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New तस्लीमा नसरीन लज्जा इन हिंदी Status, Photo, Video

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#कोट्स #Sad_shayri  White 

*समय मनुष्य के बनाए रास्ते पर नहीं चलता है*
*मनुष्य को समय के बनाए रास्ते पर चलना पड़ता है*
*जो यह बात समझ लेता है*
*वह सुख - दुःख,आशा- निराशा,में विचलित नहीं हो.

©Jeetal Shah

#Sad_shayri प्रेरणादायक मोटिवेशनल कोट्स गुड मॉर्निंग कोट्स कोट्स इन हिंदी पॉजिटिव गुड मॉर्निंग कोट्स success मोटिवेशनल कोट्स

117 View

#मोटिवेशनल

Jay शायरी मोटिवेशनल मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी फॉर सक्सेस मोटिवेशनल कोट्स फॉर वर्क Sketch Artist Ashwani मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी फॉर स्टूडे

342 View

#मराठीविचार #हिंदी #motivatation  White जिस चीज को आप चाहते हैं,
 उसमें असफल होना,
 जिस चीज को आप नहीं चाहते
 उसमें सफल होने से बेहतर है।

©Ajay More

परिधानों से लाज ढाँपती नज़रों में छुप जाती थी, लज्जा बसती थी आँखों में मन ही मन सकुचाती थी, पर्दे के पीछे का सच भी डर की जद में सिमटा था, लोक लाज के डर से नारी अक्सर चुप रह जाती थी, बचपन का वो अल्हड़पन दहलीज जवानी की चढते, खेतों की मेड़ों पर चलती इठलाती बलखाती थी, सावन में मदमस्त नदी सी चली उफनती राह कभी, देख आईने में ख़ुद को नटखट कितनी शर्माती थी, प्रेम और विश्वास अडिग वादे थे जीने मरने के, रूप सलोना फूलों सा कितनी सुंदर कद-काठी थी, माँ बाबूजी भैया भाभी सबके मन में रची-बसी, सखियों के संग हँसी ठिठोली मिलने से घबराती थी, भावुक हृदय सुकोमल काया मन से भोली थी 'गुंजन', बात-बात पर नखरे शोखी नयन अश्रु छलकाती थी, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ •प्र • ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #लज्जा  परिधानों  से  लाज  ढाँपती
                                 नज़रों में छुप जाती थी, 
                             लज्जा बसती थी आँखों में 
                               मन ही मन सकुचाती थी,

पर्दे के पीछे का सच भी  डर की जद में सिमटा था, 
लोक लाज के डर से नारी अक्सर चुप रह जाती थी,

बचपन का वो अल्हड़पन दहलीज जवानी की चढते, 
खेतों की  मेड़ों पर  चलती  इठलाती  बलखाती थी,

सावन  में  मदमस्त नदी सी चली उफनती राह कभी, 
देख  आईने में  ख़ुद को  नटखट कितनी शर्माती थी,

प्रेम  और  विश्वास  अडिग  वादे  थे   जीने मरने  के,
रूप सलोना फूलों सा  कितनी सुंदर  कद-काठी थी,

माँ  बाबूजी  भैया  भाभी  सबके  मन में  रची-बसी, 
सखियों के संग हँसी ठिठोली मिलने से घबराती थी,

भावुक हृदय सुकोमल काया मन से भोली थी 'गुंजन',
बात-बात पर नखरे शोखी नयन अश्रु छलकाती थी,
       ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
               प्रयागराज उ •प्र •

©Shashi Bhushan Mishra

#लज्जा बसती थी आँखों में#

16 Love

#शायरी

तस्लीमा आरीफ किच्छा में

189 View

क्या जीना और क्या आनंद बोल तुझे क्या-क्या पसंद है मेरा लहज़ा या मेरी इबादत मेरी मोहब्बत या मेरी आदत ©DANVEER SINGH DUNIYA

#शायरी  क्या जीना और क्या आनंद 
बोल तुझे क्या-क्या पसंद है
मेरा लहज़ा या मेरी इबादत 
मेरी मोहब्बत या मेरी आदत

©DANVEER SINGH DUNIYA

लव इन लव

13 Love

#कोट्स #Sad_shayri  White 

*समय मनुष्य के बनाए रास्ते पर नहीं चलता है*
*मनुष्य को समय के बनाए रास्ते पर चलना पड़ता है*
*जो यह बात समझ लेता है*
*वह सुख - दुःख,आशा- निराशा,में विचलित नहीं हो.

©Jeetal Shah

#Sad_shayri प्रेरणादायक मोटिवेशनल कोट्स गुड मॉर्निंग कोट्स कोट्स इन हिंदी पॉजिटिव गुड मॉर्निंग कोट्स success मोटिवेशनल कोट्स

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#मोटिवेशनल

Jay शायरी मोटिवेशनल मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी फॉर सक्सेस मोटिवेशनल कोट्स फॉर वर्क Sketch Artist Ashwani मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी फॉर स्टूडे

342 View

#मराठीविचार #हिंदी #motivatation  White जिस चीज को आप चाहते हैं,
 उसमें असफल होना,
 जिस चीज को आप नहीं चाहते
 उसमें सफल होने से बेहतर है।

©Ajay More

परिधानों से लाज ढाँपती नज़रों में छुप जाती थी, लज्जा बसती थी आँखों में मन ही मन सकुचाती थी, पर्दे के पीछे का सच भी डर की जद में सिमटा था, लोक लाज के डर से नारी अक्सर चुप रह जाती थी, बचपन का वो अल्हड़पन दहलीज जवानी की चढते, खेतों की मेड़ों पर चलती इठलाती बलखाती थी, सावन में मदमस्त नदी सी चली उफनती राह कभी, देख आईने में ख़ुद को नटखट कितनी शर्माती थी, प्रेम और विश्वास अडिग वादे थे जीने मरने के, रूप सलोना फूलों सा कितनी सुंदर कद-काठी थी, माँ बाबूजी भैया भाभी सबके मन में रची-बसी, सखियों के संग हँसी ठिठोली मिलने से घबराती थी, भावुक हृदय सुकोमल काया मन से भोली थी 'गुंजन', बात-बात पर नखरे शोखी नयन अश्रु छलकाती थी, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ •प्र • ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #लज्जा  परिधानों  से  लाज  ढाँपती
                                 नज़रों में छुप जाती थी, 
                             लज्जा बसती थी आँखों में 
                               मन ही मन सकुचाती थी,

पर्दे के पीछे का सच भी  डर की जद में सिमटा था, 
लोक लाज के डर से नारी अक्सर चुप रह जाती थी,

बचपन का वो अल्हड़पन दहलीज जवानी की चढते, 
खेतों की  मेड़ों पर  चलती  इठलाती  बलखाती थी,

सावन  में  मदमस्त नदी सी चली उफनती राह कभी, 
देख  आईने में  ख़ुद को  नटखट कितनी शर्माती थी,

प्रेम  और  विश्वास  अडिग  वादे  थे   जीने मरने  के,
रूप सलोना फूलों सा  कितनी सुंदर  कद-काठी थी,

माँ  बाबूजी  भैया  भाभी  सबके  मन में  रची-बसी, 
सखियों के संग हँसी ठिठोली मिलने से घबराती थी,

भावुक हृदय सुकोमल काया मन से भोली थी 'गुंजन',
बात-बात पर नखरे शोखी नयन अश्रु छलकाती थी,
       ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
               प्रयागराज उ •प्र •

©Shashi Bhushan Mishra

#लज्जा बसती थी आँखों में#

16 Love

#शायरी

तस्लीमा आरीफ किच्छा में

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क्या जीना और क्या आनंद बोल तुझे क्या-क्या पसंद है मेरा लहज़ा या मेरी इबादत मेरी मोहब्बत या मेरी आदत ©DANVEER SINGH DUNIYA

#शायरी  क्या जीना और क्या आनंद 
बोल तुझे क्या-क्या पसंद है
मेरा लहज़ा या मेरी इबादत 
मेरी मोहब्बत या मेरी आदत

©DANVEER SINGH DUNIYA

लव इन लव

13 Love

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