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#good_night  White koi app ke sath hai aur kitna b care kyun na krle period pain & pregnancy pain akele jhelna padta hai

©banjarasoul

#good_night bebak hona jaruri hai

135 View

White लड़की बनके है जन्म लिया मानू मैं हर मर्यादा समाज की में तो शुभचिंतक हूं समाज की । पुरुषवादी सत्ता के जो आडम्बर बने है आज भी मैं पालना करू हर उस बात की मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की । बचपन से लेकर अब तक यही है मुझको सिखलाया बेटी को संस्कार सभी हो कहा फिक्र करता कोई पुरुषों के संस्कार की। मै तो शुभ चिंतक हू समाज की। मां से मेने सीखे हर गुण स्त्रीत्व वाले भी वो घूंघट की ओट में अपने विचारो पर ताले भी। मैं क्या ही बात करू अधिकार की मै तो शुभ चिंतक हूं समाज की ।। मेरी लाज काज के रक्षक वो है । फिर भोगी में बलात्कार की कोई प्रश्न करू लज्जित हो जाऊ बात उठती ही नहीं सम्मान की। मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की कोई भोर भरे उठ जाता है कोई जोर जोर चिल्लाता है मध्य रात्रि में भी उठ उठ कर पालना करती पति को हर बात की मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की कुमकुम ,पायल ,बिंदी और कंगन निशानिया मुझे ही तो दिखानी है सुहाग की करवाचौथ की भूख से लेकर सती कुण्ड की आग तक नारी हूं बलिदानी बन के रक्षा करू उनके स्वाभिमान की । मैं तो शुभचिंतक हु समाज की ।। वक्त बदल रहा हालत की अब दशा कुछ और है स्त्री कमजोर नहीं मगर पुरषो के समाज को स्त्री वर्ग का ही एक हिस्सा मजबूत बनाता है जो आज भी स्त्री होकर खुद स्त्री को समाज के पुरुषवादी विचारो के आधार पर जीने के लिए एक माहोल को सजाए हुए है ये कविता उन्ही स्त्रीयों के लिए जो पुरुषवाद की शुभचितक तो है मगर मानवता वाद की समानता भूल गई है ©an aspirant nilu

#विचार #Road  White लड़की बनके है जन्म लिया 
मानू मैं हर मर्यादा समाज की 
में तो शुभचिंतक हूं समाज की ।
पुरुषवादी सत्ता के जो आडम्बर बने है 
आज भी 
मैं पालना करू हर उस बात की 
मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की ।

बचपन से लेकर अब तक 
यही है मुझको सिखलाया 
बेटी को संस्कार सभी हो 
कहा फिक्र करता कोई पुरुषों के संस्कार की।
मै तो शुभ चिंतक हू समाज की।

मां से मेने सीखे हर गुण स्त्रीत्व वाले भी 
वो घूंघट की ओट में अपने विचारो पर ताले भी।
मैं क्या ही बात करू अधिकार की 
मै तो शुभ चिंतक हूं समाज की ।।
 मेरी लाज काज के रक्षक वो है ।
फिर भोगी में बलात्कार की 
कोई प्रश्न करू लज्जित हो जाऊ 
बात उठती ही नहीं सम्मान की।
मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की
कोई भोर भरे उठ जाता है 
कोई जोर जोर चिल्लाता है मध्य रात्रि में भी उठ उठ कर पालना करती पति को हर बात की 
मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की 

कुमकुम ,पायल ,बिंदी और कंगन
निशानिया मुझे ही तो दिखानी है सुहाग की 
करवाचौथ की भूख से लेकर सती कुण्ड की आग तक
नारी हूं बलिदानी बन के रक्षा करू उनके स्वाभिमान की ।
मैं तो शुभचिंतक हु समाज की ।।
वक्त बदल रहा हालत की अब दशा कुछ और है 
स्त्री कमजोर नहीं 
मगर पुरषो के समाज को  स्त्री वर्ग का ही एक हिस्सा मजबूत बनाता है 
जो आज भी स्त्री होकर खुद स्त्री को समाज के पुरुषवादी विचारो के आधार पर जीने के लिए एक माहोल को सजाए हुए है ये कविता उन्ही स्त्रीयों के लिए जो पुरुषवाद की शुभचितक तो है मगर मानवता वाद की समानता भूल गई है

©an aspirant nilu
#मोटिवेशनल
#Motivational  बेबाक देखता रहा

सफ़र पर आगे बढ़ने,
चुनी नई सड़क मैंने,
भूला कर रंज़िश अपने ,
नया मोड़ लिया तपने I

चलते ख़ुद को तपाया ,
कभी द्रवित न होने दिया ,
सहनशक्ति से बढ़ते चला,
सड़क से मोड़ लेते रहा I

ओले-आँधी.धूप-कोहरा,
सब झेला,सामना करता रहा ,
जीवन के डगर पर सब सहा ,
बिना रुके चलता ही रहा I

मंजिल पाने की होड़ के लिए ,
बहुत रिश्ते अपने बिगड़ गए ,
छूट गए जो साथ चल न पाए,
वे कहीं बादलों में छिप लिए I

क्या खिलौना बन रहा गया ?
क्या मर्जी से मैं चला पाया ?
मिला क्या वही सच हो गया ?
सड़क,बेबाक देखता रह गया I

©Ramji Mishra

bebak...

261 View

#लव
#lightpole  रूबरू जमाने से राबता इंसानों से रहा नहीं
 शायद दूर सबसे हो गया हूं
जिक्र करूं न करूं उनका 
दोस्त याद दिला जाते हैं
दिन को टाल देता हूं हंसके,
रात को वही खयाल सताते हैं

©Mriti_Writer_engineer
#good_night  White koi app ke sath hai aur kitna b care kyun na krle period pain & pregnancy pain akele jhelna padta hai

©banjarasoul

#good_night bebak hona jaruri hai

135 View

White लड़की बनके है जन्म लिया मानू मैं हर मर्यादा समाज की में तो शुभचिंतक हूं समाज की । पुरुषवादी सत्ता के जो आडम्बर बने है आज भी मैं पालना करू हर उस बात की मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की । बचपन से लेकर अब तक यही है मुझको सिखलाया बेटी को संस्कार सभी हो कहा फिक्र करता कोई पुरुषों के संस्कार की। मै तो शुभ चिंतक हू समाज की। मां से मेने सीखे हर गुण स्त्रीत्व वाले भी वो घूंघट की ओट में अपने विचारो पर ताले भी। मैं क्या ही बात करू अधिकार की मै तो शुभ चिंतक हूं समाज की ।। मेरी लाज काज के रक्षक वो है । फिर भोगी में बलात्कार की कोई प्रश्न करू लज्जित हो जाऊ बात उठती ही नहीं सम्मान की। मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की कोई भोर भरे उठ जाता है कोई जोर जोर चिल्लाता है मध्य रात्रि में भी उठ उठ कर पालना करती पति को हर बात की मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की कुमकुम ,पायल ,बिंदी और कंगन निशानिया मुझे ही तो दिखानी है सुहाग की करवाचौथ की भूख से लेकर सती कुण्ड की आग तक नारी हूं बलिदानी बन के रक्षा करू उनके स्वाभिमान की । मैं तो शुभचिंतक हु समाज की ।। वक्त बदल रहा हालत की अब दशा कुछ और है स्त्री कमजोर नहीं मगर पुरषो के समाज को स्त्री वर्ग का ही एक हिस्सा मजबूत बनाता है जो आज भी स्त्री होकर खुद स्त्री को समाज के पुरुषवादी विचारो के आधार पर जीने के लिए एक माहोल को सजाए हुए है ये कविता उन्ही स्त्रीयों के लिए जो पुरुषवाद की शुभचितक तो है मगर मानवता वाद की समानता भूल गई है ©an aspirant nilu

#विचार #Road  White लड़की बनके है जन्म लिया 
मानू मैं हर मर्यादा समाज की 
में तो शुभचिंतक हूं समाज की ।
पुरुषवादी सत्ता के जो आडम्बर बने है 
आज भी 
मैं पालना करू हर उस बात की 
मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की ।

बचपन से लेकर अब तक 
यही है मुझको सिखलाया 
बेटी को संस्कार सभी हो 
कहा फिक्र करता कोई पुरुषों के संस्कार की।
मै तो शुभ चिंतक हू समाज की।

मां से मेने सीखे हर गुण स्त्रीत्व वाले भी 
वो घूंघट की ओट में अपने विचारो पर ताले भी।
मैं क्या ही बात करू अधिकार की 
मै तो शुभ चिंतक हूं समाज की ।।
 मेरी लाज काज के रक्षक वो है ।
फिर भोगी में बलात्कार की 
कोई प्रश्न करू लज्जित हो जाऊ 
बात उठती ही नहीं सम्मान की।
मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की
कोई भोर भरे उठ जाता है 
कोई जोर जोर चिल्लाता है मध्य रात्रि में भी उठ उठ कर पालना करती पति को हर बात की 
मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की 

कुमकुम ,पायल ,बिंदी और कंगन
निशानिया मुझे ही तो दिखानी है सुहाग की 
करवाचौथ की भूख से लेकर सती कुण्ड की आग तक
नारी हूं बलिदानी बन के रक्षा करू उनके स्वाभिमान की ।
मैं तो शुभचिंतक हु समाज की ।।
वक्त बदल रहा हालत की अब दशा कुछ और है 
स्त्री कमजोर नहीं 
मगर पुरषो के समाज को  स्त्री वर्ग का ही एक हिस्सा मजबूत बनाता है 
जो आज भी स्त्री होकर खुद स्त्री को समाज के पुरुषवादी विचारो के आधार पर जीने के लिए एक माहोल को सजाए हुए है ये कविता उन्ही स्त्रीयों के लिए जो पुरुषवाद की शुभचितक तो है मगर मानवता वाद की समानता भूल गई है

©an aspirant nilu
#मोटिवेशनल
#Motivational  बेबाक देखता रहा

सफ़र पर आगे बढ़ने,
चुनी नई सड़क मैंने,
भूला कर रंज़िश अपने ,
नया मोड़ लिया तपने I

चलते ख़ुद को तपाया ,
कभी द्रवित न होने दिया ,
सहनशक्ति से बढ़ते चला,
सड़क से मोड़ लेते रहा I

ओले-आँधी.धूप-कोहरा,
सब झेला,सामना करता रहा ,
जीवन के डगर पर सब सहा ,
बिना रुके चलता ही रहा I

मंजिल पाने की होड़ के लिए ,
बहुत रिश्ते अपने बिगड़ गए ,
छूट गए जो साथ चल न पाए,
वे कहीं बादलों में छिप लिए I

क्या खिलौना बन रहा गया ?
क्या मर्जी से मैं चला पाया ?
मिला क्या वही सच हो गया ?
सड़क,बेबाक देखता रह गया I

©Ramji Mishra

bebak...

261 View

#लव
#lightpole  रूबरू जमाने से राबता इंसानों से रहा नहीं
 शायद दूर सबसे हो गया हूं
जिक्र करूं न करूं उनका 
दोस्त याद दिला जाते हैं
दिन को टाल देता हूं हंसके,
रात को वही खयाल सताते हैं

©Mriti_Writer_engineer
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