार है ।। खो गई मेरी जवानी सबको समझाते हुए । मैं यहीं थककर  रुका तो ये हमारी हार है ।। कर रहीं सरकार हैं अब आज ऐसे फैसले । निर्बलों की आज गर्दन पे धरी तलवार है ।। हाय मत लेना किसी की ज्ञानियों के बोल थे । देखता हूँ थाल उनकी नित्य वो आहार है ।। कुछ बिगड़ बच्चे गये तो कुछ बिलखकर सो गये । आज दोनों के पिता ही देख लो लाचार है ।। जो कभी सोये नही उनको जगाता क्यों प्रखर । जानतें है सब यहाँ पे जान का व्यापार है ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  ग़ज़ल :-
तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है ।
सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।।
जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया ।
ये बताता युग हमारा धर्म शिष्टाचार है ।।
दूर दुनिया देख लो यह आज इतनी हो गई ।
मान भी लो आज पीछे चलना भी बेकार है ।।
गर्व था मुझको कभी ये यह हमारा धर्म था ।
पर पतन की राह जाते देखूँ मैं धिक्कार है ।।
खो गई मेरी जवानी सबको समझाते हुए ।
मैं यहीं थककर  रुका तो ये हमारी हार है ।।
कर रहीं सरकार हैं अब आज ऐसे फैसले ।
निर्बलों की आज गर्दन पे धरी तलवार है ।।
हाय मत लेना किसी की ज्ञानियों के बोल थे ।
देखता हूँ थाल उनकी नित्य वो आहार है ।।
कुछ बिगड़ बच्चे गये तो कुछ बिलखकर सो गये ।
आज दोनों के पिता ही देख लो लाचार है ।।
जो कभी सोये नही उनको जगाता क्यों प्रखर ।
जानतें है सब यहाँ पे जान का व्यापार है ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है । सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।। जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया । ये बताता युग

12 Love

धड़कन दिल की भी कभी , सुन ले जो दिलदार । सच कहता हूँ आपसे ,  जाँ भी दूँ मैं वार ।। पत्नी सुख पाते कहाँ , यार आज पतिदेव । उनके तो दिल में सदा , रहे यार ही सेव ।। निर्धन है जो आज पति , दिखते हैं असहाय । उनकी तो पत्नी कहे , दूर कहीं मर जाय ।। पत्नी के ही प्रेम से , वंछित ये पति खास । धन माया के संग में , रखे न अपने पास ।। जिन पतियों के पास में , दौलत रहे अथाह । वे भी पत्नी पे नज़र , रखे मेरी सलाह ।। पति पत्नी का आज तो , बंधन लागे जेल । ताक-झाँक में देख लो , रिश्ते उनके फेल ।। पत्नी पावन थी कभी , अब तो है लाचार । सिर्फ निभाती आज है , डरकर ये संस्कार ।। पति पत्नी का प्रेम भी , लगता है व्यापार । बस फरमाइश हो वहाँ , दिखता कहीं न प्यार ।। प्रेमी जन जो भी यहाँ , फांसी खाते आज । और दिखावा जो करे , करते दिल पर राज ।। जख्मी दिल लेकर किधर , जायेंगे हम लोग । एक तुम्हारी याद का , बना हुआ है योग ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  धड़कन दिल की भी कभी , सुन ले जो दिलदार ।
सच कहता हूँ आपसे ,  जाँ भी दूँ मैं वार ।।
पत्नी सुख पाते कहाँ , यार आज पतिदेव ।
उनके तो दिल में सदा , रहे यार ही सेव ।।
निर्धन है जो आज पति , दिखते हैं असहाय ।
उनकी तो पत्नी कहे , दूर कहीं मर जाय ।।
पत्नी के ही प्रेम से , वंछित ये पति खास ।
धन माया के संग में , रखे न अपने पास ।।
जिन पतियों के पास में , दौलत रहे अथाह ।
वे भी पत्नी पे नज़र , रखे मेरी सलाह ।।
पति पत्नी का आज तो , बंधन लागे जेल ।
ताक-झाँक में देख लो , रिश्ते उनके फेल ।।
पत्नी पावन थी कभी , अब तो है लाचार ।
सिर्फ निभाती आज है , डरकर ये संस्कार ।।
पति पत्नी का प्रेम भी , लगता है व्यापार ।
बस फरमाइश हो वहाँ , दिखता कहीं न प्यार ।।
प्रेमी जन जो भी यहाँ , फांसी खाते आज ।
और दिखावा जो करे , करते दिल पर राज ।।
जख्मी दिल लेकर किधर , जायेंगे हम लोग ।
एक तुम्हारी याद का , बना हुआ है योग ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

धड़कन दिल की भी कभी , सुन ले जो दिलदार । सच कहता हूँ आपसे ,  जाँ भी दूँ मैं वार ।। पत्नी सुख पाते कहाँ , यार आज पतिदेव । उनके तो दिल में सदा

10 Love

#विचार  मुश्किल घड़ी और दोस्त मुश्किल घड़ी और दोस्त  मुश्किल घड़ी कबका आन पड़ी है!
मैं भी खुद को दोस्त बना कबका ये 
.ठान ....पड़ी हूं!

चलती रहूंगी परस्पर तेरे बनाए उन
कांटो राहों...पे

यही कहते हुए जिंदगी को पहचान पड़ी हूं!
जीवन के पन्ना को पलटते हुए..

चंद लम्हों में दास्तान ए जिंदगी बहुत कुछ 
लिखती चली.. हूं ||

©sapna prajapati❤

ईन मुश्किल घड़ियों से जान पड़ी हूं संघर्ष से भरा है पूरा पन्ना यही कहते नहीं कहते वे आगे बढ़ चली हूं...... sapna prajapati✍🤗🤗😥

108 View

दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार  ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न । खाना सुत का अन्न तो , होना बिल्कुल सन्न ।।२ वृद्ध देख माँ बाप को , कर लो बचपन याद । ऐसे ही कल तुम चले , ऐसे होगे बाद ।।३ तीखे-तीखे बैन से , करो नहीं संवाद । छोड़े होते हाथ तो , होते तुम बरबाद ।।४ बच्चों पर अहसान क्या, आज किए माँ बाप । अपने-अपने कर्म का , करते पश्चाताप ।।५ मातु-पिता के मान में , कैसे ये संवाद । हुई कहीं तो चूक है , जो ऐसी औलाद ।।६ मातु-पिता के प्रेम का , न करना दुरुपयोग । उनके आज प्रताप से , सफल तुम्हारे जोग ।।७ हृदयघात कैसे हुआ , पूछे जाकर कौन । सुत के तीखे बैन से, मातु-पिता है मौन ।।८ खाना सुत का अन्न है , रहना होगा मौन । सब माया से हैं बँधें , पूछे हमको कौन ।।९ टोका-टाकी कम करो , आओ अब तुम होश । वृद्ध और लाचार हम , अधर रखो खामोश ।।१० अधर तुम्हारे देखकर , कब से थे हम मौन । भय से कुछ बोले नही , पूछ न लो तुम कौन ।।११ थर-थर थर-थर काँपते , अधर हमारे आज । कहना चाहूँ आपसे , दिल का अपने राज ।।१२ मातु-पिता के मान का , रखना सदा ख्याल । तुम ही उनकी आस हो , तुम ही उनके लाल ।।१३ २५/०४/२०२४     -   महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  दोहा :-
अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार ।
पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार  ।।१
मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न ।
खाना सुत का अन्न तो , होना बिल्कुल सन्न ।।२
वृद्ध देख माँ बाप को , कर लो बचपन याद ।
ऐसे ही कल तुम चले , ऐसे होगे बाद ।।३
तीखे-तीखे बैन से , करो नहीं संवाद ।
छोड़े होते हाथ तो , होते तुम बरबाद ।।४
बच्चों पर अहसान क्या, आज किए माँ बाप ।
अपने-अपने कर्म का , करते पश्चाताप ।।५
मातु-पिता के मान में , कैसे ये संवाद ।
हुई कहीं तो चूक है , जो ऐसी औलाद ।।६
मातु-पिता के प्रेम का , न करना दुरुपयोग ।
उनके आज प्रताप से , सफल तुम्हारे जोग ।।७
हृदयघात कैसे हुआ , पूछे जाकर कौन ।
सुत के तीखे बैन से, मातु-पिता है मौन ।।८
खाना सुत का अन्न है , रहना होगा मौन ।
सब माया से हैं बँधें , पूछे हमको कौन ।।९
टोका-टाकी कम करो , आओ अब तुम होश ।
वृद्ध और लाचार हम , अधर रखो खामोश ।।१०
अधर तुम्हारे देखकर , कब से थे हम मौन ।
भय से कुछ बोले नही , पूछ न लो तुम कौन ।।११
थर-थर थर-थर काँपते , अधर हमारे आज ।
कहना चाहूँ आपसे , दिल का अपने राज ।।१२
मातु-पिता के मान का , रखना सदा ख्याल ।
तुम ही उनकी आस हो , तुम ही उनके लाल ।।१३
२५/०४/२०२४     -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार  ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न ।

13 Love

#motivation_for_life #rohanroymotivation #dailymotivation #Motivational #inspirdaily #RohanRoy  White इत्तेफाक की घड़ियों को देखकर, 
जीवन में कहीं भी कभी भी, 
समय से पहुंचना कठिन है। 
ये वो मार्ग है।
जो कर्म की नियति से, होकर ही गुजरती है।

©Rohan Roy

इत्तेफाक की घड़ियों को देखकर | #RohanRoy | #dailymotivation | #inspirdaily | #motivation_for_life | #rohanroymotivation |

126 View

#शायरी #लाचार  White एक शख्स के आगे यारों, वो इस कदर लाचार हैं।
बस उन्ही की गली में, रुसवा हुए हर बार हैं।।
उनसे तो डायल न होते, दस अंक उम्मीद के।
प्रेम में पागल इन्ही के, मिस्ड कॉल की बौछार हैं।।

©Abhishek Pandey

ग़ज़ल :- तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है । सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।। जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया । ये बताता युग हमारा धर्म शिष्टाचार है ।। दूर दुनिया देख लो यह आज इतनी हो गई । मान भी लो आज पीछे चलना भी बेकार है ।। गर्व था मुझको कभी ये यह हमारा धर्म था । पर पतन की राह जाते देखूँ मैं धिक्कार है ।। खो गई मेरी जवानी सबको समझाते हुए । मैं यहीं थककर  रुका तो ये हमारी हार है ।। कर रहीं सरकार हैं अब आज ऐसे फैसले । निर्बलों की आज गर्दन पे धरी तलवार है ।। हाय मत लेना किसी की ज्ञानियों के बोल थे । देखता हूँ थाल उनकी नित्य वो आहार है ।। कुछ बिगड़ बच्चे गये तो कुछ बिलखकर सो गये । आज दोनों के पिता ही देख लो लाचार है ।। जो कभी सोये नही उनको जगाता क्यों प्रखर । जानतें है सब यहाँ पे जान का व्यापार है ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  ग़ज़ल :-
तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है ।
सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।।
जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया ।
ये बताता युग हमारा धर्म शिष्टाचार है ।।
दूर दुनिया देख लो यह आज इतनी हो गई ।
मान भी लो आज पीछे चलना भी बेकार है ।।
गर्व था मुझको कभी ये यह हमारा धर्म था ।
पर पतन की राह जाते देखूँ मैं धिक्कार है ।।
खो गई मेरी जवानी सबको समझाते हुए ।
मैं यहीं थककर  रुका तो ये हमारी हार है ।।
कर रहीं सरकार हैं अब आज ऐसे फैसले ।
निर्बलों की आज गर्दन पे धरी तलवार है ।।
हाय मत लेना किसी की ज्ञानियों के बोल थे ।
देखता हूँ थाल उनकी नित्य वो आहार है ।।
कुछ बिगड़ बच्चे गये तो कुछ बिलखकर सो गये ।
आज दोनों के पिता ही देख लो लाचार है ।।
जो कभी सोये नही उनको जगाता क्यों प्रखर ।
जानतें है सब यहाँ पे जान का व्यापार है ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है । सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।। जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया । ये बताता युग

12 Love

धड़कन दिल की भी कभी , सुन ले जो दिलदार । सच कहता हूँ आपसे ,  जाँ भी दूँ मैं वार ।। पत्नी सुख पाते कहाँ , यार आज पतिदेव । उनके तो दिल में सदा , रहे यार ही सेव ।। निर्धन है जो आज पति , दिखते हैं असहाय । उनकी तो पत्नी कहे , दूर कहीं मर जाय ।। पत्नी के ही प्रेम से , वंछित ये पति खास । धन माया के संग में , रखे न अपने पास ।। जिन पतियों के पास में , दौलत रहे अथाह । वे भी पत्नी पे नज़र , रखे मेरी सलाह ।। पति पत्नी का आज तो , बंधन लागे जेल । ताक-झाँक में देख लो , रिश्ते उनके फेल ।। पत्नी पावन थी कभी , अब तो है लाचार । सिर्फ निभाती आज है , डरकर ये संस्कार ।। पति पत्नी का प्रेम भी , लगता है व्यापार । बस फरमाइश हो वहाँ , दिखता कहीं न प्यार ।। प्रेमी जन जो भी यहाँ , फांसी खाते आज । और दिखावा जो करे , करते दिल पर राज ।। जख्मी दिल लेकर किधर , जायेंगे हम लोग । एक तुम्हारी याद का , बना हुआ है योग ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  धड़कन दिल की भी कभी , सुन ले जो दिलदार ।
सच कहता हूँ आपसे ,  जाँ भी दूँ मैं वार ।।
पत्नी सुख पाते कहाँ , यार आज पतिदेव ।
उनके तो दिल में सदा , रहे यार ही सेव ।।
निर्धन है जो आज पति , दिखते हैं असहाय ।
उनकी तो पत्नी कहे , दूर कहीं मर जाय ।।
पत्नी के ही प्रेम से , वंछित ये पति खास ।
धन माया के संग में , रखे न अपने पास ।।
जिन पतियों के पास में , दौलत रहे अथाह ।
वे भी पत्नी पे नज़र , रखे मेरी सलाह ।।
पति पत्नी का आज तो , बंधन लागे जेल ।
ताक-झाँक में देख लो , रिश्ते उनके फेल ।।
पत्नी पावन थी कभी , अब तो है लाचार ।
सिर्फ निभाती आज है , डरकर ये संस्कार ।।
पति पत्नी का प्रेम भी , लगता है व्यापार ।
बस फरमाइश हो वहाँ , दिखता कहीं न प्यार ।।
प्रेमी जन जो भी यहाँ , फांसी खाते आज ।
और दिखावा जो करे , करते दिल पर राज ।।
जख्मी दिल लेकर किधर , जायेंगे हम लोग ।
एक तुम्हारी याद का , बना हुआ है योग ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

धड़कन दिल की भी कभी , सुन ले जो दिलदार । सच कहता हूँ आपसे ,  जाँ भी दूँ मैं वार ।। पत्नी सुख पाते कहाँ , यार आज पतिदेव । उनके तो दिल में सदा

10 Love

#विचार  मुश्किल घड़ी और दोस्त मुश्किल घड़ी और दोस्त  मुश्किल घड़ी कबका आन पड़ी है!
मैं भी खुद को दोस्त बना कबका ये 
.ठान ....पड़ी हूं!

चलती रहूंगी परस्पर तेरे बनाए उन
कांटो राहों...पे

यही कहते हुए जिंदगी को पहचान पड़ी हूं!
जीवन के पन्ना को पलटते हुए..

चंद लम्हों में दास्तान ए जिंदगी बहुत कुछ 
लिखती चली.. हूं ||

©sapna prajapati❤

ईन मुश्किल घड़ियों से जान पड़ी हूं संघर्ष से भरा है पूरा पन्ना यही कहते नहीं कहते वे आगे बढ़ चली हूं...... sapna prajapati✍🤗🤗😥

108 View

दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार  ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न । खाना सुत का अन्न तो , होना बिल्कुल सन्न ।।२ वृद्ध देख माँ बाप को , कर लो बचपन याद । ऐसे ही कल तुम चले , ऐसे होगे बाद ।।३ तीखे-तीखे बैन से , करो नहीं संवाद । छोड़े होते हाथ तो , होते तुम बरबाद ।।४ बच्चों पर अहसान क्या, आज किए माँ बाप । अपने-अपने कर्म का , करते पश्चाताप ।।५ मातु-पिता के मान में , कैसे ये संवाद । हुई कहीं तो चूक है , जो ऐसी औलाद ।।६ मातु-पिता के प्रेम का , न करना दुरुपयोग । उनके आज प्रताप से , सफल तुम्हारे जोग ।।७ हृदयघात कैसे हुआ , पूछे जाकर कौन । सुत के तीखे बैन से, मातु-पिता है मौन ।।८ खाना सुत का अन्न है , रहना होगा मौन । सब माया से हैं बँधें , पूछे हमको कौन ।।९ टोका-टाकी कम करो , आओ अब तुम होश । वृद्ध और लाचार हम , अधर रखो खामोश ।।१० अधर तुम्हारे देखकर , कब से थे हम मौन । भय से कुछ बोले नही , पूछ न लो तुम कौन ।।११ थर-थर थर-थर काँपते , अधर हमारे आज । कहना चाहूँ आपसे , दिल का अपने राज ।।१२ मातु-पिता के मान का , रखना सदा ख्याल । तुम ही उनकी आस हो , तुम ही उनके लाल ।।१३ २५/०४/२०२४     -   महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  दोहा :-
अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार ।
पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार  ।।१
मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न ।
खाना सुत का अन्न तो , होना बिल्कुल सन्न ।।२
वृद्ध देख माँ बाप को , कर लो बचपन याद ।
ऐसे ही कल तुम चले , ऐसे होगे बाद ।।३
तीखे-तीखे बैन से , करो नहीं संवाद ।
छोड़े होते हाथ तो , होते तुम बरबाद ।।४
बच्चों पर अहसान क्या, आज किए माँ बाप ।
अपने-अपने कर्म का , करते पश्चाताप ।।५
मातु-पिता के मान में , कैसे ये संवाद ।
हुई कहीं तो चूक है , जो ऐसी औलाद ।।६
मातु-पिता के प्रेम का , न करना दुरुपयोग ।
उनके आज प्रताप से , सफल तुम्हारे जोग ।।७
हृदयघात कैसे हुआ , पूछे जाकर कौन ।
सुत के तीखे बैन से, मातु-पिता है मौन ।।८
खाना सुत का अन्न है , रहना होगा मौन ।
सब माया से हैं बँधें , पूछे हमको कौन ।।९
टोका-टाकी कम करो , आओ अब तुम होश ।
वृद्ध और लाचार हम , अधर रखो खामोश ।।१०
अधर तुम्हारे देखकर , कब से थे हम मौन ।
भय से कुछ बोले नही , पूछ न लो तुम कौन ।।११
थर-थर थर-थर काँपते , अधर हमारे आज ।
कहना चाहूँ आपसे , दिल का अपने राज ।।१२
मातु-पिता के मान का , रखना सदा ख्याल ।
तुम ही उनकी आस हो , तुम ही उनके लाल ।।१३
२५/०४/२०२४     -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार  ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न ।

13 Love

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