गीत
मन की गति को रोक न पाये , जो भी इस धरती पे आये ।
मन के बहकावें में भैय्या , सब कुछ अपना खो के आये ।।
मन की गति को रोक न पाये.....
मन ये मंथन करता रहता , तेरा मेरा कहता रहता ।
सोचो इस पे पुनः आप भी , क्यों ऐसे ये बहता रहता ।।
ध्यान धरो बस इतना भैय्या , नहीं किसी का आने पाये ।
मन की गति को रोक न पाये....
गति पवन कि तब अति शीतल है , हो मापदंड पे जो निश्चित ।
जरा तेज गति में जो बहती , हो जाते सब ही फिर चिंतित ।।
इच्छा बनें नहीं सुन इर्ष्या , इतना मन काबू में लाये ।
मन की गति को रोक न पाये .....
बिजली रानी करे उँजाला , दुबका बैठा है अँधियारा ।
मौका पाते पैर पसारे , हर प्राणी इससे है हारा ।।
करो उजाला वो जीवन में , संसार नहीं जलने पाये ।
मन की गति को रोक न पाये....
मन की गति को रोक न पाये , जो भी इस धरती पे आये ।
मन के बहकावें में भैय्या , सब कुछ अपना खो के आये ।।
१९/०२/२०२४ महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
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