खाये हैं हमने खलिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह
कैसा भी हो अब दर्द, बे-असर सा लगता है
मेरे आशना कुछ खिंचे खिंचे से रहते हैं
उनके लहजे में दुश्मन का असर लगता है
घर जलाने में माहताब-ए-फलक था शरीक
अब हमें चांदनी रातों से भी डर लगता है
ता-उम्र का वादा, उम्र-ए-मुख़्तसर का साथ
हर्फ़-ए-दिल अब ज़हराबा-ए-पैकर लगता है
क़त्ल-ए-क़ासिद देखा जबसे हमने रू-ब-रू
हर शख़्स के खंजर-दर-आसतीं हमें लगता है
थे ज़ुल्फ़-ए-खूबां की नर्म छाँव में कभी 'सागर'
अपना साया भी अब ग़ैर मोअतबर लगता है
खलिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह - bruises from many arrows
माहताब-ए-फलक - moon of sky
शरीक - involved
उम्र-ए-मुख़्तसर - short age
हर्फ़-ए-दिल - word of heart
ज़हराबा-ए-पैकर - poisonous form
क़त्ल-ए-क़ासिद - murder of messenger
ख़ंजर-दर-आसतीं - dagger in sleeve
ज़ुल्फ़-ए-खूबां - tresses of beloved
ग़ैर मोअतबर – unreliable
©Sameer Kaul 'Sagar'
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